रुद्राक्ष धारण के नियम -
1
सभी वर्ण के लोग रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
यदि किसी कारण वश रुद्राक्ष विशेष मंत्रो से धारण न कर सके तो सरल विधि से लाल , पीले या सफ़ेद धागे मे पिरो कर गंगा जल से स्नान करा कर “ॐ नमः शिवाय" का जप कर के,
चन्दन, विल्व पत्र ,लाल पुष्प ,धूप दीप दिखा कर ' शिव गायत्री मंत्र ' द्वारा अभिमंत्रित कर धारण करें और यथाशक्ति शिव मंदिर मे दान दें।
धारण करते समय " ॐ नम:शिवाय " का जप करें , ललाट पर भस्म लगाएँ।
अपवित्रता के साथ धारण न करें,
भक्ति और शुद्धता से ही धारण करें, अटूट श्रद्धा और विश्वास से धारण करने पर ही शुभ फल प्राप्त होता है.
1
सभी वर्ण के लोग रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
यदि किसी कारण वश रुद्राक्ष विशेष मंत्रो से धारण न कर सके तो सरल विधि से लाल , पीले या सफ़ेद धागे मे पिरो कर गंगा जल से स्नान करा कर “ॐ नमः शिवाय" का जप कर के,
चन्दन, विल्व पत्र ,लाल पुष्प ,धूप दीप दिखा कर ' शिव गायत्री मंत्र ' द्वारा अभिमंत्रित कर धारण करें और यथाशक्ति शिव मंदिर मे दान दें।
धारण करते समय " ॐ नम:शिवाय " का जप करें , ललाट पर भस्म लगाएँ।
अपवित्रता के साथ धारण न करें,
भक्ति और शुद्धता से ही धारण करें, अटूट श्रद्धा और विश्वास से धारण करने पर ही शुभ फल प्राप्त होता है.
2
कभी भी काले धागे मे धारण न करें।
वैसे शनि के प्रभाव के कारण विशेष रुद्राक्ष काले धागे मे पहनने का विधान भी है।
किन्तु लाल, पीले या सफेद धागे मे पिरोकर ही धारण करें,
चाँदी, सोना या तांबे मे भी धारण कर सकते हैं।
कभी भी काले धागे मे धारण न करें।
वैसे शनि के प्रभाव के कारण विशेष रुद्राक्ष काले धागे मे पहनने का विधान भी है।
किन्तु लाल, पीले या सफेद धागे मे पिरोकर ही धारण करें,
चाँदी, सोना या तांबे मे भी धारण कर सकते हैं।
3
रुद्राक्ष हमेशा विषम संख्या मे धारण करें।
अर्थात किसी भी मुखी रुद्राक्ष के साथ 2 पंचमुखी रुद्राक्ष भी सम्मिलित करें , इस प्रकार वे 3 हो जाएँगे।
रुद्राक्ष हमेशा विषम संख्या मे धारण करें।
अर्थात किसी भी मुखी रुद्राक्ष के साथ 2 पंचमुखी रुद्राक्ष भी सम्मिलित करें , इस प्रकार वे 3 हो जाएँगे।
4
रुद्राक्ष धारण करने पर मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन,लिसोडा आदि पदार्थो का यथासंभव परित्याग कर देना चाहिए।
इन निषिद्ध वस्तुओं के सेवन का 'रुद्राक्ष-जाबा लोपनिषद्' मे सर्वथा निषेध किया गया है।
5
रुद्राक्ष को गंगाजल से धोकर शिवलिंग अथवा शिवमूर्ति से स्पर्श धारण करें।
स्वयं की शुभता की प्रार्थना करें व कुछ दक्षिणा प्रदान कर धारण करें।
रुद्राक्ष धारण करने पर मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन,लिसोडा आदि पदार्थो का यथासंभव परित्याग कर देना चाहिए।
इन निषिद्ध वस्तुओं के सेवन का 'रुद्राक्ष-जाबा लोपनिषद्' मे सर्वथा निषेध किया गया है।
5
रुद्राक्ष को गंगाजल से धोकर शिवलिंग अथवा शिवमूर्ति से स्पर्श धारण करें।
स्वयं की शुभता की प्रार्थना करें व कुछ दक्षिणा प्रदान कर धारण करें।
6
रुद्राक्ष हमेशा नाभि के ऊपर शरीर के विभिन्न अंगों ( कंठ, गले, मस्तक, बांह, भुजा) मे धारण करें,
यद्यपि शास्त्रों मे विशेष परिस्थिति मे विशेष सिद्धि हेतु कमर मे भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है।
तांत्रिक प्रयोग के कारण ,अत्यधिक मासिक स्त्राव से त्रस्त एक महिला को मैंने कमर मे रुद्राक्ष पहनवाया था , जो कि शास्त्र अनुसार अनुचित था।
किन्तु 2 दिन मे ही बीमारी से छुटकारा मिल गया था।
रुद्राक्ष हमेशा नाभि के ऊपर शरीर के विभिन्न अंगों ( कंठ, गले, मस्तक, बांह, भुजा) मे धारण करें,
यद्यपि शास्त्रों मे विशेष परिस्थिति मे विशेष सिद्धि हेतु कमर मे भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है।
तांत्रिक प्रयोग के कारण ,अत्यधिक मासिक स्त्राव से त्रस्त एक महिला को मैंने कमर मे रुद्राक्ष पहनवाया था , जो कि शास्त्र अनुसार अनुचित था।
किन्तु 2 दिन मे ही बीमारी से छुटकारा मिल गया था।
7
रुद्राक्ष अंगूठी मे कदापि धारण नहीं करें,
अन्यथा भोजन-शौचादि क्रिया मे इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी।
रुद्राक्ष अंगूठी मे कदापि धारण नहीं करें,
अन्यथा भोजन-शौचादि क्रिया मे इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी।
8
रुद्राक्ष पहन कर श्मशान या किसी अंत्येष्टि कर्म मे अथवा प्रसूतिगृह मे न जायेँ।
संभोग के समय भी रुद्राक्ष उतार देना चाहिए।
9
स्त्रियां मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें।
रुद्राक्ष पहन कर श्मशान या किसी अंत्येष्टि कर्म मे अथवा प्रसूतिगृह मे न जायेँ।
संभोग के समय भी रुद्राक्ष उतार देना चाहिए।
9
स्त्रियां मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें।
10
रुद्राक्ष धारण कर रात्रि शयन न करें।
रुद्राक्ष धारण कर रात्रि शयन न करें।
11
रुद्राक्ष मे अंतर्गर्भित विद्युत तरंगें होती हैं जो शरीर मे विशेष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार करने मे सक्षम होती हैं,
इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की " दिव्य औषधि " कहा गया है।
अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
शुष्क होने पर इसे सरसों या नीम के तेल मे कुछ समय तक डुबाकर रखें।
रुद्राक्ष मे अंतर्गर्भित विद्युत तरंगें होती हैं जो शरीर मे विशेष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार करने मे सक्षम होती हैं,
इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की " दिव्य औषधि " कहा गया है।
अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
शुष्क होने पर इसे सरसों या नीम के तेल मे कुछ समय तक डुबाकर रखें।
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रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त -
रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त -
धारण के एक दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के तेल मे डुबाकर रखें।
धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर पवित्र कर लें।
फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर ॐ नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने रखें।
फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर) अथवा
पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।
धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर पवित्र कर लें।
फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर ॐ नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने रखें।
फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर) अथवा
पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।
तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या शास्त्रोक्त बीज मंत्र का 21, 11, 5 अथवा कम से कम 1 माला जप करें।
फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप करके रुद्राक्ष-धारण करें।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा सात्विक अल्पाहार लें।
फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप करके रुद्राक्ष-धारण करें।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा सात्विक अल्पाहार लें।
उक्त क्रिया संभव नहीं हो, तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर सोमवार को) संबंधित रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत अथवा गंगाजल से पवित्र करके, अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण श्रद्धा भाव से धारण करें।
मेष संक्रांति ,
पूर्णिमा,
अक्षयतृतीया,
दीपावली,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,
अयन परिवर्तन काल,
ग्रहण काल,
गुरु पुष्य ,
रवि पुष्य,
द्वि और त्रिपुष्कर योग अथवा सोमवार के दिन रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापो का नाश होता है।
पूर्णिमा,
अक्षयतृतीया,
दीपावली,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,
अयन परिवर्तन काल,
ग्रहण काल,
गुरु पुष्य ,
रवि पुष्य,
द्वि और त्रिपुष्कर योग अथवा सोमवार के दिन रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापो का नाश होता है।
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रुद्राक्ष धारण के ज्योतिषीय मत -
रुद्राक्ष धारण के ज्योतिषीय मत -
एकमुखी सूर्य का प्रतीक - सूर्य दोष शमनकारी।
द्विमुखी चंद्र का प्रतीक - चंद्र दोष दूर करता है।
त्रयमुखी मंगल का प्रतीक - मंगल दोष दूर करता है।
चतुर्मुखी बुध का प्रतीक - बुध दोष दूर करता है।
पंचमुखी गुरु का प्रतीक - गुरु दोष दूर करता है।
षष्ठमुखी शुक्र का प्रतीक - शुक्र दोष दूर करता है।
सप्तममुखी शनि का प्रतीक - शनि दोष दूर करताहै।
अष्टमुखी राहु का प्रतीक - राहु दोष दूर करता है।
नवममुखी केतु का प्रतीक - केतु दोष दूर करता है।
दशममुखी राहु-केतु, शनि-मंगल के दोष को दूर करता है।
एकादशमुखी समस्त ग्रहों,राशि, तांत्रिक दोषों को दूर करता है।
द्वादशमुखी समस्त ग्रह दोष दूरकर व्यक्ति मे सूर्य का बल बढ़ाता है।
त्रयोदशमुखी पुरुष जनित दुर्बलता दूर कर शारीरिक-आर्थिक क्षमता प्रदान करता है।
रुद्राक्ष वस्तुत: महारुद्र का अंश होने से परम पवित्र एवं पापों का नाशक है,
इसके दिव्य प्रभाव से जीव शिवत्व प्राप्त करता है।
इसके दिव्य प्रभाव से जीव शिवत्व प्राप्त करता है।
भारतीय संस्कृति मे रुद्राक्ष का बहुत महत्व है।
माना जाता है कि रुद्राक्ष मनुष्य को हर प्रकार की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका उपयोग केवल साधक और तपस्वियों के लिए ही नहीं,
बल्कि सांसारिक जीवन मे रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है।
माना जाता है कि रुद्राक्ष मनुष्य को हर प्रकार की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका उपयोग केवल साधक और तपस्वियों के लिए ही नहीं,
बल्कि सांसारिक जीवन मे रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है।