बुधवार, 24 अगस्त 2016

रुद्राक्ष धारण के नियम -

रुद्राक्ष धारण के नियम -
1
सभी वर्ण के लोग रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
यदि किसी कारण वश रुद्राक्ष विशेष मंत्रो से धारण न कर सके तो सरल विधि से लाल , पीले या सफ़ेद धागे मे पिरो कर गंगा जल से स्नान करा कर “ॐ नमः शिवाय" का जप कर के,
चन्दन, विल्व पत्र ,लाल पुष्प ,धूप दीप दिखा कर ' शिव गायत्री मंत्र ' द्वारा अभिमंत्रित कर धारण करें और यथाशक्ति शिव मंदिर मे दान दें।
धारण करते समय " ॐ नम:शिवाय " का जप करें , ललाट पर भस्म लगाएँ।
अपवित्रता के साथ धारण न करें,
भक्ति और शुद्धता से ही धारण करें, अटूट श्रद्धा और विश्वास से धारण करने पर ही शुभ फल प्राप्त होता है.
2
कभी भी काले धागे मे धारण न करें।
वैसे शनि के प्रभाव के कारण विशेष रुद्राक्ष काले धागे मे पहनने का विधान भी है।
किन्तु लाल, पीले या सफेद धागे मे पिरोकर ही धारण करें,
चाँदी, सोना या तांबे मे भी धारण कर सकते हैं।
3
रुद्राक्ष हमेशा विषम संख्या मे धारण करें।
अर्थात किसी भी मुखी रुद्राक्ष के साथ 2 पंचमुखी रुद्राक्ष भी सम्मिलित करें , इस प्रकार वे 3 हो जाएँगे।
4
रुद्राक्ष धारण करने पर मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन,लिसोडा आदि पदार्थो का यथासंभव परित्याग कर देना चाहिए।
इन निषिद्ध वस्तुओं के सेवन का 'रुद्राक्ष-जाबा लोपनिषद्' मे सर्वथा निषेध किया गया है।
5
रुद्राक्ष को गंगाजल से धोकर शिवलिंग अथवा शिवमूर्ति से स्पर्श धारण करें।
स्वयं की शुभता की प्रार्थना करें व कुछ दक्षिणा प्रदान कर धारण करें।
6
रुद्राक्ष हमेशा नाभि के ऊपर शरीर के विभिन्न अंगों ( कंठ, गले, मस्तक, बांह, भुजा) मे धारण करें,
यद्यपि शास्त्रों मे विशेष परिस्थिति मे विशेष सिद्धि हेतु कमर मे भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है।
तांत्रिक प्रयोग के कारण ,अत्यधिक मासिक स्त्राव से त्रस्त एक महिला को मैंने कमर मे रुद्राक्ष पहनवाया था , जो कि शास्त्र अनुसार अनुचित था।
किन्तु 2 दिन मे ही बीमारी से छुटकारा मिल गया था।
7
रुद्राक्ष अंगूठी मे कदापि धारण नहीं करें,
अन्यथा भोजन-शौचादि क्रिया मे इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी।
8
रुद्राक्ष पहन कर श्मशान या किसी अंत्येष्टि कर्म मे अथवा प्रसूतिगृह मे न जायेँ।
संभोग के समय भी रुद्राक्ष उतार देना चाहिए।
9
स्त्रियां मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें।
10
रुद्राक्ष धारण कर रात्रि शयन न करें।
11
रुद्राक्ष मे अंतर्गर्भित विद्युत तरंगें होती हैं जो शरीर मे विशेष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार करने मे सक्षम होती हैं,
इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की " दिव्य औषधि " कहा गया है।
अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
शुष्क होने पर इसे सरसों या नीम के तेल मे कुछ समय तक डुबाकर रखें।
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रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त -
धारण के एक दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के तेल मे डुबाकर रखें।
धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर पवित्र कर लें।
फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर ॐ नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने रखें।
फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर) अथवा
पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।
तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या शास्त्रोक्त बीज मंत्र का 21, 11, 5 अथवा कम से कम 1 माला जप करें।
फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप करके रुद्राक्ष-धारण करें।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा सात्विक अल्पाहार लें।
उक्त क्रिया संभव नहीं हो, तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर सोमवार को) संबंधित रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत अथवा गंगाजल से पवित्र करके, अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण श्रद्धा भाव से धारण करें।
मेष संक्रांति ,
पूर्णिमा,
अक्षयतृतीया,
दीपावली,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,
अयन परिवर्तन काल,
ग्रहण काल,
गुरु पुष्य ,
रवि पुष्य,
द्वि और त्रिपुष्कर योग अथवा सोमवार के दिन रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापो का नाश होता है।
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रुद्राक्ष धारण के ज्योतिषीय मत -
एकमुखी सूर्य का प्रतीक - सूर्य दोष शमनकारी।
द्विमुखी चंद्र का प्रतीक - चंद्र दोष दूर करता है।
त्रयमुखी मंगल का प्रतीक - मंगल दोष दूर करता है।
चतुर्मुखी बुध का प्रतीक - बुध दोष दूर करता है।
पंचमुखी गुरु का प्रतीक - गुरु दोष दूर करता है।
षष्ठमुखी शुक्र का प्रतीक - शुक्र दोष दूर करता है।
सप्तममुखी शनि का प्रतीक - शनि दोष दूर करताहै।
अष्टमुखी राहु का प्रतीक - राहु दोष दूर करता है।
नवममुखी केतु का प्रतीक - केतु दोष दूर करता है।
दशममुखी राहु-केतु, शनि-मंगल के दोष को दूर करता है।
एकादशमुखी समस्त ग्रहों,राशि, तांत्रिक दोषों को दूर करता है।
द्वादशमुखी समस्त ग्रह दोष दूरकर व्यक्ति मे सूर्य का बल बढ़ाता है।
त्रयोदशमुखी पुरुष जनित दुर्बलता दूर कर शारीरिक-आर्थिक क्षमता प्रदान करता है।
रुद्राक्ष वस्तुत: महारुद्र का अंश होने से परम पवित्र एवं पापों का नाशक है,
इसके दिव्य प्रभाव से जीव शिवत्व प्राप्त करता है।
भारतीय संस्कृति मे रुद्राक्ष का बहुत महत्व है।
माना जाता है कि रुद्राक्ष मनुष्य को हर प्रकार की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका उपयोग केवल साधक और तपस्वियों के लिए ही नहीं,
बल्कि सांसारिक जीवन मे रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है।

रविवार, 21 अगस्त 2016

हमें तिलक क्यों लगाना चाहिए ?

हमें तिलक क्यों लगाना चाहिए ? या जब तिलक कोई और लगा रहा हो, उस समय सिर पर हाथ क्यों रखना चाहिए ?


~आइये जाने इसका वैज्ञानिक महत्व~
शायद भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा प्रचलित नहीं है। यह रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।
मनोविज्ञान की दृष्टि से भी तिलक लगाना उपयोगी माना गया है। माथा चेहरे का केंद्रीय भाग होता है, जहां सबकी नजर अटकती है। उसके मध्य में तिलक लगा
कर, विशेषकर स्त्रियों में, देखने वाले की दृष्टि को बांधे रखने का प्रयत्न किया जाता है।
स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं। यह भी बिना प्रयोजन नहीं है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
तिलक का महत्व
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक या कार्य की महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है ।
मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर इसके उन्मीलन की दिशा में किया गयचा प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित उत्तेजना मिलती रहती है ।
तन्त्र शास्त्र के अनुसार माथे को इष्ट इष्ट देव का प्रतीक समझा जाता है हमारे इष्ट देव की स्मृति हमें सदैव बनी रहे इस तरह की धारणा क ध्यान में रखकर, ताकि मन में उस केन्द्रबिन्दु की स्मृति हो सकें । शरीर व्यापी चेतना शनैः शनैः आज्ञाचक्र पर एकत्रित होती रहे । चुँकि चेतना सारे शरीर में फैली रहती है । अतः इसे तिलक या टीके के माधअयम से आज्ञाचक्र पर एकत्रित कर, तीसरे नेत्र को जागृत करा सकें ताकि हम परामानसिक जगत में प्रवेश कर सकें ।
तिलक का हमारे जीवन में कितना महत्व है शुभघटना से लेकर अन्य कई धार्मिक अनुष्ठानों, संस्कारों, युद्ध लडने जाने वाले को शुभकामनाँ के तौर पर तिलक लगाया जाता है वे प्रसंग जिन्हें हम हमारी स्मृति-पटल से हटाना नही चाहते इन शुशियों को मस्तिष्क में स्थआई तौर पर रखने, शुभ-प्रसंगों इत्यादि के लिए तिलक लगाया जाता है हमारे जीवन में तिलक का बडा महत्व है तत्वदर्शन व विज्ञान भी इसके प्रचलन को शिक्षा को बढाने व हमारे हमारे जीवन सरल व सार्थकता उतारने के जरुरत है ?।
तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी हैं इसके पीछे। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं।
– हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कोई भी पूजा-प्रार्थना तिलक बिना लगाये नहीं होती। सूने मस्तक को अशुभ माना जाता है। तिलक लगाते समय सिर पर हाथ रखना भी हमारी एक परंपरा है।
– धर्म शास्त्रों के अनुसार सुने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। तिलक लगाने के लिए अनामिका अंगुली शांति प्रदान करती है।
– मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है।
– अंगूठा प्रभाव और ख्याति तथा आरोग्य प्रदान कराता है। इसीलिए राजतिलक अथवा विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परंपरा रही है।
– तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है।
– ज्योतिष के अनुसार अनामिका तथा अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता अंगुली है। यह अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका तात्पर्य यही है कि सूर्य के समान, दृढ़ता, तेजस्वी, प्रभाव, सम्मान, सूर्य जैसी निष्ठा-प्रतिष्ठा बनी रहे।
– दूसरा अंगूठा है जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है। जीवन में सौम्यता, सुख-साधन तथा काम-शक्ति देने वाला शुक्र ही संसार का रचयिता है।
– जब अंगुली या अंगूठे से तिलक किया जाता है तो आज्ञा चक्र के साथ ही सहस्रार चक्र पर ऊर्जा का प्रवाह होता है। सकारात्मक ऊर्जा हमारे शीर्ष चक्र पर एकत्र हो साथ ही हमारे विचार सकारात्मक हो व कार्यसिद्ध हो। इसीलिए तिलक लगावाते समय सिर पर हाथ जरूर रखना चाहिए.

शनिवार, 20 अगस्त 2016

हवन द्वारा मनोकामना पूर्ती

हवन द्वारा मनोकामना पूर्ती 
1. लक्ष्मी के बीज मन्त्र ‘श्रीं’ के साथ प्रारंभ में प्रणव ‘ॐ’ और ;ह्रीं’ लगाकर ‘क्लीं’ और इसके बाद ‘फट स्वाहा’ यानी ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं फट स्वाहा’ मन्त्र से घी मिश्रित कमल या खीर से एक हजार हवन करता है; वह अतुल धन की प्राप्ति करता है। (आम की समिधा)
2. इसी मन्त्र के द्वारा गूलर की समिधा में जो पद्म बीजों से एक हजार हवन करता है; उसको कभी किसी से भय नहीं सताता और वह शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।
3. दही मिश्रित चावल , तिल, जौ, गेंहू, ईंख से आम की समिधा में जो एक हजार हवन करता है; उसे भाग्य की दुर्गति से मुक्ति मिलती हैं।
4. दुर्जा जी के मन्त्रों से बेल के फल का हवन से (बेल की ही समिधा) धन की रक्षा होती है और धन की प्राप्ति होती है।
5. सरस्वती या तारा के मन्त्रों से चमेली के फूलों को इसी के तेल से मिश्रित करके हवन करने से अक्षय वाक्शक्ति प्राप्त होती है।
6. ब्राह्मी के रस से (4:1) पकाए घी को सरस्वती या तारा के मन्त्र से सिक्त करके प्रातः सायं पचने योग्य घी का पान करने से समरण शक्ति एवं वाक्शक्ति समृद्ध होती है।
7. प्रातःकाल बच के एक तोला (12 ग्राम) चूर्ण को सरवती – तारा के मंत्र से सिक्त करके खाकर ऊपर से दूध पीने वाले की स्मरण शक्ति अदभुत रूप से विकसित होती है।
8. अपामार्ग की समिधा में दुर्गा मन्त्रों से दूब एवं घी का हवन करने से स्वास्थय एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। वहाँ बाहरी प्रकोप नहीं होते।
9. पलाश को घी से सिक्त करले आम की लकड़ी में गायत्री मन्त्र से हवन करता है; वह जीवन में सभी भौतिक सुखों को प्राप्त करता है।
10. कमर भर जल में ब्रह्म मुहूर्त में जो प्रतिदिन 108 गायत्री मंत्र का जप पूर्व दिशा की ओर मुख करके करता है; उसके पाप कटते हैं; दुःख दूर होता है

सुखी जीवन के सरल उपाय

सुखी जीवन के सरल उपाय
1-प्रतिदिन अगर तवे पर रोटी सेंकने से पहले दूध के छींटे
मारें, तो घर में बीमारी का प्रकोप कम होगा।
2-प्रत्येक गुरुवार को तुलसी के पौधें को थोडा - सा दूध
चढाने से घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।
3-प्रतिदिन संवेरे पानी में थोडा - सा नमक मिलाकर घर में
पोंछा करें, मानसिक शांति मिलेगी।
4-प्रतिदिन सवेरे थोडा - सा दूध और पानी मिलाकर मुखय
द्वार के दोनों ओर डाले, सुख - शांति मिलेगी।
5-मुखय द्वार के परदे के नीचे कुछ घुंघरु बांध दे, इसके संगीत
से घर में प्रसन्नता का वातावरण बनेगा।
6-प्रतिदिन शाम को पीपल के पेड को थोडा - सा दूध -
पानी मिलाकर चढाएं, दीपक जलाएं तथा मनोकामना के साथ
पांच परिक्रमा करें। शीघ्र मनोकामना पूरी होगी।
7-प्रतिदिन सवेरे पहली रोटी गाय को, दूसरी रोटी कुत्ते
को एवं तीसरी रोटी छत पर पक्षियों को डालें।
इससे पितृदोष से मुक्ति मिलती है तथा पितृदोष के कारण
प्राप्त कष्ट समाप्त होते हैं
8-किसी भी दिन शुभ - चौघडिये में पांच किलो साबूत नमक
एक थैली में लाकर अपने घर में ऐसी जगह रखें
जहां पानी नहीं लगे। यदि अपने आप पानी लग जाए तो इसे
काम में नहीं ले, फेंक दे तथा नया नमक लाकर रख दें। यह घर
के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है एवं सकारात्मक
प्रभाव को बढा