शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

गंगा माँ मंडल

गंगा माँ मंडल क्या है ?

एक छोटे परिवार (पति, पत्नी और दो बच्चे) की जरूरत वाले सभी पोषक तत्व, सब्जियों और फलों द्वारा प्राप्त करने के लिए, यह ढाँचा तैयार किया जाता है। इसमें 1000 वर्गफुट से ज्यादा जगह की जरूरत नही पड़ती। इसका उद्देष्य जैविक सब्जियों के लिए परिवार की बाजार पर निर्भरता कम करना और परिवार के सदस्यों की पोषण की जरुरत को पूरा करना है। यह 'अपनी सहायता अपने आप करो'' के महत्वपूर्ण सूत्र को पूरा करने में मदद करता है। एक गोल घेरे में इसे बनाया जाता है और इसमें जाने के लिए ७ रास्ते होते है, ये जब बन के तैयार हो जाता है तो हम रोज सुबह १ नंबर के रास्ते से गंगा मां मंडल के केंद्र की ओर अन्दर जाते है और वहा बने गोल घेरे में पानी देते है वो पानी सभी पौधो तक पहुँच जाता है और वापस लौटते समय उस रास्ते पे लगी सब्ब्जियो को तोड़ कर ले आते है.. और अगले दिन हम २ नंबर के रास्ते से अन्दर जाते है और उस रास्ते की सब्जियों को लाते है इसी तरह हम रोज एक-एक कर के ७ रास्तो से सब्जिय्या तोड़ते हे और तब तक १ नंबर के रास्ते पर ७ दिनों में फिर से उतनी ही सब्जिया फिर से आ जाती है और यह क्रम लम्बे समय तक चलता रहता है । गंगा मां मंडल के केंद्र की ओर जाने वाले सभी रास्तों के दोनों ओर ढेरों पर बेलवर्गीय पौधे लगाए जाते हैं। बाहर के 7 बड़े ढेरो पर प्याज, लहसुन मूली, शकरकंद और आलू जैसी कंद सब्जियाँ टमाटर, बैंगन और भिंडी जैसी फलदार सब्जियाँ तुलसी, पुदीना, कढ़ी पत्ता जैसे औषधीय पौधे लगाये जाते है । अंदर के 7 छोटे ढेरों पर मेथी, चायपत्ती, मिर्ची, धनिया जैसे मसाले, बरबरटी, ग्वारफली, तूर, मूँग, उड़द और सेम जैसे प्रोटीनयुक्त पौधे लगाये जाते है । सबसे अंदर के गोल घेरे में नमी ज्यादा रहती है, इसलिए यहां केले, पपीते के पौधे लगाए जा सकते हैं।
गंगा माँ मंडल तैयार करने का तरीका क्या है ?
इसे तैयार करने का तरीका इस प्रकार है- (१) 1000 वर्गफुट जगह के ठीक बीच में खूँटी गाड़कर उसमें 15 फुट लंबाई नाप सकने वाली रस्सी बांधिए। अब इस रस्सी की सहायता से खूंटी से 15 फुट दूर एक गोलाकार घेरा खींचिए। इसकी सीमा पर राख डालिए ताकि यह दिखाई दे सके। (२) अब खूंटी से क्रमषः 10.5, 9, 6, 4.5, 3 फुट पर गोल घेरे खींचिए। और इनकी सीमा पर राख डालिए।(३) सबसे बाहरी घेरे की परिधि पर टेप रखकर उसके 13.5 फुट लंबाई वाले इसके 7 समान भाग कीजिए। राख डालकर निशान लगाते रहें। (४) ऐसे दो भाग जहाँ मिलते हैं, उसे मध्य बिंदु मानकर 4.5 फुट के घेरे तक एक सीधी रेखा खींचिए। इस रेखा के दोनों ओर 9-9 इंच नापकर 4.5 फुट के घेरे तक दो सीधी लाइनें खींचिए। इस प्रकार इन दोनों रेखाओं के बीच 1.5 फुट का एक रास्ता तैयार हो जाएगा। यह रास्ता बाहरी घेरे से 4.5 फुट के घेरे तक जाएगा। (५) बाहरी घेरे पर बनाए गए सभी 7 भागों के बीच इसी प्रकार 1.5 फुट चौड़े 7 रास्ते बनाइए। (६) अब सबसे अंदर वाले 3 फुट के घेरे में कुप्पी यानि फनल के आकार का 2 फुट गहरा खोदिए। इस गड्ढे में ऐसी जैविक वस्तुएँ डालिएजिन्हें विघटित होने में 6 माह से ज्यादा लगते हैं। जैसे-नारियल की जटाएँ, तूर, कपास और पौधों की डालियाँ, गन्ने का बगास आदि। देर से विघटित होने वाली चीजों को नीचे और जल्दी विघटित होने वाली वस्तुओं को इनके ऊपर डालिए जैसे-पेड़ों के सूखे पत्ते। (७) सबसे अंदर के गड्ढे को भरने के बाद उस पर एक इतना बड़ा पत्थर रखा जाता है, जिस पर बैठकर नहाया जा सके या बर्तन और कपड़ेधोए जा सकें। (८) सभी रास्तों के दोनों ओर बाँस और बल्लियाँ गाड़कर मंडप तैयार किया जाता है। इस मंडप के ऊपर रस्सी का जाल तैयार किया जाता है। (९) रास्तों को छोड़कर बची जगहों पर सीधे ढेर लगाए जा सकते हैं या कहीं ओर तैयार अमृत मिट्टी यहाँ लाकर डाली जा सकती है। पहले तरीके से ज्यादा फायदा होता है। इस तरीके से अमृत मिट्टी कम नहीं पड़ती और सूक्ष्मजीवों द्वारा तैयार सभी जैविक रसायन पौधों की जड़ों को मिलते रहते हैं। |
गंगा माँ मंडल बनाते समय रखी जाने वाली सावधानियाँ क्या हैं ?
सावधानियाँ इस प्रकार हैं-
1 गंगा माँ मंडल ऐसी जगह बनाना चाहिए जहां तेज हवाओं से बेल वर्गीय पौधे न टूटें।
2 जहाँ ज्यादा समय तक धूप पड़ती हो।
3 जहाँ पशुओ से इसकी सुरक्षा हो सके।
4 जहाँ घरेलू कामों (नहाना, कपड़े धोना, बर्तन धोना आदि) में उपयोग हो चुका ज्यादा से ज्यादा पानी इसमें जा सके। इस पानी में बाजारु रसायनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
5 बेल वर्गीय पौधों को ढेर और रास्तों पर नहीं फैलने देकर मंडप के ऊपर ही फैलने देना चाहिए। इन्हें वहाँ तक पहुँचाने के लिए रस्सियाँ बाँधनी चाहिए।
6 गंगा माँ मंडल रसोईघर के पास बनाया जाए। ऐसा करने से रसोई का पानी और जैविक कचरा गंगा माँ मंडल तक पहुँचाना आसान और सुविधाजनक होगा। साथ ही रसोई तक सब्जियाँ भी आसानी से पहुँचाई जा सकेंगी। |

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

जन्मकुंडली और साधना में सफलता के योग


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Friday, December 16, 2011

Horoscopes and success in practice जन्मकुंडली और साधना में सफलता के योग

Now this information for our Astrology seekers....

जन्मकुंडली और साधना में सफलता के योग

संपूर्ण ब्रह्माण्ड १२ राशियों और २७ नक्षत्रों में विभाजित है , और हमारी जन्म कुंडली को भी उसी काल पुरुष का ही रूप मान कर १२ भागो में विभक्त किया गया है और इन्ही भागो में जिन्हें स्थान या भाव भी कहा जाता है, में ये नौ ग्रह स्थित हो कर अपना प्रभाव दिखाते हैं. प्रत्येक भाव में जो भी राशि होती है उस राशि का स्वामी भावेश कहलाता है . इन भावों में ग्रहों की स्थिति ही तो जीवन के ऐसे ऐसे खेल दिखाती है की बस पूछो मत ....................

और इन खेलों का पता हमें चलता कहाँ से हैं ..... हाँ भाई उसी लग्न स्थान से जो की जातक या पृथ्वी का प्रतीक है जन्म कुंडली में , और जहाँ से खड़ा होकर जातक देख सकता है भिन्न भिन्न स्थानों पर अवस्थित ग्रहों का प्रभाव . याद रखिये जन्मकुंडली की सत्यता और शुद्धता का निर्धारण गर्भ कुंडली या बीज कुंडली के द्वारा होता हैं अन्यथा सामान्य कुंडलियाँ तो मात्र दिल को बहलाने के ही काम आती हैं जिनके द्वारा ज्योतिष के अधिकांश सिद्धांत अनुमान मात्र ही रह जाते हैं ..... कारण साफ़ है क्योंकि जन्म समय की सत्यता कैसे की जाये , कैसे सही जन्म समय का निर्धारण किया जाये ....... ये अत्यंत ही दुष्कर कार्य है. अब जब जन्म समय ही शुद्ध नहीं होगा तो उस समय पर आधारित जन्मकुंडली से भला सही फल कथन कैसे किया जा सकता है . तब तो आपके द्वारा किया गया फलित मात्र अनुमान ही तो रह जायेगा ना.

यदि सही जन्म कुंडली हो तो फल कथन भी सत्य होगा और सत्य होगा जीवन के प्रत्येक पक्षों का दिग्दर्शन भी .

( चित्र में जनम कुंडली में जो भाव क्रमाक दिए गए हैं ,ये बदलते नहीं हैं ये स्थाई हैं , हाँ ये जरूर हैं की ,ज्योतिष की गणित के हिसाब से इन भाव में आने वाले अंक बदल जाते हैं. (जनम के समय के अनुसार ).अब आप पचम और नवम भाव देख सकते हैं,आप अपनी कुडली में lagna भाव स्थान पर क्या अंक लिखा हैं उन्हें देख ले, आप अपनी लग्न जान गए हैं.प्रिय मित्र यदि १ लिखा हैं तो मेष हैं, २ लिखा हैं तो वृषभ ,कृपया लिस्ट के अनुसार देख ले.)

इस लेख का आशय मात्र जातक की कुंडली के साधना पक्षों का अध्यन करना ही है , जिससे ये जाना जा सकता है की किस ग्रह स्थिति से कैसी साधना और किस पद्धति में सफलता मिलती है , इसकी जानकारी मात्र हो जाये. ये सूत्र सद्गुरुदेव द्वारा प्रदान किये गए हैं . जो की साधक को अपनी कुंडली देख कर सही पद्धति का निर्धारण करना सिखाते हैं( याद रखिये ये निर्धारण स्वयं के द्वारा का है क्यूंकि यदि हम गुरु के चरणों में उपस्थित होकर प्रार्थना करते हैं तो वो बिना किसी कुंडली के भी आपको उस पद्धति से परिचित करा देते हैं).

पिछले किसी लेख में मैंने आपको पंचम और नवम भाव से इष्ट का निर्धारण बताया था , आज हम कई अनछुए और नवीन सूत्रों के द्वारा अपने आध्यात्मिक जीवन का अध्यन करेंगे. तो शुरुआत करते हैं जन्म लग्न द्वारा इष्ट के निर्धारण से ......

1. मेष लग्न – सूर्य,दत्तात्रेय , गणेश
2. वृषभ- कुलदेव ,शनि
3. मिथुन-कुलदेव , कुबेर
4. कर्क- शिव, गणेश
5. सिंह- सूर्य
6. कन्या- कुलदेव
7. तुला- कुलदेवी
8. वृश्चिक- गणेश
9. धनु- सूर्य ,गणेश
10. मकर - कुबेर,हनुमंत,कुलदेव,शनि
11. कुम्भ- शनि, कुलदेवी,हनुमान
12. मीन- दत्तात्रेय,शिव,गणेश

यदि जन्मकुंडली में बलि ग्रह हो........

सूर्य तो व्यक्ति शक्ति उपासना कर अभीष्ट पाता है,
चंद्र हो तो तामसी साधनों में रूचि रखता है,
मंगल हो शिव उपासना
बुध हो तो तंत्र साधना में
गुरु हो तो साकार ब्रह्मोपासना में
शुक्र हो तो मंत्र साधना में
शनि हो तो मन्त्र तंत्र में निष्णात व विख्यात

इसी प्रकार..............

प्रथम भाव या चंद्रमा पर शनि की दृष्टि हो तो जातक सफल साधक होता है.

चंद्रमा नवम भाव में किसी भी ग्रह की दृष्टि से रहित हो तो व्यक्ति श्रेष्ट सन्यासी होता है.

दशम भाव का स्वामी सातवे घर में हो तो तांत्रिक साधना में सफलता मिलती है

नवमेश यदि बलवान होकर गुरु या शुक्र के साथ हो तो सफलता मिलती ही है.

दशमेश दो शुभ ग्रहों के मध्य हो तब भी सफलता प्राप्त होती है .

यदि सभी ग्रह चंद्रमा और ब्रहस्पति के मध्य हो तो तंत्र के बजाय मंत्र साधना ज्यादा अनुकूल रहती है .

केन्द्र या त्रिकोण में सभी ग्रह हो तो प्रयत्न करने पर सफलता मिलती ही है.

गुरु, मंगल और बुध का सम्बन्ध बनता हो तो सफलता मिलती है .

शुक्र व बुध नवम भाव में हो तो ब्रह्म साक्षात्कार होता है.

सूर्य उच्च का होकर लग्न के स्वामी के साथ हो तो व्यक्ति श्रेष्ट साधक होता है .

लग्न के स्वामी पर गुरु की दृष्टि हो तो मन्त्र मर्मज्ञ होता है.

दशम भाव का स्वामी दशम में ही हो तो साकार साधनों में सफलता मिलती है.

दशमेश शनि के साथ हो तो तामसी साधनों में सफलता मिलती है.

राहु अष्टम का हो तो व्यक्ति अद्भुत व गोपनीय तंत्र में प्रयत्नपूर्वक सफलता पा सकता है.

पंचम भाव से सूर्य का सम्बन्ध बन रहा हो तो शक्ति साधना में सफलता मिलती है.

नवम भाव में मंगल का सम्बन्ध तो शिवाराधक होकर सफलता पाता है.

नवम में शनि स्वराशि स्थित हो तो वृद्धावस्था में व्यक्ति प्रसिद्द सन्यासी बनता है.

पर में यहाँ एक बात आपके सामने रखना चाहूँगा ,एक कहानी के माध्यम से, सत्य घटना हैं,दतिया के आदरणीय पूज्य स्वामीजी महाराज का एक शिष्य उनके पास आया और कहा की वह कई साल से छिन्नमस्ता साधना कर रहा हैं पर सफलता उसे नहीं मिल रही हैं, उसे जबाब मिला माँ बगलामुखी की साधना करो, साधक को एक ही रात में जो अनुभव हुए उससे वह तो हिल गया ,अगले दिन स्वामी जी से कारण पूछने पर की क्यों सालो साल छिन्नमस्ता माँ की साधना से फल नहीं मिला, यहाँ एक दिन में ही माँ बल्गामुखी से मिल गया, स्वामी जी ने कहा, बेटा तेरा अकाउंट tranfer कर दिया हैं और कुछ नहीं, साधक के फिर से पूछने पर उन्होंने कहा की माँ तो एक ही हैं, वास्तव में बेटा तू अपने कुल (घर ) में चल रही छिन्नमस्ता साधना को करता आया हैं, परन्तु पिछेले कई जन्मो के उसके संस्कार माँ बगलामुखी के थे. इसी कारन उन्होंने उसके द्वारा किये गए जप को बल्गामुखी माँ के जप में बदल दिया. अब आप लोग समझे ,की सदगुरुदेव की क्या आवश्यकता होती हैं और क्यों .

यहाँ तक की इस ब्लॉग के एक लेखक को पूज्य सदगुरुदेव जी ने माँ छिन्नमस्ता की साधन बताए थी, परन्तु उनसे वोह पत्र में लिखी बात भूल गए ,और वह माँ तारा की साधना करते रहे, कई वर्ष के बाद उन्हें वह पत्र मिला, अपनी गलती समझ कर उन्होंने सदगुरुदेव से बात की, परन्तु जबाब आया की माँ तारा की साधन ही करते रहो,बदलने की जरूरत नहीं हैं. वोह ये बात समझ नहीं पाए की पहले तो सदगुरुदेव ने कुछ और बोला था, अब क्योँ नहीं बदल सकते हैं, कई वर्षों के बाद उन्हें ये ज्ञात हुए की दस महाविद्या वास्तव में मूल रूप से तीन महाविद्या हैं और माँ छिन्नमस्ता ,का माँ तारा में ही समहिती करण माना जाता हैं.

तो अवलोकन कीजिये अपनी कुंडली का और देखिये क्या कहती है आपकी कुंडली .

Tuesday, January 13, 2015

गुरु मंत्र - मूल तत्त्व दुर्लभ स्तोत्र - त्रिजटा अघोरी


गुरु मंत्र - मूल तत्त्व दुर्लभ स्तोत्र - त्रिजटा अघोरी
"गुरु मंत्र का अर्थ " ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः

" परम पूज्य सदगुरुदेव द्वारा प्रदत गुरु मंत्र का क्या अर्थ है ?" मैंने बीच में ही टोकते हुए पूछा ।
एक लम्बी खामोसी.........जो इतनी लम्बी हो गयी थी, कि खलने लगी थी......उनके चेहरे के भावो से मुझे अनुभव हुआ, की वे निश्चय और अनिश्चय के बीच झूल रहे हैं । अंततः उनका चेहरा कुछ कठोर हुआ , मानो कोई निर्णय ले लिया हो । अगले ही क्षण उन्होंने अपने नेत्र मूंद लिये, शायद वे टेलीपैथी के माध्यम से गुरुदेव से संपर्क कर रहे थे, लगभग दो मिनट के उपरांत मुस्कुराते हुए उन्होंने आंखें खोल दीं । "इस मंत्र के मूल तत्त्व की तुम्हारे लिये उपयोगिता ही क्या है?
मंत्र तो तुम जानते ही हो, इसके मूल तत्त्व को छोड़ कर इसकी अपेक्षा मुझसे आकाश गमन सिद्धि,संजीवनी विद्या अथवा अटूट लक्ष्मी ले लो, अनंत सम्पदा ले लो, जिससे तुम संपूर्ण जीवन में भोग और विलास प्राप्त करते रहोगे....ऐसी सिद्धि ले लो, जिससे किसी भी नर अथवा नारी को वश में कर सकोगे ।"
एक क्षण तो मुझे लगा, की उनके दिमाग का कोई पेंच ढीला है, पर मेरा अगला विचार इससे बेहतर था । मैंने सुना था, कि उच्चकोटि के योगी या तांत्रिक साधक को श्रेष्ठ , उच्चकोटि का ज्ञान देने से पूर्व उसकी परीक्षा लेने हेतु कई प्रकार के प्रलोभन देते है, कई प्रकार के चकमे देते है..... वे भी अपना कर्त्तव्य बड़ी खूबसूरती से निभा रहे थे....
करीब पांच मिनट तक उनकी मुझे बहकाने की चेष्टा पर भी मैं अपने निश्चय पर दृढ़ रहा, तो उन्होंने एक लम्बी सांस ली और कहा "अच्छा ठीक है । बोलो क्या जानना चाहते हो?" "सब कुछ " मैं चहक उठा "सब कुछ अपने गुरु मंत्र एवं उसके मूल तत्त्व के बारे में ।
मित्रो, इसके बाद आप जानते ही है कि त्रिजटा अघोरी ने अपने वरिष्ठ गुरु भाई के सामने जो गुरु मंत्र का ब्रह्माण्डीय रहस्योद्घाटन किया..........................
अतः आप गुरु मंत्र कि महत्वता तो जानते ही है ,पर क्या आप जानते है कि जिस तरह शिव पंचाक्षरी मंत्र " नमः शिवाय " के प्रत्येक बीज से आदि शंकराचार्य ने शिव पंचाक्षर स्तोत्र कि रचना कि उसी तरह ऋषियों ने गुरु मंत्र के प्रत्येक बीज से भी एक अत्यंत दुर्लभ स्तोत्र कि रचना कि है...........................


ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः

" प "
पकार पुण्यं परमार्थ चिन्त्यं, परोपकारं परमं पवित्रं ।
परम हंस रूपं प्रणवं परेशं, प्रणम्यं प्रणम्यं निखिलं त्वमेवं ।। १ ।।
" र "
रम्य सुवाणी दिव्यंच नेत्र, अग्निं त्रिरुपं भवरोग वैद्यं ।
लक्ष्मी च लाभं भवति प्रदोषे, श्री राजमान्य निखिलं शरण्यम् ।। २ ।।
" म "
महामानदं च महामोह निभं , महोच्चं पदं वै प्रदानं सदैवं ।
महनिय रूपं मधुराकुतिं तं, महामण्डलं तं निखिलं नमामि ।। ३ ।।
" त "
तत्व स्वरूपं तपः पुतदानं , तारुण्य युक्ति शक्तिं ददाति ।
तापत्रयं दुरयति तत्त्वगर्भः , तमेव तत्पुरुषमहं प्रणम्यं ।। ४ ।।
" त्वा "
विभाति विश्वेश्वर विश्वमूर्ति , ददाति विविधोत्सव सत्व रूपं ।
प्राणालयं योग क्रिया निदानं , विस्वात्मकम तं निखिलं विधेयम् ।। ५ ।।
" य "
यशस्करं योग क्षेम प्रदं वै , योगश्रियं शुभ्रमनन्तवीर्यं ।
यज्ञान्त कार्य निरतं सुखं च , योगेश्वरं तं निखिलं वदेन्यम् ।। ६ ।।
" ना "
निरामयं निर्मल भात भाजनं , नारायणस्य पदवीं सामुदारभावं ।
नवं नवं नित्य नवोदितं तं , नमामि निखिलं नवकल्प रूपम् ।। ७ ।।
" रा "
रासं महापूरित रामणीयं , महालयं योगिजनानु मोदितं ।
श्री कृष्ण गोपीजन वल्लभं च , रसं रसज्ञं निखिलं वरेण्यम् ।। ८ ।।
" य "
यां यां विधेयां मायार्थ रूपां , ज्ञात्वा पुनर्मुच्यति शिष्य वर्गः ।
सर्वार्थ सिद्धिदं प्रददाति शुभ्रां , योगेन गम्यं निखिलं प्रणम्यम् ।। ९ ।।
" णा "
निरंजनं निर्गुण नित्य रूपं , अणोरणीयं महतो महन्तं ।
ब्रह्मा स्वरूपं विदितार्थ नित्यं , नारायणं च निखिलं त्वमेवम् ।। १० ।।
" य "
यज्ञ स्वरूपं यजमान मूर्ति , यज्ञेश्वरं यज्ञ विधि प्रदानं ।
ज्ञानाग्नि हूतं कर्मादि जालं , याजुष्यकं तं निखिलं नमामि ।। ११ ।।
" गु "
गुत्वं गुरुत्वं गत मोह रूपं , गुह्याति गुह्य गोप्तृत्व ज्ञानं ।
गोक्षीर धवलं गूढ़ प्रभावं , गेयं च निखिलं गुण मन्दिरं तम् ।। १२ ।।
" रु "
रुद्रावतारं शिवभावगम्यं , योगाधिरुढिं ब्रह्माण्ड सिद्धिं ।
प्रकृतिं वसित्वं स्नेहालयं च , प्रसाद चितं निखिलं तु ध्येयम् ।। १३ ।।
" भ्यों "
योगाग्निना दग्ध समस्त पापं , शुभा शुभं कर्म विशाल जालं ।
शिवा शिवं शक्ति मयं शुभं च , योगेश्वरं च निखिलं प्रणम्यं ।। १४ ।।
" न "
नित्यं नवं नित्य विमुक्त चितं , निरंजनं च नरचित मोदं ।
उर्जस्वलं निर्विकारं नरेशं , निरत्रपं वै निखिलं प्रणम्यं ।। १५ ।।
" म "
मातु स्वरूपं ममतामयं च , मृत्युंजयं मानप्रदं महेशं ।
सन्मंगलं शोक हरं विभुं तं , नारायणमहं निखिलं प्रणम्यं ।। १६ ।।

अतः आप इस स्तोत्र कि महत्वता स्वयं समझ सकते हैं............

गुरु mantra की सिद्धि से सभी साधना सिद्धि अपने आप हो जाता है फिर किसी साधना की अवसकता नहीं होती है | वह शिव तुल्य बन जाता है |

नोट

श्री कृष्ण , श्री राम जिस प्रकार नारायण के अवतार बताये जाते है, उसी प्रकार मानव जीवन की रक्षा के लिए, भारत को आजादी दिलाने के लिए ऋषि युग का प्रारम्भ करने के लिए जन्म लिए और भारत उसी प्रकार बनाया औरबना रहे है ..............वासे जब तक पास आ के किसी केबारे मैंजानेगेनहीं पता ही नहीं चल सकता है .....वेसे अप को पता नहीं होगा ये गुरु mantra............ Swami Nikhileswrananda जी तपस्या कर पुन : सिद्धास्रम आनेपर येगुरुmantra आपने सिद्धास्रम गुंजरन हूया औरउनको शिष्य अधिपति बनाया गया वो शिष्य सभी परीक्षा पास किया था और भगवान सचिदानन्द (त्रिदेव, त्रिशक्ति) सबसे प्रिय शिष्य बनसके थे ये mantra के जब से आप कोवही लाभ होगा जो त्रिदेव, त्रिशक्ति से मिलताहै

गुरु ब्रम्हा गुरु बिष्णु गुरुदेवो महेश्वर:,गुरु साक्षात परब्रम्ह तस्मैश्री गुरुवे नम: !!!

आप अधिक जानकारी निखिल स्तवन, निखिल सहत्र नामसे पा सकतेहै ........................या आप खुद mantra कोजाप कर देखले आप पता चल जायेगा ................निखिल नाम का जाप से कितने ब्रम्ह ऋषि बन गए कितने ऋषि सिद्धास्रम मैं जा सके इनकिरपा से ....

वन्दे निखिलं जगद्गुरुम

रविवार, 18 जनवरी 2015

भारत की सबसे लंबी ट्रेन

भारत की सबसे लंबी ट्रेन









दो KM लंबी है भारत की सबसे लंबी ट्रेन


महाराजा एक्सप्रेस की सवारी है सबसे शानदार
महाराजा एक्सप्रेस को भारत की सबसे लग्जरी ट्रेनों में गिना जाता है। इस ट्रेन की सजावट शाही महल की तरह है, जिससे यात्रियों को राजाओं वाले ठाट-बाट का आनंद मिलता है। इस ट्रेन को अंतरराष्ट्रीय रेलवे ट्रेवलर सोसाइटी ने टॉप 25 ट्रेनों में रखा है। इसमें सात दिन की यात्रा का किराया 2,12,000 रुपए है और 23 डिब्बों में 84 यात्री सफर करते हैं।
रेल नेटवर्क के मामले में भारत का स्थान विश्व में चौथे स्थान पर आता है। 63,974 km तक फैले रेल मार्ग से प्रतिदिन लाखों लोग सफर करते हैं और करोड़ों टन सामान ढोया जाता है। लंबी दूरी तय करने के लिए आज रेलवे आम आदमी का सबसे बड़ा सहारा है। कोयला हो या चावल मालगाड़ियों की सहायता से आवश्यक सामान को कम खर्च में देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जा रहा है। भारतीय रेल कई मामलों में बेहद खास है।
दिल्ली से मुंबई के बीच चलती है सबसे लंबी मालगाड़ी

दिल्ली से मुंबई के बीच 1397 किमी के सफर में ये किसी वीआईपी ट्रेन की तरह है। दो किमी लंबी मालगाड़ी। दो इंजन हैं और गार्ड के दो डिब्बे। जब चलती है तो अगले स्टेशन तक का ट्रैक खाली करवा लिया जाता है। रास्ते की ट्रेनें रोक दी जाती हैं। सिर्फ वडोदरा में एक स्टॉपेज है, जहां ड्राइवर और गार्ड बदले जाते हैं। वेस्टर्न रेलवे के सीपीआरओ शरत चंदरयान कहते हैं कि दिसंबर में ट्रायल शुरू हुआ था, अब यह नियमित हो गई है। 
नई दिल्ली-भोपाल शताब्दी एक्सप्रेस है सबसे तेज
नई दिल्ली से भोपाल के लिए चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस भारत की सबसे तेज ट्रेन है। फरीदाबाद से आगरा के बीच यह ट्रेन 150 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ती है। यह गाड़ी 7 घंटे और 50 मिनट में 704 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर लेती है। इसकी शुरुआत 1988 में की गई थी। शताब्दी के सभी कोच वातानुकूलित (AC) हैं
सबसे लंबा सफर तय करती है विवेक एक्सप्रेस
असम के डिब्रूगढ़ से कन्याकुमारी के लिए चलने वाली विवेक एक्सप्रेस 4273 की दूरी तय करती है। देश के पूर्वोत्तर छोर को दक्षिण छोर से मिलाने वाली यह ट्रेन सबसे लंबा सफर तक करती है।
वहीं, नागपुर से अजनी स्टेशन के बीच चलने वाली ट्रेन सबसे कम दूरी तय करती है। इन दोनों स्टेशनों के बीच की दूरी मात्र 3 किलोमीटर है। 
यह ट्रेन बिना रुके तय करती है सबसे लंबी दूरी 
बीना रुके सबसे ज्यादा दूरी तय करने वाली ट्रेन त्रिवेंद्रम- ह. निजामुद्दीन राजधानी एक्सप्रेस है। यह ट्रेन वड़ोदरा से कोटा के बीच की 528 किलोमीटर की दूरी नॉन-स्टॉप तय करती है। मुंबई राजधानी एक्सप्रेस इस मामले में दूसरे नं. पर है। यह ट्रेन नई दिल्ली से कोटा के बीच कहीं नहीं रुकती है। 
सबसे अधिक स्टेशनों पर रुकती है यह ट्रेन
सबसे ज्यादा स्टेशनों पर रूकने वाली ट्रेन हावड़ा-अमृतसर एक्सप्रेस है। यह ट्रेन 115 जगहों पर रुकती है। दूसरे नंबर पर दिल्ली-हावड़ा जनता एक्सप्रेस है जो 109 स्टेशनों पर रुकती है। इस सूची में तीसरे नं. पर जम्मू तवी-सियालदह एक्सप्रेस आती है, जो 99 स्टेशनों पर रुकती है।
यह ट्रेन है सबसे लेट-लतीफ
अपने देश में अगर कोई ट्रेन समय पर आ जाए तो यह एक आश्चर्य की बात होती है। लंबी दूरी तय करने वाली ट्रेनों में सबसे लेट-लतीफ ट्रेन की बात करें को गुवाहाटी-त्रिवेंद्रम एक्सप्रेस का नाम आता है। चार्ट के अनुसार इसे अपना सफर 65 घंटे और पांच मिनट में पूरा करना है, जबकि यह औसतन 10-12 घंटे लेट चलती है
 

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

ये कुछ काम की बाते है जिस से आप का जीवन सफल हो सकता है

ये कुछ काम की बाते है जिस से आप का जीवन सफल हो सकता है कृपा ट्राई कीजिये
8 आदतों से सुधारें अपना घर :
१) 
अगर आपको कहीं पर भी थूकने की आदत है तो यह निश्चित है
कि आपको यश, सम्मान अगर मुश्किल से मिल भी जाता है
तो कभी टिकेगा ही नहीं .
wash basin में ही यह काम कर आया करें !
२)
जिन लोगों को अपनी जूठी थाली या बर्तन वहीं उसी जगह पर
छोड़ने की आदत होती है उनको सफलता कभी भी स्थायी रूप से नहीं मिलती.!
बहुत मेहनत करनी पड़ती है और ऐसे लोग अच्छा नाम नहीं कमा पाते.!
अगर आप अपने जूठे बर्तनों को उठाकर उनकी सही जगह पर रख आते हैं तो चन्द्रमा और शनि का आप सम्मान करते हैं !
३)
जब भी हमारे घर पर कोई भी बाहर से आये, चाहे मेहमान हो या कोई काम करने वाला, उसे स्वच्छ पानी जरुर पिलाएं !
ऐसा करने से हम राहू का सम्मान करते हैं.!
जो लोग बाहर से आने वाले लोगों को स्वच्छ पानी हमेशा पिलाते हैं उनके घर में कभी भी राहू का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता.!
४)
घर के पौधे आपके अपने परिवार के सदस्यों जैसे ही होते हैं, उन्हें भी प्यार और थोड़ी देखभाल की जरुरत होती है.!
जिस घर में सुबह-शाम पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध, सूर्य और चन्द्रमा का सम्मान करते हुए परेशानियों से डटकर लड़ पाते हैं.!
जो लोग नियमित रूप से पौधों को पानी देते हैं, उन लोगों को depression, anxiety जैसी परेशानियाँ जल्दी से नहीं पकड़ पातीं.!
५)
जो लोग बाहर से आकर अपने चप्पल, जूते, मोज़े इधर-उधर फैंक देते हैं, उन्हें उनके शत्रु बड़ा परेशान करते हैं.!
इससे बचने के लिए अपने चप्पल-जूते करीने से लगाकर रखें, आपकी प्रतिष्ठा बनी रहेगी
६)
उन लोगों का राहू और शनि खराब होगा, जो लोग जब भी अपना बिस्तर छोड़ेंगे तो उनका बिस्तर हमेशा फैला हुआ होगा, सिलवटें ज्यादा होंगी, चादर कहीं, तकिया कहीं, कम्बल कहीं ?
उसपर ऐसे लोग अपने पुराने पहने हुए कपडे तक फैला कर रखते हैं ! ऐसे लोगों की पूरी दिनचर्या कभी भी व्यवस्थित नहीं रहती, जिसकी वजह से वे खुद भी परेशान रहते हैं और दूसरों को भी परेशान करते हैं.!
इससे बचने के लिए उठते ही स्वयं अपना बिस्तर समेट दें.!
७)
पैरों की सफाई पर हम लोगों को हर वक्त ख़ास ध्यान देना चाहिए,
जो कि हम में से बहुत सारे लोग भूल जाते हैं ! नहाते समय अपने पैरों को अच्छी तरह से धोयें, कभी भी बाहर से आयें तो पांच मिनट रुक कर मुँह और पैर धोयें.!
आप खुद यह पाएंगे कि आपका चिड़चिड़ापन कम होगा, दिमाग की शक्ति बढेगी और क्रोध
धीरे-धीरे कम होने लगेगा.!
८)
रोज़ खाली हाथ घर लौटने पर धीरे-धीरे उस घर से लक्ष्मी चली जाती है और उस घर के सदस्यों में नकारात्मक या निराशा के भाव आने लगते हैं.!
इसके विपरित घर लौटते समय कुछ न कुछ वस्तु लेकर आएं तो उससे घर में बरकत बनी रहती है.!
उस घर में लक्ष्मी का वास होता जाता है.!
हर रोज घर में कुछ न कुछ लेकर आना वृद्धि का सूचक माना गया है.!
ऐसे घर में सुख, समृद्धि और धन हमेशा बढ़ता जाता है और घर में रहने वाले सदस्यों की भी तरक्की होती है.!

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

ओ३म् का उच्चारण है चमत्कारिक !!

ओ३म् का उच्चारण है चमत्कारिक !! 

१- ओ३म् के उच्चारण मात्र से मृत कोशिकाएँ जीवित हो जाती है | 

२- मन के नकारात्मक भाव सकारात्मक में परिवर्तित हो जाते है |

३- तनाव से मुक्ति मिलती है |



४- स्टेरॉयड का स्तर कम हो जाता है |

५- चेहरे के भाव तथा हमारे आसपास के वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है |

६- मस्तिष्क में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं तथा हृदय स्वस्थ होता है |


कुंडली में कब मंगल दोष नहीं होता...

कुंडली में कब मंगल दोष नहीं होता...
* यदि इन्हीं स्थानों पर 1-4-7-8-12 में एक की कुंडली में मंगल हो तथा दूसरे की कुंडली में शनि, राहु या स्वयं मंगल हो तो 'मंगल दोष' नहीं होता है।
* यदि मंगल नीच राशि, शत्रु राशि में हो या अस्त या वक्री हो तो भी 'मंगल दोष' नहीं होता।
* केंद्र एवं त्रिकोण स्थानों में शुभ ग्रह तथा 3-6-11 स्थानों में अशुभ ग्रह हों तो 'मंगली दोष' नहीं होता।
* यदि सप्तमेश सातवें भाव में ही हो तो 'मंगल दोष' नहीं होता है।
* मेष राशि का मंगल लग्न में, वृश्चिक का चौथे भाव में, मकर का सातवें, कर्क का आठवें तथा धनु का बारहवें स्थान में हो तो 'मंगली दोष' नहीं होता।
* मंगली वर का मंगली कन्या से विवाह कर देने से मंगल का अनिष्टकारी प्रभाव नहीं होता।
* मीन राशि का सातवें भाव में तथा कुंभ राशि का मंगल आठवें भाव में हो तो 'मंगली दोष' नहीं होता।
इस प्रकार के अनेक योग ज्योतिषीय गणना में बताए जाते हैं, जिनमें मंगल का अशुभ प्रभाव समाप्त हुआ माना जाता है, परंतु इनमें एकमत नहीं है। कुछ ज्योतिषविदों का मानना है कि यह स्थिति वर-वधू की कुंडली के अध्ययन के बाद ही स्पष्ट होती है कि उन दोनों के योग का वास्तविक प्रभाव क्या होगा।
मंगली योग का निश्चय
केवल जन्मकुंडली में मंगल की स्थिति देखकर वर-कन्या को मंगली मान लेना उचित नहीं है। इसके लिए चलित चक्र बनाना चाहिए और पूर्णतया स्पष्ट कर लेना चाहिए कि मंगल की स्थिति क्या है। 1, 4, 7, 8 एवं 12वें भाव में मंगल की स्थिति पक्की हो तो पुरुष या स्त्री जातक मंगली माना जाएगा, अन्यथा मंगल का अनिष्टकारी प्रभाव होते हुए भी जातक को संपूर्ण रूप से मंगली नहीं कहा जा सकता।

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

मानव शरीर में उँगलियों का महत्व—-

^ मानव शरीर में उँगलियों का महत्व—-
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दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। जब
दोनों हाथों की सभी उँगलियाँ- अंगुष्ठ से अंगुष्ठ, तर्जनी से तर्जनी,
मध्यिका से मध्यिका, अनामिका से अनामिका एवं कनिष्का से
कनिष्का मिलती है तो शरीर के, जो ब्रह्मांड का एक छोटा रूप माना जाता है, उत्तरी ध्रुव (बायाँ हाथ) एवं दक्षिण ध्रुव (दायाँ हाथ)
के मिलन से एक चक्र पूर्ण होता है, क्योंकि बाएँ हाथ में स्थित
सभी बारह राशियों का संपर्क दाहिने हाथ में स्थित सभी बारह राशियों से
परस्पर होता है।
अँगूठा —–
******* सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे
महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है।
इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर
सकतीं। संभव है इसी के कारण गुरु द्रोण ने एकलव्य से
उसका अँगूठा ही गुरुदक्षिणा में माँग लिया था।
बंद मुट्ठी से अँगूठे को बाहर निकालकर दिखाने को अँगूठा दिखाना या ठेंगा दिखाना कहा जाता है, जिसका तात्पर्य हमारे
यहाँ किसी कार्य को करने से मना करना समझा जाता है। परंतु
पश्चिमी सभ्यता में ठीक उलटा यानी थम्स आपको कार्य करने
की स्वीकृति समझा जाता है। यूँ तो दुनिया में कई करोड़ मनुष्य हैं, परंतु
जिस प्रकार सबकी मुखाकृति भिन्न होती है, उसी प्रकार सभी के
अँगूठों के निशान भी भिन्न होते हैं। इसी कारण अपराध जगत में थम्ब इम्प्रेशन का महत्व काफी होता है।
तर्जनी —-
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यह सबसे ऊर्जावान उँगली होती है। हमारे यहाँ विश्वास किया जाता है
कि जो बच्चा जितने अधिक दिनों तक उँगली पकड़कर चलता है, वह
बड़ों से उतनी ही ऊर्जा प्राप्त करता है। उसका विकास भी उतनी ही तीव्र गति से होता है। तर्जनी की ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि कुछ फल
मात्र इसके संकेत से ही मर जाते हैं। देखिए तुलसीदासजी लिखते हैं-
‘इहां कम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनी देखि मर जाहीं।’
ऐसी मान्यता भारत के अलावा अन्य कई देशों में भी है कि नन्हे फल
तर्जनी के संकेत से मर जाते हैं।
सबसे पहली उँगली को अँगूठा या अंगुष्ठ कहते हैं। इसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह अन्य चारों उँगलियों का मुख्य सहायक है।
इसकी सहायता के बगैर अन्य चारों उँगलियाँ कार्य संपन्न नहीं कर
सकतीं।
इसलिए वहाँ किसी को तर्जनी दिखाना अच्छा नहीं माना जाता।
तर्जनी का प्रयोग लिखने के लिए अथवा मुख्य कार्य के लिए होता है,
जिसके सहायक मध्यिका एवं अँगूठा होते हैं। इसकी ऊर्जा का अंदाज मात्र इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी प्रकार का जप करते समय
माला के किसी भी मनके से इसका स्पर्श पूर्णतया वर्जित है।
मध्यिका —
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यह हाथ की सबसे लंबी उँगली तो है परंतु इसका मुख्य कार्य
तर्जनी की सहायता करना है। संभवतः इसी कारण जाप में मनकों से इसका भी स्पर्श निषिद्ध माना जाता है।
अनामिका—-
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यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण उँगली है। इसका सीधा संबंध हृदय से
होता है। अतः सभी शुभ कार्यों में इसकी मान्यता सबसे अधिक है।
इसी कारण जप की माला का संचरण इसके एवं अँगूठे की सहायता से किया जाता है। धार्मिक कृत्यों हेतु कुशा भी इसी उँगली में धारण
की जाती है।
ग्रहों और नक्षत्रों से संबंधित लगभग सभी रत्न अँगूठी के माध्यम से
इसी में धारण किए जाते हैं, जिसके पीछे कारण यह है कि वे रत्न सूर्य से
वांछित ऊर्जा प्राप्त कर जातक (धारण करने वाले) को प्रदान करते हैं,
जिससे उसके भीतर वांछित ऊर्जा की कमी दूर होती है। वे लोग जो मंत्रों का जप उँगलियों के माध्यम से करते हैं,
अपनी गणना इसी उँगली से प्रारंभ करते
कनिष्का—–
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यह हाथ की सबसे छोटी उँगली है, जो हर प्रकार से
अनामिका की सहायता करती है। इसे अनामिका की सहायक कहा जाता है। अन्य —-
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किसी-किसी व्यक्ति के हाथ में छः उँगलियाँ भी होती हैं।
लोगों का विश्वास है कि जिन पुरुषों के दाहिने हाथ में एवं जिन स्त्रियों के
बाएँ हाथ में छः उँगलियाँ होती हैं, वे बड़े भाग्यशाली होते हैं।
ज्योतिष विद्या के अनुसार बारहों राशियों का स्थान प्रत्येक उँगली के तीन पोरों (गाँठों) में इस प्रकार होता है-
कनिष्का – मेष, वृष, मिथुन
अनामिका – कर्क, सिंह, कन्या
मध्यिका – तुला, वृश्चिक, धनु
तर्जनी – मकर, कुंभ, मीन।
शरीर का निर्माण पाँच तत्वों से हुआ है- अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल। इसका भी निवास क्रमशः अँगूठा, तर्जनी, मध्यिका,
अनामिका एवं कनिष्ठा में माना जाता है।
दो या दो से अधिक उँगलियों के मेल से जो यौगिक क्रियाएँ संपन्न
की जाती हैं, उन्हें योग मुद्रा कहा जाता है, जो इस प्रकार हैं-
1. वायु मुद्रा- यह मुद्रा तर्जनी को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने से
बनती है।
2. शून्य मुद्रा- यह मुद्रा बीच की उँगली मध्यिका को अँगूठे की जड़ में
स्पर्श कराने से बनती है।
3. पृथ्वी मुद्रा- यह मुद्रा अनामिका को अँगूठे की जड़ में स्पर्श कराने
से बनती है।
4. प्राण मुद्रा- यह मुद्रा अँगूठे से अनामिका एवं कनिष्का दोनों के
स्पर्श से बनती है।
5. ज्ञान मुद्रा- यह मुद्रा अँगूठे को तर्जनी से स्पर्श कराने पर
बनती है।
6. वरुण मुद्रा- यह मुद्रा दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में फँसाकर
बाएँ अँगूठे को कनिष्का का स्पर्श कराने से बनती है। सभी मुद्राओं के
लाभ अलग-अलग हैं।
दोनों हाथों को जोड़कर जो मुद्रा बनती है, उसे प्रणाम मुद्रा कहते हैं। जब ये दोनों लिए हुए हाथ मस्तिष्क तक पहुँचते हैं तो प्रणाम मुद्रा बनती है।
प्रणाम मुद्रा से मन शांत एवं चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न होती है।
अतः आइए, हेलो, हाय, टाटा, बाय को छोड़कर प्रणाम मुद्रा अपनाएँ
और चित्त को प्रसन्न रखें।