शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

यदि हमें आर्थिक लाभ प्राप्त करना हो

यदि हमें आर्थिक लाभ प्राप्त करना हो, तो नियम पूर्वक अपने घर के मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
अगर हमें शत्रुओं से पीड़ा हो, तो सरसों के तेल का दीपक भैरव जी के सामने जलाना चाहिए।
भगवान सूर्य की प्रसन्नता के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
शनि ग्रह की प्रसन्नता के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
पति की आयु के लिए महुए के तेल का
और राहु-केतु ग्रह के लिए अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
किसी भी देवी या देवता की पूजा में शुद्ध गाय का घी या एक फूल बत्ती या तिल के तेल का दीपक आवश्यक रूप से जलाना चाहिए।
दो मुखी घी वाला दीपक माता सरस्वती की आराधना के समय और शिक्षा प्राप्ति के लिए जलाना चाहिए।
भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति के लिए तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए। 


मुख्यद्वार के पास कभी भी कूड़ादान ना रखें इससे पड़ोसी शत्रु हो जायेंगे.
सूर्यास्त के समय किसी को भी दूध, दही या प्याज मागने पर ना दें इससे घर की बरकत समाप्त हो जाती है.
छत पर कभी भी अनाज या बिस्तर ना धोएं..हाँ सुखा सकते है इससे ससुराल से सम्बन्ध खराब होने लगते है
फल खूब खाओ स्वास्थ्य के लिए अच्छे है लेकिन उसके छिलके कूडादान में ना डालें अलग रखें बाद में बाहर दाल सकते है इससे मित्रों से लाभ होगा.
माह में एक बार किसी भी दिन घर में मिश्री युक्त खीर जरुर बनाकर परिवार सहित एक साथ खाएं अर्थात जब पूरा परिवार घर में इकट्ठा हो उसी समय खीर खाएं तो माँ लक्ष्मी की जल्दी कृपा होती है.
माह में एक बार अपने कार्यालय में भी कुछ मिष्ठान जरुर ले जाएँ उसे अपने साथियों के साथ या अपने अधीन नौकरों के साथ मिलकर खाए तो धन लाभ होगा..
रात्री में सोने से पहले रसोई में बाल्टी भरकर रखें इससे क़र्ज़ से शीघ्र मुक्ति मिलती है.यदि बाथरूम में बाल्टी भरकर रखें तो जीवन में उन्नति के मार्ग में बाधा नही आती है
वृहस्पतिवार के दिन घर कोई भी पीली वस्तु खाएं हरी वस्तु ना खाए तथा बुधवार के दिन हरी वस्तु खाएं लेकिन पीली वस्तु बिलकुल ना खाएं इससे सुख समृद्धि बड़ेगी.
रात्री को झूठे बर्तन कदापि ना रखे इसे पानी से निकाल कर रख सकते है हानि से बचोगें.
स्नान के बाद गीले या एक दिन पहले के प्रयोग किये गये तौलिये का प्रयोग ना करें इससे संतान हठी व परिवार से अलग होने लगती है अपनी बात मनवाने लगती है अतः रोज़ साफ़ सुथरा और सुखा तौलिया हो प्रयोग करें.
कभी भी यात्रा में पूरा परिवार एक साथ घर से ना निकलें आगे पीछे जाएँ इससे यश की वृद्धि होगी.

मंगलवार, 25 अगस्त 2015

नजर उतारने के उपाय



नजर उतारने के उपाय
१॰ बच्चे ने दूध पीना या खाना छोड़ दिया हो, तो रोटी या दूध को बच्चे पर से ‘आठ’ बार उतार के कुत्ते या गाय को खिला दें।
२॰ नमक, राई के दाने, पीली सरसों, मिर्च, पुरानी झाडू का एक टुकड़ा लेकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर से ‘आठ’ बार उतार कर अग्नि में जला दें। ‘नजर’ लगी होगी, तो मिर्चों की धांस नहीँ आयेगी।
३॰ जिस व्यक्ति पर शंका हो, उसे बुलाकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर उससे हाथ फिरवाने से लाभ होता है।
४॰ पश्चिमी देशों में नजर लगने की आशंका के चलते ‘टच वुड’ कहकर लकड़ी के फर्नीचर को छू लेता है। ऐसी मान्यता है कि उसे नजर नहीं लगेगी।
५॰ गिरजाघर से पवित्र-जल लाकर पिलाने का भी चलन है।
६॰ इस्लाम धर्म के अनुसार ‘नजर’ वाले पर से ‘अण्डा’ या ‘जानवर की कलेजी’ उतार के ‘बीच चौराहे’ पर रख दें। दरगाह या कब्र से फूल और अगर-बत्ती की राख लाकर ‘नजर’ वाले के सिरहाने रख दें या खिला दें।
७॰ एक लोटे में पानी लेकर उसमें नमक, खड़ी लाल मिर्च डालकर आठ बार उतारे। फिर थाली में दो आकृतियाँ- एक काजल से, दूसरी कुमकुम से बनाए। लोटे का पानी थाली में डाल दें। एक लम्बी काली या लाल रङ्ग की बिन्दी लेकर उसे तेल में भिगोकर ‘नजर’ वाले पर उतार कर उसका एक कोना चिमटे या सँडसी से पकड़ कर नीचे से जला दें। उसे थाली के बीचो-बीच ऊपर रखें। गरम-गरम काला तेल पानी वाली थाली में गिरेगा। यदि नजर लगी होगी तो, छन-छन आवाज आएगी, अन्यथा नहीं।
८॰ एक नींबू लेकर आठ बार उतार कर काट कर फेंक दें।
९॰ चाकू से जमीन पे एक आकृति बनाए। फिर चाकू से ‘नजर’ वाले व्यक्ति पर से एक-एक कर आठ बार उतारता जाए और आठों बार जमीन पर बनी आकृति को काटता जाए।
१०॰ गो-मूत्र पानी में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाए और उसके आस-पास पानी में मिलाकर छिड़क दें। यदि स्नान करना हो तो थोड़ा स्नान के पानी में भी डाल दें।
११॰ थोड़ी सी राई, नमक, आटा या चोकर और ३, ५ या ७ लाल सूखी मिर्च लेकर, जिसे ‘नजर’ लगी हो, उसके सिर पर सात बार घुमाकर आग में डाल दें। ‘नजर’-दोष होने पर मिर्च जलने की गन्ध नहीं आती।
१२॰ पुराने कपड़े की सात चिन्दियाँ लेकर, सिर पर सात बार घुमाकर आग में जलाने से ‘नजर’ उतर जाती है।
१३॰ झाडू को चूल्हे / गैस की आग में जला कर, चूल्हे / गैस की तरफ पीठ कर के, बच्चे की माता इस जलती झाडू को 7 बार इस तरह स्पर्श कराए कि आग की तपन बच्चे को न लगे। तत्पश्चात् झाडू को अपनी टागों के बीच से निकाल कर बगैर देखे ही, चूल्हे की तरफ फेंक दें। कुछ समय तक झाडू को वहीं पड़ी रहने दें। बच्चे को लगी नजर दूर हो जायेगी।
१४॰ नमक की डली, काला कोयला, डंडी वाली 7 लाल मिर्च, राई के दाने तथा फिटकरी की डली को बच्चे या बड़े पर से 7 बार उबार कर, आग में डालने से सबकी नजर दूर हो जाती है।
१५॰ फिटकरी की डली को, 7 बार बच्चे/बड़े/पशु पर से 7 बार उबार कर आग में डालने से नजर तो दूर होती ही है, नजर लगाने वाले की धुंधली-सी शक्ल भी फिटकरी की डली पर आ जाती है।
१६॰ तेल की बत्ती जला कर, बच्चे/बड़े/पशु पर से 7 बार उबार कर दोहाई बोलते हुए दीवार पर चिपका दें। यदि नजर लगी होगी तो तेल की बत्ती भभक-भभक कर जलेगी। नजर न लगी होने पर शांत हो कर जलेगी।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना उपाय :



दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना उपाय :
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1- घर के बाहर कुंकुम से स्वस्तिक का चिह्न रोज बनाएं। यह बहुत ही सौभाग्यशाली चिह्न है।
2- यदि गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।
3- यदि कोई रोग लंबे समय तक न जाए तो एख रूपए का चमकीला सिक्का रात को सिरहाने रखकर सो जाएं। सुबह उसे शमशान की सीमा पर जाकर चुपचाप फेंक आएं। रोग समाप्त हो जाएगा।
4- कभी-कभी बेडरूम की खिड़की से नकारात्मक वस्तुएं देती हैं जैसे- सूखा पेड़, फैक्ट्री की चिमनी से निकलता हुआ धुआं आदि। ऐसे दृश्यों से बचने के लिए खिड़कियों पर परदा डाल दें।
5- घर के मुख्य द्वार पर सफेद आंकड़े का पौधा लगाने से उस घर के सदस्यों पर कोई तांत्रिक अथवा ऊपरी बाधा असर नहीं करती। साथ ही उस घर में धन का अभाव नहीं रहता।
6 - रोज सुबह श्रीआदित्य ह्रदयस्त्रोत का पाठ करें। सूर्य यंत्र का निर्माण करके तीन माला रोज नीचे लिखे सूर्य मंत्र का जप करें। ऐसा करने से ह्रदय रोग में काफी लाभ होगा।
मंत्र- ऊँ घृणि: सूर्याय नम:
7- आषाढ़ शुक्ल पंचमी के दिन जो अपनी कमर से सिरिस की जड़ बांधता है और चावल का पानी पीता है। उसे सर्पदंश का भय नहीं होता।

सोमवार, 24 अगस्त 2015

दुर्घटना योग

आज बात करते है दुर्घटना योग की आज की लाइफ मे भाग दौड आम बात है अकसर लोग दुर्घटना का शिकार होते है एक तो कभी कभी एक हर बार होता हो ऐ बडो के साथ छोटो मे भी होता है यानी बच्चे अकसर चोट खाते है भले ही ऐ आम बात है लेकिन अधिकतर को चोट नही लगती और कुछ को थोडे से चोट लग जाती है। 
अष्टम भाव में मंगल, राहु, केतु, शनि शत्रु राशि के स्थित हों और नवांश में भी उनकी स्थिति अच्छी नहीं हो और किसी शुभग्रहों की दृष्टि उन पर नहीं हो तो दुर्घटनाएं गम्भीर होती है। वही मगंल शनी की युति आठवे मे हो तो अकसर वाहनो से चोट खाता है यही युति चौथे मे हो राहू आठवे हो चद्र केतू साथ हो नीचगत हो तो जातक का झगडालू स्वभाव होता है लडने मे झगडे मे चोट खाता है और देता है । मगंल देव शनि और सुर्य चौथे मे शत्रुगत हो नीचगत हो केतू बुध साथ हो तो पिता की समपत्ती के लिऐ भाईयो मे टकराव होता है मारकाट कोर्ट केस भटकता है ।वही अकेला मगंल आठवे मे नीचगत हो तो आग से भय रहता है । चोट देने मे केतू देव और गुरू भी साथ देते अकसर खराब हालाद मे हल्की सी चोट पर भी हड्डी मे चोट देता है टूटना काफी समय मे वो जुडती है । ऐसे लोगो के हड्डीयो मे दर्द रहता है । जन्म से यदि केतू देव कुडली मे पिडित हो शनी के साथ हो तो बच्चे को चोट लगती रहती है वो कुत्ते को भी रोटी देगा तो कुत्ता भी काट लेगा यानी कुछ चीज छेडेगा तो वो खराब होगी ही लेकिन खुद पर भी चोट लगती है ।केतू देव और शनी देव जब भी एक साथ खराब होगे तो बिमारी ही अचानक देता रहता है या वो बिमार रहते है दशा या गोचरफल मे आते ही अचानक कोई न कोई बिमारी देगा लेकिन रिर्पोट मे कुछ नी आता वही शनी देव के खराब हालाद मे मकान बनाते ही बिमारी और दुर्घटना देने लगता है ।

गोमती चक्र



गोमती चक्र एक ऐसा पत्थर है जिसका उपयोग तंत्र क्रियाओं में किया जाता है। यह बहुत ही साधारण सा दिखने वाला पत्थर है लेकिन इसका यह बहुत प्रभावशाली है। इसके कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
1- यदि बार-बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ गिरना बंद हो जाता है।
2- यदि कोई कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जाए तो उस दिन कोर्ट-कचहरी में सफलता प्राप्त होती है।
3- यदि शत्रु बढ़ गए हों तो जितने अक्षर का शत्रु का नाम है उतने गोमती चक्र लेेकर उस पर शत्रु का नाम लिखकर उन्हें जमीन में गाड़ दें तो शत्रु परास्त हो जाएंगे।
4- यदि पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में हलूं बलजाद कहकर फेंद दें, मतभेद समाप्त हो जाएगा।
5- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।
6- व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।
7- यदि गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।
8- गोमती चक्र को होली के दिन थोड़ा सिंदूर लगाकर शत्रु का नाम उच्चारण करते हुए जलती हुई होली में फेंक दें। आपकी शत्रु भी मित्र बन जाएगा।
9- अगर कोई व्यक्ति होली के दिन 7 गोमती चक्र को सवा मीटर कपड़े में बांधकर अपने पूरे परिवार के ऊपर से ऊतारकर किसी बहते जल में फेंक दें तो यह एक तरह से आपके परिवार की तांत्रिक रक्षा कवच का कार्य करेगा।
10- चार गोमती चक्र को अगर रोगी के बिस्तर के साथ बांध दें तो कुछ ही दिनों में रोगी स्वस्थ होने लगेगा। रोगी के पूर्ण स्वस्थ होने पर इन्हें सुबह के वक्त पीपल के पेड़ के नीचे गाढ़ दें।
11- यदि 11 गोमती चक्र को पीले वस्त्र में लपेट कर तिजोरी में इस दिन रखें तो वर्ष भर तिजोरी भरी रहेगी।

रविवार, 23 अगस्त 2015

ग्रह बाधा निवारण स्नान विधि दे

ऊँ नमो आदेश गुरु जी को आदेश मैं आपका दोस्त पंडित नरेश नाथ आपको आज विचित्र ग्रह बाधा निवारण स्नान विधि दे रहा हूँ जिस का चमत्कार आप संवय देख सकते हैं ग्रह से बचने के लिए हम तंत्र मंत्र य॔त्र का सहारा लेते है और खर्च भी बहुत आता हैं पर इस विधि से आप आसानी से सुखी जीवन जी सकते हैं 
आपको एक मिट्टी की हांडी ढक्कन के साथ लेनी हैं उसमें 
1 केवल एक मुट्ठी चावल
2 केवल एक मुट्ठी सरसों 
3 एक ही मुट्ठी नगर मोथा
4 एक ही मुट्ठी सुखा आंवला
5 (21) दूर्वा घास के पीस
6(21) तुलसी के पत्ते
7 [21]बील के पत्ते
8 [2] पीस सबूत हल्दी
इन सबको हांडी मे डाल पानी भरे और रोज सुबह नहाने के पानी में एक कटोरी जल नहाने के पानी में मिला ले और एक कटोरी जल फीर से हांडी में डाल दे ऐसा 40 दिन करें यदि इस से दुर्गंध आए तो इससे पौधे की जड में डाल कर नयी सामग्री भर दे 40 दिन में आपको सुखद अनुभव होगा आपकी जो समस्या अब तक दूर नही हुई वह अब दूर होगी 

शनिवार, 22 अगस्त 2015

तांबे का पानी पीने से होते हैं यह 16 लाभ

तांबे का पानी पीने से होते हैं यह 16 लाभ

आपने कई लोगों को तांबे के बर्तन में रखा पानी पीते देखा होगा और लोगों को  कहते भी सुना होगा, कि तांबे के बर्तन में रखा पानी, के लिहाज से बेहद फायदेमंद होता है। क्या आप जानते हैं, तांबे के बर्तन में रखे पानी का सच ? अगर जानना चाहते हैं, इसके लाभदायक गुणों के बारे में तो जरूर पढ़िए, यह 10 प्रमुख लाभ - 
 1  तांबा यानि कॉपर, सीधे तौर पर आपके शरीर में की कमी को पूरा करता है और बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं से आपकी रक्षा कर आपको पूरी तरह से स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।

2  तांबे के बर्तन में रखा पानी पूरी तरह से शुद्ध माना जाता है। यह सभी प्रकार के बैक्टीरिया को खत्म कर देता है, जो डायरिया, पीलिया, डिसेंट्री और अन्य प्रकार की बीमारियों को पैदा करते हैं। 

3  तांबे में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होने के कारण शरीर में दर्द, ऐंठन और सूजन की समस्या नहीं होती। ऑर्थराइटिस की समस्या से निपटने में भी तांबे का पानी अत्यधि‍क फायदेमंद होता है।

4  इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट कैंसर से लड़ने की क्षमता में वृद्धि‍ करते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार तांबे कैंसर की शुरुआत को रोकने में मदद करता है और इसमें कैंसर विरोधी तत्व मौजूद होते है।
 
5  पेट की सभी प्रकार की समस्याओं में तांबे का पानी बेहद फायदेमंद होता है। प्रतिदिन इसका प्रयोग करने से पेट दर्द, गैस, एसिडिटी और कब्ज जैसी परेशानियों से निजात मिल सकती है।

 शरीर की आंतरिक सफाई के लिए तांबे का पानी कारगर होता है। इसके अलावा यह लिवर और किडनी को स्वस्थ रखता है और किसी भी प्रकार के इंफेक्शन से निपटने में तांबे के बर्तन में रखा पानी लाभप्रद होता है। 

7  तांबा अपने एंटी-बैक्‍टीरियल, एंटीवायरल और एंटी इंफ्लेमेट्री गुणों के लिए भी जाना जाता है। यह शरीर के आंतरिक व बाह्य घावों को जल्‍दी भरने के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है।

8  तांबे में भरपूर मात्रा में मौजूद मिनरल्स थॉयराइड की समस्या को दूर करने में सहायक होते हैं। थॉयराइड ग्रंथि‍ के सही क्रियान्वयन के लिए तांबा बेहद उपयोगी है। 

 तांबे में उपस्थि‍त एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व असमय बढ़ती उम्र के निशान को कम कर आपको जवां बनाए रखता है। इसके अलावा यह फ्री रैडिकल में भी लाभदायक है, जो त्वचा को झुर्रियों, बारीक लाइनों और दाग-धब्बों से बचाकर स्वस्थ और जवां बनाए रखता है।

10  एनीमिया की समस्या होने पर तांबे में रखा पानी काफी लाभदायक होता है। यह भोज्य पदार्थों से आयरन को आसानी से सोख लेता है। जो एनीमिया से निपटने के लिए बेहद जरूरी है।

11  तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से त्वचा पर किसी प्रकार की समस्याएं नहीं होती। यह फोड़े, फुंसी, मुंहासे और त्वचा संबंधी अन्य रोगों को पनपने नहीं देता जिससे आपकी त्वचा साफ और चमकदार दिखाई देती है।
 
12  त्वचा को अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाने के लिए मेलानिन के निर्माण में तांबा अहम भूमिका निभाता है। मेलानिन त्वचा, आंखों एवं बालों के रंग के लिए जिम्मेदार तत्व होता है। 

13  तांबे का पानी पाचनतंत्र को मजबूत कर बेहतर पाचन में सहायता करता है। रात के वक्त तांबे के बर्तन में पानी रखकर सुबह पीने से पाचन क्रिया दुरूस्त होती है। इसके अलावा यह अतिरिक्त वसा को कम करने में भी बेहद मदददगार साबित होता है। 

14  दिल को स्वस्थ बनाए रखकर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। इसके अलावा यह हार्ट अटैक के खतरे को भी कम करता है। यह वात, पित्त और कफ की शिकायत को दूर करने में मदद करता है।

15  एनीमिया की समस्या होने पर तांबे में रखा पानी काफी लाभदायक होता है। यह भोज्य पदार्थों से आयरन को आसानी से सोख लेता है। जो एनीमिया से निपटने के लिए बेहद जरूरी है। 

16  मस्तिष्क को उत्तेजित कर उसे सक्रिय बनाए रखने में तांबे का पानी बहुत सहायक होता है। इसके प्रयोग से स्मरणशक्ति मजबूत होती है, और दिमाग तेज होता है।










दूर्वा अथवा 'दूब'

दूर्वा अथवा 'दूब' ज़मीन पर फैल कर बढ़ने वाली घास है, जिसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है।
इस घास का वैज्ञानिक नाम 'साइनोडान डेक्टीलान' है। यह घास औषधि के रूप में भी विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है। वर्षा काल में दूर्वा घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है। दूर्वा सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है।
हिन्दू मान्यताओं में दूर्वा घास प्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश को बहुत प्रिय है।
दूर्वा को संस्कृत में 'अमृता', 'अनंता', 'गौरी', 'महौषधि', 'शतपर्वा', 'भार्गवी' इत्यादि नामों से भी जानते हैं।
हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है।
चाहे 'नाग पंचमी' का पूजन हो या विवाह आदि का उत्सव या फिर अन्य कोई शुभ मांगलिक अवसर, पूजन-सामग्री के रूप में दूर्वा की उपस्थिति से उस समय उत्सव की शोभा और भी बढ़ जाती है।
दूर्वा का पौधा ज़मीन से ऊँचा नहीं उठता, बल्कि ज़मीन पर ही फैला हुआ रहता है, इसलिए इसकी नम्रता को देखकर गुरु नानक ने एक स्थान पर कहा है-
नानकनी चाहो चले, जैसे नीची दूब
और घास सूख जाएगा, दूब खूब की खूब।
भगवान गणेश की पूजा में दो, तीन या पाँच दुर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है।
तीन दूर्वा का प्रयोग यज्ञ में होता है। ये 'आणव'[1], 'कार्मण'[2] और 'मायिक'[3] रूपी अवगुणों का भस्म करने का प्रतीक है।

‪#‎रुद्राभिषेक‬:- रूद्र अर्थात भूत भावन शिव का अभिषेक***

‪#‎रुद्राभिषेक‬:- रूद्र अर्थात भूत भावन शिव का अभिषेक***
• जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
• असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
• भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।
• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
• धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
• तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है ।
• पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
• ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
• सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै।
• शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
• सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
• शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।
• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
• गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है।
"परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है"
"विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत सेभी अभिषेक किया जाता है"
*रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था। जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।
*भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक
||> संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है ||

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

आप उन ग्रहो के समबन्दित पौधो की जड को धारण कर सकते है



आज बताते है की यदि आपको रत्न बताऐ गये हो और आप उसे खरीद न सको तो आप उन ग्रहो के समबन्दित पौधो की जड को धारण कर सकते है उनको शुध्द करके धारण किया जा सकता है इनकी खासियत ऐ है की ऐ किसी भी परिस्थतिथि मे धारण किऐ जा सकते है चाहे उनकी स्थति कैसी भी हो यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो तोव्यक्ति का भाग्योदय नहीं हो पाता है। अशुभ फल देने वाले ग्रहों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं।ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना एक उपाय है। असली रत्न काफी मूल्यवान होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर होते हैं।इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं, लेकिन धन अभाव मेंइन्हें धारण नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।
सूर्य ग्रह के लिए यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना चाहिए। इससे सूर्य से शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
चंद्र ग्रह के लिएचंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।
मंगल ग्रह के लिए मंगल के लिए अनंतमूल की जड़ धारण करेमंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।
बुध ग्रह के लिए बुध के लिए विधारा की जड़ धारण करेबुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधी झाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।
गुरु ग्रह के लिएगुरु के लिए केले की जड़ धारण करेगुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।शुक्र ग्रह के लिएशुक्र के लिए गुलर की जड़ धारण करेगुलर की जड़ को सफेद वस्त्र मेंलपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
शनि ग्रह के लिएशनि के लिए शमी की जड़ धारण करेशनि देव को प्रसन्न करने के लिएशमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए
राहु ग्रह के लिए राहू के लिए सफ़ेद चन्दन का टुकड़ा धारण करेकुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में हो तो राहु को शुभ बनाने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करना चाहिए।केतु ग्रह के लिएकेतु के लिए अश्वगंधा की जड़ का टुकड़ा धारण करे
केतु से शुभ फल पाने के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।

शुगर के मरीज के लिए

माेर पंख चमत्कारी हाेता है

चमत्कारी हाेता है माेर पंख
श्रीकृष्ण का श्रृंगार मोर पंख के बिना अधूरा ही लगता है। वे अपने मुकुट में मोर पंख भी विशेष रूप से धारण करते हैं। मोर पंख का संबंध केवल श्रीकृष्ण से नहीं, बल्कि अन्य देवी-देवताओं से भी है। शास्त्रों के अनुसार मोर के पंखों में सभी देवी-देवताओं और सभी नौ ग्रहों का वास होता है। प्राचीन काल में एक मोर के माध्यम से देवताओं ने संध्या नाम के असुर का वध किया था। पक्षी शास्त्र में मोर और गरुड़ के पंखों का विशेष महत्व बताया गया है
आइये जानते हैं मोर पंख आपके जीवन को किस तरह सुख- समृद्धि से भर देता है-
मोर का शत्रु सर्प है. अत: ज्योतिष में जिन लोगों को राहू की स्थिति शुभ नहीं हो उन्हें मोर पंख सदैव अपने साथ रखना चाहिए.
आयुर्वेद में मोर पंख से तपेदिक, दमा, लकवा, नजला और बांझपन जैसे दुसाध्य रोगों में सफलता पूर्वक चिकित्सा बताई गई है.
जीवन में मोर पंख से कई तरह के संकट दूर किये जा सकते हैं. अचानक कष्ट या विपत्ति आने पर घर अथवा शयनकक्ष के अग्नि कोण में मोर पंख लगाना चाहिए. थोड़े ही समय में सकारात्मक असर होगा.
धन-वैभव में वृद्धि की कामना से निवेदन पूर्वक नित्य पूजित मन्दिर में श्रीराधा-कृष्ण के मुकुट में मोर पंख की स्थापना करके/करवाकर 40वें दिन उस मोर पंख को लाकर अपनी तिजोरी या लॉकर में रख दें. धन-संपत्ति में वृद्धि होना प्रारम्भ हो जायेगी. सभी प्रकार के रुके हुए कार्य भी इस प्रयोग से बन जाते हैं.
जिन लोगों की कुण्डली में राहू-केतु कालसर्प योग का निर्माण कर रहे हों उन्हें अपने तकिये के खोल में ७ मोर पंख सोमवार की रात्रि में डालकर उस तकिये का उपयोग करना चाहिए साथ ही शयनकक्ष की पश्चिम दिशा की दीवार पर मोर पंखों का पंखा जिसमें कम से कम 11 मोर पंख लगे हों लगा देना चाहिए. इससे कुण्डली में अच्छे ग्रह अपनी शुभ प्रभाव देने लगेंगे और राहू-केतु का अशुभत्व कम हो जायेगा.
अगर बच्चा जिद्दी होता जा रहा हो तो उसे नित्य मोर पंखों से बने पंखे से हवा करनी चाहिए या अपने सीलिंग फैन पर ही मोर पंख पंखुड़ियों पर चिपका देना चाहिए.
नवजात शिशु के सिरहाने चांदी के तावीज में एक मोर पंख भरकर रखने शिशु को डर नहीं लगेगा नजर इत्यादि का डर भी नहीं रहेगा.
कोई शत्रु ज्यादा तंग कर रहा हो मोर के पंख पर हनुमान जी के मस्तक के सिंदूर से मंगलवार या शनिवार रात्रि में उस शत्रु का नाम लिखकर के अपने घर के मन्दिर में रात भर रखें. प्रात:काल उठकर बिना नहाये-धोये चलते पाने में बहा देने से शत्रु-शत्रुता छोड़कर मित्रवत् व्यवहार करने लगता है. इस तरह मोर पंख से हम अपने जीवन के अमंगलों को हटाकर मंगलमय स्थिति को ला सकते हैं !

रविवार, 9 अगस्त 2015

पूजा से सम्बंधित जरूरी नियम

पूजा से सम्बंधित जरूरी नियम
पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए। अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। इन बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ प्राप्त हो सकते हैं।
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ये नियम इस प्रकार हैं...
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1. सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।
2. शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
3. मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है।
4. सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
5. तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
6. शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए। इसके बाद प्रात: 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए। इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुन: पूजन और आरती। रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित रूप से पांच बार पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।
7. प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।
8. स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यह इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।
9. मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।
10. केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।
11. दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोडऩी चाहिए।
12. शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।
13. तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है।
14. आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।
15. तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।
16. हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।
17. बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।
18. पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।
19. घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।
20. पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।
21. गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें।
22. अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें। शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।
23. मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता --पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें,उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।
24. विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।

" बिल्वपत्र की महत्ता "

ॐ नमः शिवाय ... मित्रों !
आज का दिन आप सभी के लिए शुभ हो ...
" बिल्वपत्र की महत्ता "
बिल्वाष्टक स्तुति ने बताया गया हैं कि बेलपत्ते सत्व, रज और तमोगुण की तरफ संकेत करते हैं , इसलिए इन पत्तों को त्रिगुणाकार रुप कहा जाता हैं।
जिस समय हम सारी सृष्टि का विचार करते है यह तीन तत्वों से परिपूर्ण नजर आती हैं,
स्त्री, पुरुष तथा नपुंसक ,
मनुष्य, देव तथा राक्षस,
जलचर, नभचर तथा थलचर ,
इस सृष्टि का सृजन , पालन तथा संहार भी तीन देवता ही करते है...
ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश।
जैसे बिल की पत्तियां जाल से जुड़ी है उसी प्रकार यह सारा त्रीत्व चेतना से जुड़ा हुआ हैं। बिलपत्र को त्रिनेत्र की संज्ञा भी दी गई हैं।
इसी विवेक के नेत्र (तीसरी आंख) से शिव जी कामदेव शमन करते हैं ...
इसलिए भी शिव को बिलपत्र अर्पण करना चाहिए।
पुराणों में श्रावण मास में भगवान शंकर की पूजा अर्चना को शुभ फलदायी बताया गया है।
शिव अभिषेक में नैवेद्य के रूप में बिल्व पत्रों का विशेष महत्व है ...
ऐसा माना जाता है कि शिवप्रिय बिल्व साक्षात् महादेव स्वरूप है तथा बिल्व पत्र में तीनों लोक के तीर्थ स्थापित हैं।
बिल्व की महत्ता का वर्णन करते हुए शिवपुराण में वर्णित है कि बिल्व की जड़ों के समीप शिवलिंग स्थापित करने से साधक के महापाप भी कट जाते हैं तथा
दानादि कर्म से निर्धनता दूर होती है।
नियमित रूप से बिल्व पत्रों से भगवान शिव का अभिषेक करने वाला उपासक अंततोगत्वा शिवलोक को प्राप्त होकर शिवमय हो जाता है।
लिंगपुराण में वर्णित है कि यदि उपासक को शिव अभिषेक हेतु नूतन बिल्व पत्र की प्राप्ति न हो तो वह अर्पित किये हुए बिल्व पत्र को धोकर शिव अर्चना में प्रयोग करे।
इसी से साधक का कल्याण हो जाता है।
शास्त्रों में बिल्व को अनेक नामों से परिभाषित किया गया है जिनमें
शांडिल्य,
शिव,
शिवप्रिय,
पापहन,
जय,
विजय,
विष्णु,
त्रिनपत,
श्राद्धदेवक आदि मुख्य हैं।
* तत्वज्ञान की प्राप्ति के लिए उपासक के लिए बिल्व वृक्ष की जड़ के पास दीपक प्रज्वलित करना शुभ बताया गया है।
* ऐसा माना गया है कि जो व्यक्ति बिल्व वृक्ष का रोपण करता है, उसके कुल में कई पीढिय़ों तक लक्ष्मी निवास करती है।
* शिव अभिषेक हेतु तीन, पांच, अथवा सात के समूह वाले बिल्व पत्र का प्रयोग कल्याणकारी है। इनमें पांच अथवा सात पत्रों के समूह की विशिष्टता है।
साधक को निम्र मंत्र के साथ बिल्व पत्र तोड़कर भगवान शिव को अर्पित करने चाहिए-
"अमृतोद्धव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा। गृहमि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्।"
* आयुर्वेद के अनुसार बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
इस प्रकार यह एक औषधि के रूप में काम आता है।
* बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है।
ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं।
इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं।
चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।
* शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
साधक को जीवन में कभी भी पैसों की कोई समस्या नहीं रहती है।
* शास्त्रों मे वर्णित है कि जिन स्थानों पर बिल्ववृक्ष हैं वह स्थान काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र है।
ऐसी जगह जाने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
* ध्यान रखें इन कुछ तिथियों पर बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
ये तिथियां हैं -
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार तथा प्रतिदिन दोपहर के बाद बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
ऐसा करने पर पत्तियां तोडऩे वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है।
* शास्त्रों के अनुसार बिल्व का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर-दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है और बीच में हो तो मधुर जीवन बनता है।
* घर में बिल्ववृक्ष लगाने से परिवार के सभी सदस्य कई प्रकार के पापों के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं।
इस वृक्ष के प्रभाव से सभी सदस्य यशस्वी होते हैं, समाज में मान-सम्मान मिलता है।
* बिल्ववृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती है।
* बिल्व की जड़ का जल अपने सिर पर लगाने से उसे सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य पा जाता है।
* गंध, फूल, धतूरे से जो बिल्ववृक्ष की जड़ की पूजा करता है, उसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं।
* बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता है, वह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता ,
क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है यानी इसमे देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।
* पुराणों के अनुसार रविवार के दिन और द्वादशी तिथि पर बिल्ववृक्ष का विशेष पूजन करना चाहिए।
इस पूजन से व्यक्ति से ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्त हो जाता है।
* बिल्व पत्र अखंडित हों एवं चढ़ते समय अंगूठा , मध्यमा एवं तर्जनी से सीधा पकड़ें ...
शिव लिंग पर चढ़ते समय बिल्व पत्र उल्टा चढ़ाएँ ।
* शिव अभिषेक में बिल्व पत्र अर्पित करते समय निम्र मंत्र का उच्चारण मंगलमयी व मोक्षकारी है -
" त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्र च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ! "
उपरोक्त मंत्र पढ़ने के पश्चात इन मंत्रों द्वारा भी बिल्व पत्र चड़ा सकते हैं -
1 ॐ अघोराय नमः
2 ॐ पशुपत्ये नमः
3 ॐ शिवाय नमः
4 ॐ विरुपाय नमः
5 ॐ विश्वरूपाय नमः
6 ॐ त्रयंबकाय नमः
7 ॐ भैरवाय नमः
8 ॐ शूल पांडिन्ये नमः
9 ॐ कपिर्दने नमः
10 ॐ ईशाय नमः
11 ॐ महेशय नमः
12 ॐ परदेशवाराय नमः
13 ॐ भूतनाथाय नमः
14 ॐ नागेश्वराय नमः
15 ॐ नीलकंठाय नमः
16 ॐ उमा महेश्वराय नमः
एवं अंत मे -
17 ॐ सम्पूर्ण शिव परिवाराय नमः !!
!! ॐ नमः शिवाय !!

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

(रविवार, बुधवार या गुरुवार)। यही तीन दिन भैरव नाथ के माने गए हैं

 रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। अगर कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया। अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें लेकिन सिर्फ हफ्ते के इन्हीं तीन दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार)। यही तीन दिन भैरव नाथ के माने गए हैं।
कार्य में सफलता के लिए
संपूर्ण मेहनत परिश्रम और लगन से काम करने से बावजूद भी सफलता नहीं मिल रही हो तो काम पर जाने से पहले नित्यकर्म से निवृत्त हो स्नानोपरांत अपने हाथ में 9 हल्दी की गांठ ले लें और 9 माला गणेश गायत्री का जाप करने के उपरांत घर से बाहर निकले। यह हल्दी की गांठ गणेश मंदिर में चढ़ा दें। अवश्य कार्य में सफलता मिलेगी।
गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं
गणेश जी बुद्घि के स्वामी हैं और बुध ग्रह पर इनका प्रभाव होता है। नियमित 5 या ग्यारह दूर्वा गणेश जी को अर्पित करने से बौद्घिक क्षमता बढ़ती है।
सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालों को सफेद रंग के विनायक की मूर्ति, चित्र लगाने चाहिए। सर्व मंगल की कामना करने वालों को सिन्दूरी रंग के गणपति की आराधना करनी चाहिए।

गणेशजी के पूजन से घर में शुभ बुधवार को यहां बताए जा रहे उपाय किए जा सकते हैं

गणेशजी के पूजन से घर में शुभ वातावरण बना रहता है और धन संबंधी कार्यों में लाभ मिलता है। इसी वजह से हर शुभ काम की शुरुआत प्रथम पूज्य श्री गणेश के पूजन से की जाती है। इस दिन बुध ग्रह के निमित्त भी पूजा की जाती है। बुधवार को यहां बताए जा रहे उपाय किए जा सकते हैं
1. बुधवार को सुबह जल्दी स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर गणेश जी के मंदिर जाएं और श्री गणेश को दूर्वा अर्पित करें। दूर्वा की 11 या 21 गांठ अर्पित करना चाहिए।
2. गाय को हरी घास खिलाएं। शास्त्रों के अनुसार गाय को पूजनीय और पवित्र माना गया है। गौ माता की सेवा करने वाले व्यक्ति पर सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।
3. किसी ज़रुरतमंद व्यक्ति को या किसी मंदिर में हरे मूंग का दान करें। मूंग बुध ग्रह से संबंधित अनाज है। इसका दान करने से बुध ग्रह के दोष शांत होते हैं।
4. सबसे छोटी उंगली में पन्ना रत्न धारण करें। पन्ना धारण करने से पहले किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से अपनी कुंडली का अध्ययन करवा लेना चाहिए।
5. श्री गणेश को मोदक का भोग लगाएं।

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

मंगलवार को करें हनुमानजी के इन 9 उपायों में से कोई 1, मालामाल हो जाएंगे

मंगलवार को करें हनुमानजी के इन 9 उपायों में से कोई 1, मालामाल हो जाएंगे
सुबह-सुबह पीपल के कुछ पत्ते तोड़ लें और उन पत्तों चंदन या कुमकुम से श्रीराम नाम लिखें। इसके बाद इन पत्तों की एक माला बनाएं और हनुमानजी को अर्पित करें।
किसी भी हनुमान मंदिर जाएं और अपने साथ नारियल लेकर जाएं। मंदिर में नारियल को अपने सिर पर सात बार वार लें। इसके बाद यह नारियल हनुमानजी के सामने फोड़ दें। इस उपाय से आपकी सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी।
हनुमानजी को सिंदूर और तेल अर्पित करें। जिस प्रकार विवाहित स्त्रियां अपने पति या स्वामी की लंबी उम्र के लिए मांग में सिंदूर लगाती हैं, ठीक उसी प्रकार हनुमानजी भी अपने स्वामी श्रीराम के लिए पूरे शरीर पर सिंदूर लगाते हैं। जो भी व्यक्ति हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करता है उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
हनुमानजी के मंदिर में 1 नारियल पर स्वस्तिक बनाएं और हनुमानजी को अर्पित करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें
हनुमानजी के सामने रात को चौमुखा दीपक लगाएं। यह एक बहुत ही छोटा लेकिन चमत्कारी उपाय है। ऐसा नियमित रूप से करने पर आपके घर-परिवार की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं।
किसी पीपल पेड़ को जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें। इसके बाद पीपल के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।
अपनी श्रद्धा के अनुसार किसी हनुमान मंदिर में बजरंग बली की प्रतिमा पर चोला चढ़वाएं। ऐसा करने पर आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।
श्रीरामचरिमानस की चौपाइयों का जप करें। ऐसा करने में बहुत ही जल्द हनुमानजी प्रसन्न हो जाएंगे और आपको मालामाल कर देंगे
श्रीराम रक्षा स्रोत का पाठ किसी हनुमान मंदिर में करेंगे तो बहुत ही जल्द चमत्कारी फल होने लगेंगे। या किसी भी हनुमान मंदिर में जाए और श्रीराम के मंत्रों का जप करें।
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* नवग्रह शांति के अचूक उपाय *

* नवग्रह शांति के अचूक उपाय *
प्रयोग विधि :-
निम्न सामग्री को लेकर लगभग 8-10 लीटर पानी में डालकर खूब उबाल लें (लगभग १ घंटा ) । फिर इस पानी को रात भर ठंडा होने के लिए छोड़ दे । अगले दिन जब आप स्नान करने जाएँ तो इस liquid को छान कर किसी बर्तन में लगभग 2 ग्लास के आसपास निकाल कर ले जाये फिर जब आपका स्नान समाप्त हो जाये तो अंत में लगभग एक बाल्टी सादा पानी में इस liquid को मिलाकर खूब अच्छी तरह से स्नान करे , फिर देखें इसका चमत्कार !
सामग्री :-
१) कच्चा चावल (अरवा चावल ) :- १०० ग्राम
२) सरसों :- १०० ग्राम
३) नागरमोथा :- १०० ग्राम
४) सुखा आंवला :- १०० ग्राम
५) हल्दी (गाँठ वाली ) :- ५० ग्राम
६) ढुबी (दूब घास ) :- १०० ग्राम लगभग
७) तुलसी पत्र :- ५१ से १०८ पत्ता
८) बेलपत्र :- ५१ से १०८ पत्ता ( ३-३ पत्तों वाला )
लाभ :-
* कोई भी इंसान कितना ही tension में क्यों न हो ?कोई भी कार्य यदि विफल हो रहा हो !उपरोक्त प्रयोग प्रतेक मनुष्य को शारीरिक , मानसिक एवं आर्थिक रूप में तुंरत लाभ प्रदान करता है ।
*यदि किसी भी ग्रह का कोई विशिस्ट अनुष्ठान करने का कोई सलाह दिए हो और उसे करने में आप असमर्थता अनुभव कर रहे हो तो भी ऊपर लिखे प्रयोग कर आप तुंरत लाभान्वित हो सकते है --

पितृदोष की शांति के सरल और सस्ते उपाय.



पितृदोष की शांति के सरल और सस्ते उपाय..
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आमतौर पर पितृदोष के लिए खर्चीले उपाय बताए जाते हैं लेकिन यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तो भी परेशान होने की कोई बात नहीं। पितृदोष का प्रभाव कम करने के लिए ऐसे कई आसान, सस्ते व सरल उपाय भी हैं जिनसे इसका प्रभाव कम हो सकता है।
कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर रोजाना उनकी पूजा स्तुति करना चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा गुणी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।
इसी दिन अगर हो सके तो अपनी सामर्थ्यानुसार गरीबों को वस्त्र और अन्न आदि दान करने से भी यह दोष मिटता है
पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें।
शाम के समय में दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।
सोमवार प्रात:काल में स्नान कर नंगे पैर शिव मंदिर में जाकर आक के 21 पुष्प, कच्ची लस्सी, बिल्वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। 21 सोमवार करने से पितृदोष का प्रभाव कम होता है।
कुंडली में पितृदोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।
पितरों के नाम पर गरीब विद्यार्थियों की मदद करने तथा दिवंगत परिजनों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाने से भी अत्यंत लाभ मिलता है।

अंग्रेज़ अपने बच्चों को संस्कृत सीखा रहे है

अंग्रेज़ अपने बच्चों को संस्कृत सीखा रहे है 
एक share तो बनता है भाई ..............

जिस भाषा को आप गये बीते जमाने की मानते हैं उस संस्कृत को सीखने में लगे हैं अनेक विकसित देश . आओ देखें क्यों : संस्कृत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य !

1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा। संदर्भ: – फोर्ब्स पत्रिका 1987.

2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, भारतीय विक्रम संवत कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है) संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी.

3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति… स्वस्थ और बीपी, मधुमैह , कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद).

4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत,
रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी (Technology) रखती है।संदर्भ: रशियन
स्टेट यूनिवर्सिटी.

5.नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर
रहे हैं. असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से
हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं. !

6.दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय
इंडिया (भारत) में नहीं है।

7. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है। संदर्भ: – यूएनओ

8. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर
संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।

9. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985.

10. संस्कृत भाषा वर्तमान में “उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी” तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज “सरल किर्लियन
फोटोग्राफी” भी नहीं है )

11. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरत नाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव
या नटराज की एक मूर्ति है ).

1२. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है |
तो आने वाला समय अंग्रेजी का नही संस्कृत का है , इसे सीखे और सिखाएं, देश को विकास के पथ पर बढ़ाएं. —

13 अमेरिका की सबसे बड़ी संस्था NASA (National Aeronautics and Space Administration )ने संस्कृत भाषा को अंतरिक्ष में कोई भी मैसेज भेजने के लिए सबसे उपयोगी भाषा माना है ! नासा के वैज्ञानिकों की मानें तो जब वह स्पेस ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलटे हो जाते थे। इस वजह से मेसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने दुनिया के कई भाषा में प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मेसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। यह रोचक जानकारी हाल ही में एक समारोह में दिल्ली सरकार के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. जीतराम भट्ट ने दी।

मित्रो संस्कृत भाषा के बरें और अधिक विस्तार से जाने !

बिल्वपत्र की महत्ता ॐ नम: शिवाय ~

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जय भोले नाथ
बिल्वपत्र की महत्ता ॐ नम: शिवाय ~-~-~-~-~-·····~-~-~-~-~-
★शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग पर कई प्रकार की सामग्री फूल-पत्तियां चढ़ाई जाती हैं। इन्हीं में से सबसे महत्वपूर्ण है बिल्वपत्र। बिल्वपत्र से जुड़ी खास बातें जानने के बाद आप भी मानेंगे कि बिल्व का पेड बहुत चमत्कारी है---
●पुराणों के अनुसार रविवार के दिन और द्वादशी तिथि पर बिल्ववृक्ष का विशेष पूजन करना चाहिए। इस पूजन से व्यक्ति ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्त हो जाता है।
●क्या आप जानते हैं कि बिल्वपत्र छ: मास तक बासी नहीं माना जाता।  इसका मतलब यह है कि लंबे समय तक शिवलिंग पर एक बिल्वपत्र धोकर पुन: चढ़ाया जा सकता है या बर्फीले स्थानों के शिवालयों में अनुपलब्धता की स्थिति में बिल्वपत्र चूर्ण भी चढाने का विधान मिलता है।
●आयुर्वेद के अनुसार बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है। इसी प्रकार यह एक औषधि के रूप में काम आता है।
●शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। भक्त को जीवन में कभी भी पैसों की कोई समस्या नहीं रहती है।
●शास्त्रों में बताया गया है जिन स्थानों पर बिल्ववृक्ष हैं वह स्थान काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र है। ऐसी जगह जाने पर अक्षय्य पुण्य की प्राप्ति होती है।
●बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।
●ध्यान रखें इन कुछ तिथियों पर बिल्वपत्र नहीं तोडना चाहिए। ये तिथियां हैं चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार तथा प्रतिदिन दोपहर के बाद बिल्वपत्र नहीं तोडना चाहिए। ऐसा करने पर पत्तियां तोडऩे वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है।
●शास्त्रों के अनुसार बिल्व का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है और मध्य में हो तो मधुर जीवन बनता है।
●घर में बिल्ववृक्ष लगाने से परिवार के सभी सदस्य कई प्रकार के पापों के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं। इस वृक्ष के प्रभाव से सभी सदस्य यशस्वी होते हैं, समाज में मान-सम्मान मिलता है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।
●बिल्ववृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती है।
●बिल्व की जड़ का जल सिर पर लगाने से सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य मिल जाता है।
●गंध, फूल, धतूरे से जो बिल्ववृक्ष के जड़ की पूजा करता है, उसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं।
●बिल्ववृक्ष की बिल्वपत्रों से पूजा करने पर सभी पापों से मुक्ति मिल जाती हैं।
●जो बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता है, वह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता। क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है। यानी इसमें देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।
हर हर महादेव