सोमवार, 25 जुलाई 2016

मंगल का स्वरूप



मंगल का स्वरूप
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मित्रों ज्योतिष में मंगल को हमारे शरीर में खून और मज्जा का कारक माना गया है ये एक ऐसा ग्रह है जो जब हमारे पास कुछ भी न हो तब भी हमे मनोबल देता है | हमारे साहस का ये कारक माना गया है | ये जोश का कारक ग्रह है इसिलिय इसे लड़ाई झगड़े का कारक ग्रह माना गया है क्योंकि जब तक ये जोश पैदा न करे लड़ाई झगड़ा नही हो सकता \ कुंडली में अच्छी सिथ्ती का मंगल हमे सेना पुलिस डॉक्टर छेत्र इन्जिनियेर छेत्र में जाने के सुनहरे अवसर प्रदान करता है तो वंही अशुभ मंगल होने पर जातक लुट मार पिट करने लग जता है और अपने साहस बल का प्रयोग गल तरीके से करने लग जाता है | इसका कारण ये भी है जब मंगल अशुभ हो तो जातक राहू हावी होने लग जता है उसका कारण ये भी है की लाल किताबा में मंगल को राहू पर काबी पाने वाला ग्रह माना गया है और ऐसे में जब मंगल खुद ही खराब हो जाए तो जातक राहू रूपी शराब का सेवन करने लग जाता है , जातक पर स्त्री के चक्कर में भी पड़ जाता है ऐसे में पुरुष जातक को उसकी पत्नी तो स्त्री जातक को उसका पति भी तंग करना सुरु कर देता है |
मंगल जब भी बुद्ध के साथ हो या फिर कुंडली में सूर्य शनी एकसाथ हो तो या नीच राशि में हो तो मंगल खराब बन जाता है ऐसे में यदि जातक को कोई उंचा पद मिल जाए तो वो उस पद का भी दुरूपयोग करने लग जाता है और राहू की चालाकी जूठ फरेब दोखा आदि जातक की सिफत बन जाती है | खराब मंगल वाला जातक अक्सर हथियार के बल पर लोगों का लुटने का कार्य भी करने लग जाता है|
हमारे दैनिक जीवन में मंगल का शुभ होना बहुत आवश्यक है क्योंकि किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य मंगल के बिना सफल नही हो सकते | जिन लोगो की कुंडली में मंगल खराब होता है उनके घर में अक्सर किसी मांगलिक कार्य के बाद कोई अनहोनी या खुसी को दुःख में बदलने वाली घटना घट जाती है | जैसे की आपकी नोकरी लगी आपको बहुत ख़ुशी हुई लेकिन कुछ समय बाद खबर मिलती है की पोस्टिंग छेत्र ऐसा है जिसमे कोई जाना भी पसंद नही करता तो आपकी ख़ुशी काफूर हो जाती है | इसी प्रकार आपको कोई धन लाभ मिलता है लेकिन कोई ऐसी समस्या a खड़ी हो जाती है की आपका पूरा पैसा खर्च हो जाता है \ घर में कोई शादी या मांगलिक कार्य होता है लेकिन उसी समय के दौरान किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाती है | दुसरे शब्दों में कहे की आप ख़ुशी का मांगलिक कार्यों का पूर्ण आनन्द नही ले पाते है | पति पत्नी के झगड़े जीवन में नित्य का विषय बन जाते है | तो येमंगल खराब होने के लक्ष्ण होते है \
वर्तमान समय में हम देखें तो मंगल मौत की राशि विर्श्चिक में चल रहे है \ हालाँकि इस राशि के स्वामी खुद मंगल ही राशि है लेकिन कालपुरुष की कुंडली में अस्ठ्म भाव में इस राशि के होने से खुद मंगल के शुभ फल इसमें कम हीओ माने गये है | आप देखें की जब से मंगल इस राशि में आये है जहां मौत के कारण शनी देव पहले से विराजमान थे तब से संसार में आतंकवाद के घटनाए ज्यादा बढ़ गई है जगह जगह युद्ध के हालत बन गये है | यदि आपका जन्म मेष मिथुन तुला लग्न में हुआ है तो ये समय आपके स्वास्थ्य के लिय भी अच्छा नही है , यदि आपकी दशा भी किसी अच्छे ग्रह की नही चल्र ही है तो वर्तमान समय में आपको बहुत सी समस्यों का सामना वर्तमान में करना पड़ रहा है | जिनकी भी कुंडली में मंगल मुख्य कारक ग्रह है उन्हें भी जीवन के विभिन्न छेत्रों में समस्या का सामना करना पड़ रहा है जैसे की कर्क लग्न वालों के कार्य भी वर्तमान समय में बहुत ज्यादा पप्रभाव इस समय के दौरान पड़ा है \ मित्रों आंशिक रूप से मंगल पर कुछ लिखने की कोसिस की है \ हालाँकि हम सभी जानते है की हमे कुंडली के सभी ग्रह प्रभावित करते है इसिलिय हम किसी एक ग्रह के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर नही पहुँच सकते |समय समय पर आगे भी इसके उपर लिखता रहूँगा
यदि आपको मंगल जनित अशुभ फल मिल रहे है तो आप चन्द्र की सहायता से उसके अशुभ फलों में कमी कर सकते है \
जय श्री राम

रविवार, 24 जुलाई 2016

धर्मशास्त्रों में वृक्षों का महत्व



धर्मशास्त्रों में वृक्षों का महत्व
पीपल के पेड़ को धर्मशास्त्रों में सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। इस एक पेड़ को मुक्ति के लाखों, करोड़ों उपायों के समकक्ष निरूपित किया है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने पीपल को श्रेष्ठ कहा है। भविष्य पुराण में ऐसे कई पेड़ों का उल्लेख है जो पापनाशक माने गए हैं। वृक्षायुर्वेद में पेड़ों के औषधीय महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी है।
वनस्पति जगत में पीपल ही एकमात्र ऐसा वृक्ष है जिसमें कीड़े नहीं लगते हैं। यह वृक्ष सर्वाधिक ऑक्सीजन छोड़ता है जिसे आज विज्ञान ने स्वीकार किया है। भगवान बुद्ध को जिस वृक्ष के नीचे तपस्या करने के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ था, वह पीपल का पेड़ ही है और श्रीमद् भागवत गीता के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि वृक्षों में श्रेष्ठ पीपल है।
भविष्य पुराण में ही बताया गया है कि शीशम, अर्जुन, जयंती, करवीर, बेल तथा पलाश के वृक्षों को लगाने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और रोपणकर्ता के तीन जन्मों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
सौ वृक्षों का रोपण करना ब्रह्मारूप और हजार वृक्षों का रोपण करने वाला विष्णुरूप बन जाता है। अशोक वृक्ष के बारे में लिखा है कि इसके लगाने से शोक नहीं होता। अशोक वृक्ष को घर में लगाने से अन्य अशुभ वृक्षों का दोष समाप्त हो जाता है। बिल्व वृक्ष को श्रीवृक्ष भी कहते हैं। यह वृक्ष अति शुभ माना गया है। इसमें साक्षात लक्ष्मी का वास होता है तथा दीर्घ आयुष्य प्रदान करता है।
इसी प्रकार वटवृक्ष के बारे में भी विस्तार से शास्त्रों में बताया गया है। वृक्षायुर्वेद में बताया गया है कि जो व्यक्ति दो वटवृक्षों का विधिवत रोपण करता है वह मृत्योपरांत शिवलोक को प्राप्त होता है।
भविष्य पुराण में ही बताया गया है कि वटवृक्ष मोक्षप्रद, आम्रवृक्ष अभीष्ट कामनाप्रद, सुपारी का वृक्ष सिद्धप्रद, जामुन वृक्ष धनप्रद, बकुल पाप-नाशक, तिनिश बल-बुद्धिप्रद तथा कदम्ब वृक्ष से विपुल लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
आंवले का वृक्ष लगाने से अनेक यज्ञों के सदृश पुण्यफल प्राप्त होता है।
गूलर के पेड़ में गुरुदत्त भगवान का वास माना गया है।
पारिजात के वृक्ष के बारे में तो यह बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण इसे स्वर्ग से लाए थे।
शास्त्रों में बताया गया है कि वृक्षों को काटने वाला गूंगा और अनेक व्याधियों से युक्त होता है। अश्वत्थ (पीपल, वटवृक्ष और श्रीवृक्ष) का छेदन करने वालों को ब्रह्म हत्या का पाप लगता है।
वृक्षों के आरोपण के लिए वैशाख, आषाढ़, श्रावण तथा भाद्रपद महीने श्रेष्ठ माने गए हैं। अश्विन, कार्तिक व ज्येष्ठ मास वृक्ष के आरोपण के लिए शुभ नहीं माने गए हैं जबकि पर्यावरण दिवस ज्येष्ठ मास में ही मना रहे हैं। बंजर भूमि को हरियाली में बदलना सचमुच एक भगीरथ प्रयास है।

केतु का महत्व



केतु का महत्व
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मित्रों सांसारिक जीवन में हमे दो तरह के केतु जीवन में मिलते है एक वो जो हमे देते है और दुसरे वो जो हमसे लेते है जैसे मामा भांजा बहनोई और साला | मामा पक्ष से हमे हमेशा ही कुछ न कुछ मिलता रहता है तो भांजे को हमे हमेशा ही कुछ न कुछ देते रहना पड़ता है | साला पक्ष से हमे हमारी पत्नी मिलती है तो हमारे वंस को आगे बढाती है तो साला हमे हमेशा ही कुछ न कुछ देते रहते है जबकि बहनोई को हमे हमेशा देते ही रहना पड़ता है सबसे पहले तो हमे हमारी बहन ही उसे सोंप्नी पडती है वो हमारी बहन को अपने साथ ले जाता है जबकि साले की बहन को हम अपने साथ ले आते है | घरों में कुते और चूहे के रूप में हम केतु को देखते है | कुता जो हमारे घर की रखवाली करता है जबकि चूहा जो हमे हमेशा ही नुक्सान पहुंचता है \ इस प्रकार हमारे दैनिक जीवन में अपनी महता हमे बताता है | केतु हमारे एक अच्छे सलाहकार के रूप में भी सहायता करता है और नुक्सान भी पहुंचा देता है जैसे की यदि आपका केतु शुभ फल दे रहा है तो आप यदि किसी अन्य की सलाह से कार्य करते है तो आपको बहुत लाभ मिलता है जबकि यदि केतु खराब हो तो दूसरों से ली हुई सलाह आपकी बर्बादी का कारण बन जाती है \ केतु एक संकेतक के रूप में भी सहायता कर देता हिया जैसे की हम वाहन चला रहे होते है और सामने से कोई हमे इशारा करके बता देता है की आगे खतरा है तो ये एक सहायक के रूप में सिद्ध होता है | केतु का महत्व आप इस बात से भी समझ सकते है लाल किताब कहती है की जब आपका राहू आपको खराब फल दे रहा हो तो केतु के उपाय से आपको राहत मिलेगी |
केतु के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है की केट छुडावे खेत यानी की केतु जिस भाव में हो उस भाव से सम्बन्धित जातक में अलगाव पैदा कर देता है | अन्य ग्रहों की तरह केतु की ज्योतिष में अहम भूमिका होती है | केतु गणेश जी , बेटा , भांजा , ब्याज , सलाहकार , दरवेस , दोहता , कुता , सुवर, छिपकली , कान , पैर , पेशाब , रीड की हड्डी , काले सफेद तिल , खटाई ,इमली , केला , कम्बल ,दहेज़ में मिली हुई खाट, लहसुनिया , भिखारी , मामा , दूरदर्शी , चल चलन , खरगोस , कुली , चूहा आदि का कारक केतु माना गया है | चन्द्र मंगल इसके शत्रु ग्रह शुक्र राहू मित्र ग्रह माने गये है बाकी के ग्रह इसके सम होते है | इसका समय रविवार को उषाकाल का होता है इसिलिय इस से सम्बन्धित उपाय यदि इस समय में किये जाए तो विशेष लाभ मिलता
ज्योतिष में केतु को मोक्ष का कारक ग्रह माना गया है | केतु को लाल किताब में कुल को तारने वाला , दुनिया की आवाज़ को मन्दिर तक पहुचाने वाला साधू ,मौत की निशानी यानी मौत आने का समय बताने वाला , गोली की जगह आकर मरने वाला सुवर ,रंग बिरंगा जिसमे लाल रंग न हो ,पुत्र को केतु माना गया है |
केतु को छलावा माना गया है पापी चाहे कैसा भी हो उसे बुरा ही माना गया है | चूँकि केतु की पाप ग्रह में गिनती होती है इसिलिय इसे बुरा ग्रह मना गया है |
केतु सूर्य के साथ होने पर उसके फल को कम कर देता है तो चन्द्र के साथ होने पर चन्द्र को ग्रहण लगा देता है | मंगल या शनी के साथ होने पर बुरा फल नही देता है लेकिन इन दो के साथ यदि कोई तीसरा ग्रह हो तो फिर तीनो का फल ही मंदा हो जाता है | गुरु के साथ उत्तम फल देता है और बुद्ध के साथ होने पर केतु बूरे फल देता है जबकि शुक्र के साथ होने पर केतु शुक्र की सहायता करता है |
चूँकि केतु संतान का कारक है और चन्द्र माता का इसिलिय जब कभी भी केतु चन्द्र के साथ हो या चन्द्र के खाना नम्बर चार में हो तो जातक को संतान से सम्बन्धित समस्या और माता को परेशानी और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है |
केतु के बारे में एक मुख्य कथन है की ना तो चारपाई टूटे न ही बुढिया मरे और न ही बिमारी मालुम हो और न ही सब कुछ सही हो | धीरे धीरे तीर कमान की तरह झुकते जाना मगर टूटना नही यानी की तड़फ ते जाना लेकिन मौत भी न मिलना केतु की ही करामात होती है | जैसा की आपने देखा होगा की कोई उम्र दराज इन्सान चारपाई में काफी समय तक रहता है और दुःख पाता रहता है लेकिन उसे मौत भी नशीब नही होती और ऐसी मौत केवल केतु देता है |
कुंडली में जब केतु बुरा हो तो उसका बुनियादी ग्रह शुक्र को भी आराम नही मिलता | जैसा की आपको पता है की केतु { पुत्र } शुक्र { रज ,वीर्य, पत्नी } का ही नतीजा होता है इसिलिय इसे इसका बुनिआय्दी ग्रह शुक्र कहा गया है | साथ ही जब कभी भी शुक्र को उसके साथी बुध की मदद न मिले या फिर कुंडली में मंगल बद हो तो केतु के उपाय से शुक्र को मदद मिलेगी | शुक्र शनी की गाडी केतु पहिये के बिना आगे नही बढ़ सकती | लाल किताब में केतु को बिर्हस्पती के बराबर का ग्रह माना गया है और केतु को गुरु का चेला कहा गया है ऐसे में जब शुक्र की मदद करने वाला केतु मंदा हो तो उसको ठीक करने के लिय बिर्हस्पती का उपाय करना होगा और फिर केतु शुक्र को मदद देगा | केतु जब भी बुद्ध के साथ या बुद्ध के घर तीन या छटे भाव में होगा बुरा फल देगा |
केतु पीठ का कारक माना गया है इसिलिय उभरी हुई पीठ रईसी की निशानी होगी जबकि छोटी पीठ गुलामी की |
केतु को अला बला यानी भुत प्रेत का कारक भी माना गया है ऐसे में मकान यदि किसी गली में आखरी कोने का हो या मकान केतु का हो यानी जिस मकान में तिन दरवाजे हो या तिन तरफ से खुला हो और केतु कुंडली में खराब हो तो ऐसी बला का उस मकान पर ज्यादा असर होगा| इस मकान के आसपास को कोई मकान गिरा हुआ यानी बर्बाद और खंडर हालत का होगा और कुतों का वहाँ आवागमन होगा या कोई खाली मैदान भी हो सकता है |
पेशाब की बिमारी होना ,, औलाद से सम्बन्धित समस्या होना , पांव के नाख़ून खराब हो जाना , सुनने की ताकत कम हो जाना अदि केतु खराब होने की निशानी होती है |हाथ केअंगूठे के नाख़ून वाला हिसा छोटा हो तो केतु दुश्मनों के साथ या उनके घर में होगा बुरा फल देगा इसी तरह अगर ये हिसा छोटा हो तो भी केतु बुरा फल देगा |
केतु खराब वाले को कान में सुराख करके सोना पहनना हमेशा लाभ देगा | साधू दरवेश की सेवा करना | धारिवाले कुते की सेवा करना | गणेश जी की पूजा करना, अपाहिज की सेवा करना उसकी सहायता करना अदि केतु के मुख्य उपाय है | मित्रों मै पहले भी केतु पर तिन चार पोस्ट कर चूका हूँ आज उन्ही सब पोस्टो को एक ही पोस्ट में सम्मलित करके पोस्ट की है |
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जय श्री राम

कारक विचार फलादेश

विकास खुराना to HINDU ASTROLOGY GROUP
23 hrs
कारक विचार
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कारक विचार फलादेश की सबसे महत्‍वपूर्ण कड़ी है। कई बार जातक जब समस्‍या बताता है तो नए ज्‍योतिषियों को पता ही नहीं चलता है कि इसे किस भाव या ग्रह से देखें। ऐसे में जितने कारक फौरी तौर पर ध्‍यान में होते हैं, उन्‍हीं के अनुसार ज्‍योतिषी निष्‍कर्ष पेश करने की कोशिश करते हैं। कई बार तो यह भी स्‍पष्‍ट नहीं हो पाता है कि सवाल का जवाब कुण्‍डली में कहां खोजा जाए। ऐसे में हमें भाव कारक ही बताते हैं कि किस सवाल का जवाब कहां खोजा जाए।
उनकी कारकत्‍व विचार पुस्‍तक में इतने कारक दिए गए हैं कि लगता है कि हर सवाल का जवाब दिया जा सकता है हर सवाल का जवाब ज्‍योतिष से दिया जा सकता है, बशर्ते आप कारकत्‍व के बारे में विस्‍तार से जानते हों। यहां मैं भावों के कारकों के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूं।
प्रथम भाव-
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इस भाव का कारक सूर्य है। यह सबसे प्रमुख भाव है। इसी भाव की राशि, इसमें बैठे ग्रह और इसके अधिपति ग्रह की स्थिति से जातक की स्थिति की प्राथमिक जानकारी मिल जाती है। बाकी भावों की तुलना में जातक की आत्‍मा को जानने का यह सबसे महत्‍वपूर्ण भाव है। जातक की जन्‍मकुण्‍डली अथवा प्रश्‍नकुण्‍डली के किसी सवाल के जवाब में उसके स्‍वास्‍थ्‍य, जीवंतता, सामूहिकता, व्‍यक्तित्‍व, आत्‍मविश्‍वास, आत्‍मसम्‍मान, आत्‍मप्रकाश, आत्‍मा आदि को देखा जाता है। हर सवाल के जवाब में पहले लग्‍न देखना ही होगा।
दूसरा भाव –
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इस भाव का कारक गुरु है। वैदिक ज्‍योतिष में इसे धन भाव कहा जाता है। इससे बैंक एकाउण्‍ट, पारिवारिक पृष्‍ठभूमि, कई मामलों में आंखें देखी जाती है। इसके अलावा यह संसाधन, नैतिक मूल्‍य और गुणों के बारे में बताता है।
तीसरा भाव –
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इस भाव का कारक मंगल है। इसे सहज भाव भी कहते हैं। कुण्‍डली को ताकत देने वाला भाव यही है। इसे आमतौर पर अनदेखा कर दिया जाता है, लेकिन भाग्‍य के ठीक विपरीत अपनी बाजुओं की ताकत से कुछ कर दिखाने वाले लोगों का यह भाव बहुत शक्तिशाली होता है। बौद्धिक विकास, साहसी विचार, दमदार आवाज, प्रभावी भाषण एवं संप्रेषण के अन्‍य तरीके इस भाव से देखे जाएंगे। छोटे भाई के लिए भी इसी भाव को देखाजाऐ.
चौथा भाव –
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इसका कारक चंद्रमा है। यह सुख का घर है। किसी के घर में कितनी शांति है इस भाव से पता चलेगा। इसके अलावा माता के स्‍वास्‍थ्‍य और घर कब बनेगा जैसे सवालों में यह भाव प्रबल संकेत देता है। शांति देने वाला घर, सुरक्षा की भावना, भावनात्‍मक शांति, पारिवारिक प्रेम जैसे बिंदुओं के लिए हमें चौथा भाव देखना होगा।
पांचवां भाव –
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इसका कारक गुरु है। इसे प्रॉडक्‍शन हाउस भी कह सकते हैं। इंसान क्‍या पैदा करता है, वह इसी भाव से आएगा। इसमें शिष्‍य, पुत्र और पेटेंट वाली खोजें तक शामिल हो सकती हैं। ईमानदारी से की गई रिसर्च भी इसी से देखी जाएगी। ईमानदारी से मेरा अर्थ है ऐसी रिसर्च जिससे विद्यार्थी अथवा विषय के लिए कुछ नया निकलकर आ रहा हो। इसके अलावा आनन्‍दपूर्ण सृजन, सुखी बच्‍चे, सफलता, निवेश, जीवन का आनन्‍द, सत्‍कर्म जैसे बिंदुओं को जानने के लिए इस भाव को देखना जरूरी है।
छठा भाव –
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इस भाव का कारक मंगल है। इसे रोग का घर भी कहते हैं। प्रेम के सातवें घर से बारहवां यानि खर्च का घर है। शत्रु और शत्रुता भी इसी भाव से देखे जाते हैं। कठोर परिश्रम, सश्रम आजीविका, स्‍वास्‍थ्‍य, घाव, रक्‍तस्राव, दाह, सर्जरी, डिप्रेशन, उम्र चढ़ना, कसरत, नियमित कार्यक्रम के सम्‍बन्‍ध में यह भाव संकेत देता है।
सातवां भाव –
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इसका कारक शुक्र है। लग्‍न को देखने वाला यह भाव किसी भी तरह के साथी के बारे में बताता है। राह में साथ जा रहे दो लोगों के लिए, प्रेक्टिकल के लिए टेबल शेयर कर रहे दो विद्यार्थियों के लिए, एक ही समस्‍या में घिरे दो साथ-साथ बने हुए लोगों के लिए यह भाव देखा जाएगा। जीवनसाथी, करीबी दोस्‍त, सुंदरता, लावण्‍य जैसे विषय इसी भाव से जुड़े हुए हैं। सभी विपरीत लिंग वालों के लिए। समलैंगिकों को कैसे देखेंगे यह अभी स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन कभी ऐसी कुण्‍डली आती है तो मैं दोनों का सातवां भाव ही देखने का प्रयास करूंगा।
आठवां भाव –
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इसका कारक शनि है। स्‍वाभाविक रूप से गुप्‍त क्रियाओं, अनसुलझे मामलों, आयु, धीमी गति के काम इससे देखे जाएंगे। इसके अलावा दूसरे के संसाधनों का सृजन में इस्‍तेमाल, जिंदगी की जमीनी सच्‍चाइयां, तंत्र-मंत्र के लिए यही भाव है
नौंवां भाव –
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इसका कारक भी गुरु है। इसे भाग्‍य भाव भी कहते हैं। पिछले जन्‍म में किए गए सत्‍कर्म प्रारब्‍ध के साथ जुड़कर इस जन्‍म में आते हैं। यह भाव हमें बताता है कि हमारी मेहनत और अपेक्षा से अधिक कब और कितना मिल सकता है। धर्म, अध्‍यात्‍म, समर्पण, आशीर्वाद, बौद्धिक विकास, सच्‍चाई से प्रेम, मार्गदर्शक जैसे गुणों को भी इसमें देखा जाता है।
दसवां भाव –
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इसके कारक ग्रह अधिक हैं। गुरु, सूर्य, बुध और शनि के पास दसवें घर का कारकत्‍व है। हम जो सोचते हैं वही बनते हैं। यह भाव हमारी सोच को कर्म में बदलने वाला भाव है। हर तरह का कर्म दसवें भाव से प्रेरित होगा। बस बाध्‍यता इतनी है कि एक्‍शन हमारा होना चाहिए। रिएक्‍शन के बारे में यह भाव नहीं बताता। प्रोफेशनल सफलताएं, साख, प्रसिद्धि, नेतृत्‍व, लेखन, भाषण, सफल संगठन, प्रशासन, स्किल बांटना जैसे काम यह भी
ग्‍यारहवां भाव –
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इसका कारक भी गुरु है। यह ज्‍यादातर उपलब्धि से जुड़ा भाव है। आय, प्रसिद्ध, मान सम्‍मान और शुभकामनाएं तक यह भाव एकत्रित करता है। हम कुछ करेंगे तो उस कर्म का कितना फल मिलेगा या नहीं मिलेगा, यह भाव अधिक स्‍पष्‍ट करता है। यह कर्म का संग्रह भाव है। उपलब्धि किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। धैर्य, विकास और सफलता भी इसी भाव से देखे जाते हैं।.
बारहवां भाव –
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इसका कारक शनि है। यह खर्च का घर है। हर तरह का खर्च, शारीरिक, मानसिक, धन और जो भी खर्च हो सकते हैं सभी इसी से आएंगे। विद्या का खर्च भी इसी भाव से होता है। इस कारण बारहवें भाव में बैठा गुरु बेहतर होता है ग्‍यारहवें भाव की तुलना में क्‍योंकि सरस्‍वती की उल्‍टी चाल होती है, जितना संग्रह करेंगे उतनी कम होगी और जितना खर्च करेंगे उतनी बढ़ेगी। इसके अलावा बाहरी सम्‍बन्‍धों, विदेश यात्रा, धैर्य, ध्‍यान और मोक्ष इस भाव से देखे जाएंगे।
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कर्ज से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय

कर्ज से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय
कर्ज से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय
— कर्ज या ऋण शब्द के भीतर कष्ट छुपा होता है। अगर किसी व्यक्ति को कर्ज चुकाना हो तो उसकी पूरी जिंदगी तनाव में गुजर जाती है और रातो की नीद और दिन का चैन हराम हो जाता है .हम कुछ वास्तु
के उपाय अपनाकर कर्ज के
1- कर्ज से बचने के लिए उत्तर व दक्षिण की दीवार बिलकुल सीधी बनवाएँ।
2-उत्तर की दीवार हलकी नीची होनी चाहिए। कोई भी कोना कटा हुआ न हो, न ही कम होना चाहिए। गलत दीवार से धन का अभाव हो जाता है।
3-यदि कर्ज अधिक बना हुआ है और परेशान हैं तो ईशान कोण को 90 डिग्री से कम कर दें।
4-इसके अलावा उत्तर-पूर्व भाग में भूमिगत टैंक या टंकी बनवा दें। टंकी की लम्बाई, चौड़ाई व गहराई के अनुरूप आय बढ़ेगी। उत्तर-पूर्व का तल कम से कम 2 से 3 फीट तक गहरा करवा दें।
5-दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण दिशा में भूमिगत टैंक, कुआँ या नल होने पर घर में दरिद्रता का वास होता है।
6- दो भवनों के बीच घिरा हुआ भवन या भारी भवनों के बीच दबा हुआ भूखण्ड खरीदने से बचें क्योंकि दबा हुआ भूखंड गरीबी एवं कर्ज का सूचक है।
7-उत्तर दिशा की ओर ढलान जितनी अधिक होगी संपत्ति में उतनी ही वृद्धि होगी।
8-यदि कर्ज से अत्यधिक परेशान हैं तो ढलान ईशान दिशा की ओर करा दें, कर्ज से मुक्ति मिलेगी।
9-पूर्व तथा उत्तर दिशा में भूलकर भी भारी वस्तु न रखें अन्यथा कर्ज, हानि व घाटे का सामना करना पड़ेगा।
10-भवन के मध्य भाग में अंडर ग्राउन्ड टैंक या बेसटैंक न बनवाएँ। मकान का मध्य भाग थोड़ा ऊँचा रखें। इसे नीचा रखने से बिखराव पैदा होगा।
11-यदि उत्तर दिशा में ऊँची दीवार बनी है तो उसे छोटा करके दक्षिण में ऊँची दीवार बना दें।
12-इसके अलावा दक्षिण-पश्चिम के कोने में पीतल या ताँबे का घड़ा लगा दें। उत्तर या पूर्व की दीवार पर उत्तर-पूर्व की ओर लगे दर्पण लाभदायक होते हैं। दर्पण के फ्रेम पर या दर्पण के पीछे लाल, सिंदूरी या
मैरून कलर नहीं होना चाहिए। दर्पण जितना हलका तथा बड़े आकार का होगा, उतना ही लाभदायक होगा, व्यापार तेजी से चल पड़ेगा तथा कर्ज खत्म हो जाएगा।
13- दक्षिण तथा पश्चिम की दीवार के दर्पण हानिकारक होते हैं
14-दक्षिणी-पश्चिमी, पश्चिमी-उत्तरी या मध्य भाग का चमकीला फर्श या दर्पण गहराई दर्शाता है, जो धन के विनाश का सूचक होता है। फर्श पर मोटी दरी, कालीन आदि बिछाकर कर्ज व दिवालिएपन से बचा जा सकता है। दरवाजे उत्तर-पूर्व दिशा में होने चाहिए।
15-पश्चिमी-दक्षिणी भाग में फर्श पर उल्टा दर्पण रखने से फर्श ऊँचा उठ जाता है। फलतः कर्ज से मुक्ति मिलती है। उत्तर या पूर्व की ओर भूलकर भी उल्टा दर्पण न लगाएँ, अन्यथा कर्ज पर कर्ज होते चले जाएँगे। गलत दिशा में लगे दर्पण जबरदस्त वास्तुदोष के कारक होते हैं। सीढ़ियाँ कभी भी पूर्व या उत्तर की दीवार से न बनाएँ। सीढ़ियों का वजन दक्षिणी दीवार पर ही आना चाहिए। ऐसा न होने पर आय के लाभ के साधन खत्म हो जाते हैं। सीढ़ी हमेशा क्लाक वाइज दिशा में ही बढ़ाएँ। कर्ज से बचने के लिए उत्तर दिशा से दक्षिण की ओर बढ़ें। सीढ़ी की पहली पेड़ी मुख्य द्वार से दिखनी नहीं चाहिए, नहीं तो लक्ष्मी घर से बाहर चली जाती है।
जय राम जी की

रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ

🌷रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
• जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
• असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
• भवन-वाहन के लिए
दही से रुद्राभिषेक करें।
• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
• धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
• तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है । • पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
• ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
• सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै। • शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
• सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
• शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो
जाती है।
• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
• गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें