सोमवार, 19 अप्रैल 2021

मानवशरीरमेंसप्तचक्रोंका_प्रभाव

 #मानवशरीरमेंसप्तचक्रोंका_प्रभाव


1. #मूलाधारचक्र : 


यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच 4 पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है। 


मंत्र : लं 


चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है- यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना। 


प्रभाव :  इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।


2. #स्वाधिष्ठानचक्र- 


यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी 6 पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।


मंत्र : वं


कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते। 


प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश


होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।


3. #मणिपुरचक्र : 


नाभि के मूल में स्थित यह शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।


मंत्र : रं


कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।

प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।


आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।


4. #अनाहतचक्र-


हृदयस्थल में स्थित द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।


मंत्र : यं


कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।


प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।


5. #विशुद्धचक्र- 


कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो 16 पंखुरियों वाला है। सामान्य तौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।


मंत्र : हं 


कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।


प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर 16 कलाओं और 16 विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।


6. #आज्ञाचक्र :


भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।


मंत्र : उ 


कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।


प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति सिद्धपुरुष बन जाता है।


7. #सहस्रारचक्र :


सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।


मंत्र : ॐ


कैसे जाग्रत करें :  मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।


प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है..!!

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

सप्ताह में 7 दिन होते हैं। उनका क्रम कैसे तय हुआ

 शुभकामनाएं ( भाग 2 ) मित्रो आज से हिंदू नववर्ष आरंभ हो रहा है तो इस अवसर पर क्यों न भारतीय कालगणना को और बेहतर ढंग से समझा जाये ।

अब बताएं कि एक सप्ताह में 7 दिन होते हैं। उनका क्रम कैसे तय हुआ कि रविवार के बाद सोमवार फिर मंगलवार ही आयेगा?
आकाश में 7 ग्रहों की स्थिति कक्षानुसार क्रमश: एक दूसरे के नीचे मानी गई है। जो है :-
शनि की कक्षा सबसे उपर है, फिर गुरु की, फिर गुरु के नीचे मंगल, उसके नीचे सूर्य, सूर्य के नीचे शुक्र, शुक्र के नीचे बुध था सबसे नीचे चन्द्र की कक्षा है।
एक दिन-रात में 24 होराएँ होतीं हैं। यानि हर होरा एक घण्टे के तुल्य होता है। प्रत्येक होरा का स्वामी नीचे की कक्षा की क्रम में एक-एक ग्रह होता है।
सूर्य से जीवन हैं, इसलिए उनसे शुरू करते हैं।
पहली होरा का स्वामी सूर्य हैं, इसलिए सप्ताह का पहला दिन रविवार होता है। फिर दूसरे होरा के स्वामी बनते हैं शुक्र और इस तरह एक दिन यानि सप्ताह के पहले दिन के 24 घण्टों के स्वामी इस तरह बनते हैं:-
पहला घण्टा :- सूर्य
दूसरा घण्टा :- शुक्र
तीसरा घण्टा :- बुध
चौथा घण्टा :- चंद्र
पाँचवा घण्टा :- शनि
छठा घण्टा :- गुरु
सातवां घण्टा :- मंगल
आठवां घण्टा :- सूर्य
नौंवा घण्टा :- शुक्र
दसवां घण्टा :- बुध
ग्यारहवां घण्टा :- चंद्र
बारहवां घण्टा :- शनि
तेरहवां घण्टा :- गुरु
चौदहवां घण्टा :- मंगल
पन्द्रहवां घण्टा :- सूर्य
सोलहवां घण्टा :- शुक्र
सत्रहवाँ घण्टा :- बुध
अठारहवां घण्टा :- चंद्र
उन्नीसवां घण्टा :- शनि
बीसवाँ घण्टा :- गुरु
इक्कीसवां घण्टा :- मंगल
बाईसवां घण्टा :- सूर्य
तेइसवां घण्टा :- शुक्र
चौबीसवां घण्टा :- बुध
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ये दिन पूरा हुआ। यानि अब 25वें घण्टे की होरा आएगी #चन्द्र की तो वो दिन होगा #सोमवार
फिर 25वें से 48वें घण्टे तक इसी क्रम में होरा चलेगी। तो 49वें घण्टे के होरा का स्वामी आएगा #मंगल यानि इसके बाद #मंगलवार
इसी तरह आगे सप्ताह के दिनों का क्रम निर्धारित होता है।
, चैत्र कृष्ण चतुर्दशी, वसंत ऋतु, शक सम्वत-1942, कलि संवत-5122, विक्रम संवत-2077 तदनुसार आंग्ल तिथि 11 अप्रैल, 2021 दिन-रविवार

सूर्य_की_संक्रांति_ और #ऋतु का निर्धारण

 हिंदू नववर्ष की शुभकामनाएं ( भाग 3 ) #सूर्य_की_संक्रांति_ और #ऋतु का निर्धारण

ज्योतिष में 12 राशियाँ होती हैं। सूर्य इनमें से हरेक राशि पर लगभग 1 महीने रहते हैं और फिर दूसरी राशि पर चले जाते हैं। सूर्य का एक से दूसरी राशि में संक्रमण करने को सूर्य की संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य 14 या 15 जनवरी को धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए उस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य की राशि प्रवेश को याद रखना भी बड़ा आसान है। इसे मोटा-मोटा इस तरह समझिए। इसके लिए आपको एक सूत्र ध्यान रखना है। वो सूत्र है
💐 निरयण सूर्य 14 अप्रैल से लगभग एक महीने तक मेष राशि यानि 1 नंबर राशि में रहते हैं।
💐 फिर 15 मई से लगभग एक महीने तक वृष राशि यानि 2 नंबर राशि में रहते हैं।
💐 इसी तरह 15 जून से 3 नंबर यानि मिथुन राशि में अगले महीने के लिए रहते हैं।
💐 फिर 16 जुलाई से कर्क राशि यानि 4 नंबर में अगले एक महीने के लिए रहते हैं।
💐 फिर 17 अगस्त से 5 नंबर यानि सिंह राशि में अगले एक महीने के लिए।
💐 17 सितम्बर से 6 नंबर यानि कन्या राशि में अगले एक महीने के लिए।
💐 फिर 17 अक्टूबर से अगले एक महीने के लिए तुला राशि में।
💐 16 नवंबर से अगले एक महीने के लिए वृश्चिक राशि में।
💐 16 दिसम्बर से अगले एक महीने के लिए धनु राशि में।
💐 14 जनवरी से अगले एक महीने के लिए मकर राशि में।
💐 12 फरवरी से अगले एक महीने के लिए कुंभ राशि में।
💐 14 मार्च से ले एक महीने के लिए मीन राशि में रहते हैं।
इसका एक बड़ा महत्वपूर्ण उपयोग #ऋतु_निर्धारित करने में भी होता है। आपको पता है कि अपने यहाँ छह ऋतुएं हैं :- वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर।
सूर्य जब मीन और मेष राशि में हों #वसंत
सूर्य जब वृष और मिथुन में हों तो #ग्रीष्म
सूर्य जब कर्क और सिंह में हो तो #वर्षा
सूर्य जब कन्या और तुला में हों तो #शरद
सूर्य जब वृश्चिक और धनु में हो तो #हेमंत
सूर्य जब मकर और कुंभ में हों तो #शिशिर
पहले लोगों के नाम रखने का आधार भी होता था। सूर्य जब धनु राशि में संचार करते हैं तो उसे #खर_मास कहा जाता है, इसमें सारे शुभ काम वर्जित हो जाते हैं।
-अभिजीत, चैत्र कृष्ण चतुर्दशी, वसंत ऋतु, शक सम्वत-1942, कलि संवत-5122, विक्रम संवत-2077 तदनुसार आंग्ल तिथि 11 अप्रैल, 2021 दिन-रविवार