शनिवार, 19 नवंबर 2022

भक्त नामदेव पर भगवान् विट्ठलजी की कृपा

 भक्त नामदेव पर भगवान् विट्ठलजी की कृपा



कन्धे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी करते हुए नामदेव जी से पत्नि ने कहा- भगत जी! आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है।

आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं।

शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आइएगा।


भक्त नामदेव जी ने उत्तर दिया- देखता हूँ जैसी विठ्ठल जीकी क्रपा।

अगर कोई अच्छा मूल्य मिला,

तो निश्चय ही घर में आज धन-धान्य आ जायेगा।


पत्नि बोली संत जी! अगर अच्छी कीमत ना भी मिले,

तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना।

घर के बड़े-बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे।

पर बच्चे अभी छोटे हैं,

उनके लिए तो कुछ ले ही आना।


जैसी मेरे विठ्ठल की इच्छा।

ऐसा कहकर भक्त नामदेव जी हाट-बाजार को चले गए।


बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा- वाह सांई! कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है।

तेरा परिवार बसता रहे।

ये फकीर ठंड में कांप-कांप कर मर जाएगा।

दया के घर में आ और रब के नाम पर दो चादरे का कपड़ा इस फकीर की झोली में डाल दे।


भक्त नामदेव जी- दो चादरे में कितना कपड़ा लगेगा फकीर जी?


फकीर ने जितना कपड़ा मांगा,

इतेफाक से भक्त नामदेव जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था।

और भक्त नामदेव जी ने पूरा थान उस फकीर को दान कर दिया।


दान करने के बाद जब भक्त नामदेव जी घर लौटने लगे तो उनके सामने परिजनो के भूखे चेहरे नजर आने लगे।

फिर पत्नि की कही बात,

कि घर में खाने की सब सामग्री खत्म है।

दाम कम भी मिले तो भी बच्चो के लिए तो कुछ ले ही आना।


अब दाम तो क्या,

थान भी दान जा चुका था।

भक्त नामदेव जी एकांत मे पीपल की छाँव मे बैठ गए।


जैसी मेरे विठ्ठल की इच्छा।

जब सारी सृष्टि की सार पूर्ती वो खुद करता है,

तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा।

और फिर भक्त नामदेव जी अपने हरिविठ्ठल के भजन में लीन गए।


अब भगवान कहां रुकने वाले थे।

भक्त नामदेव जी ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनके सुपुर्द जो कर दी थी।


अब भगवान जी ने भक्त जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।


नामदेव जी की पत्नी ने पूछा- कौन है?


नामदेव का घर यही है ना?

भगवान जी ने पूछा।


अंदर से आवाज हां जी यही आपको कुछ चाहिये 

भगवान सोचने लगे कि धन्य है नामदेव जी का परिवार घर मे कुछ भी नही है फिर ह्र्दय मे देने की सहायता की जिज्ञयासा हैl


भगवान बोले दरवाजा खोलिये


लेकिन आप कौन?


भगवान जी ने कहा- सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी?

जैसे नामदेव जी विठ्ठल के सेवक,

वैसे ही मैं नामदेव जी का सेवक हूl


ये राशन का सामान रखवा लो।

पत्नि ने दरवाजा पूरा खोल दिया।

फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ,

कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई।

इतना सामान! नामदेव जी ने भेजा है?

मुझे नहीं लगता।

पत्नी ने पूछा।


भगवान जी ने कहा- हाँ भगतानी! आज नामदेव का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है।

जो नामदेव का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया।

और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है।

जगह और बताओ।

सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में।


शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था।


समान रखवाते-रखवाते पत्नि थक चुकी थीं।

बच्चे घर में अमीरी आते देख खुश थे।

वो कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते और कभी गुड़।

कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर-भर कर मेवे लेकर बैठ जाते।

उनके बालमन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे।

भक्त नामदेव जी अभी तक घर नहीं आये थे,

पर सामान आना लगातार जारी था।


आखिर पत्नी ने हाथ जोड़ कर कहा- सेवक जी! अब बाकी का सामान संत जी के आने के बाद ही आप ले आना।

हमें उन्हें ढूंढ़ने जाना है क्योंकी वो अभी तक घर नहीं आए हैं।


भगवान जी बोले- वो तो गाँव के बाहर पीपल के नीचे बैठकर विठ्ठल सरकार का भजन-सिमरन कर रहे हैं।

अब परिजन नामदेव जी को देखने गये


सब परिवार वालों को सामने देखकर नामदेव जी सोचने लगे,

जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ़ रहे हैं।


इससे पहले की संत नामदेव जी कुछ कहते

उनकी पत्नी बोल पड़ीं- कुछ पैसे बचा लेने थे।

अगर थान अच्छे भाव बिक गया था,

तो सारा सामान संत जी आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या?


भक्त नामदेव जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए।

फिर बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया,

कि जरूर मेरे प्रभु ने कोई खेल कर दिया है।


पत्नि ने कहा अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो समान घर मे भैजने से रुकता ही नहीं था।

पता नही कितने वर्षों तक का राशन दे गया।

उससे मिन्नत कर के रुकवाया- बस कर! बाकी संत जी के आने के बाद उनसे पूछ कर कहीं रखवाएँगे।


भक्त नामदेव जी हँसने लगे और बोले- ! वो सरकार है ही ऐसी।


जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं।

उसकी बख्शीश कभी भी खत्म नहीं होती।

वह सच्ची सरकार की तरह सदा कायम रहती है।

    🙏राधे राधे

जब श्री कृष्ण जी को ठण्ड लगी

 जबश्रीकृष्णजीकोठण्डलगी


यह सत्य घटना सुनकर आपकी आंखों से जरूर आंसू आ जाएंगे...


रोनाल्ड निक्सन जो कि एक अंग्रेज थे कृष्ण प्रेरणा से ब्रज में आकर बस गये ! उनका कन्हैया से इतना प्रगाढ़ प्रेम था कि वे कन्हैया को अपना छोटा भाई मानने लगे थे ! एक दिन उन्होंने हलवा बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाया पर्दा हटाकर देखा तो हलवे में छोटी छोटी उँगलियों के निशान थे ! जिसे देख कर 'निक्सन' की आखों से अश्रु धारा बहने लगी ! क्यूँ कि इससे पहले भी वे कई बार भोग लगा चुके थे पर पहलेकभी ऐसा नहीं हुआ था |

और एक दिन तो ऐसी घटना घटी कि सर्दियों का समय था, निक्सन जी कुटिया के बाहर सोते थे |


ठाकुर जी को अंदर सुलाकर विधिवत रजाई ओढाकर फिर

खुद लेटते थे | एक दिन निक्सन सो रहे थे ! मध्यरात्रि को अचानक उनको ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें आवाज दी हो... दादा ! ओ दादा !

उन्होंने उठकर देखा जब कोई नहीं दिखा तो सोचने लगे हो

सकता हमारा भ्रम हो, थोड़ी देर बाद उनको फिर सुनाई दिया.... दादा ! ओ दादा !

उन्होंने अंदर जाकर देखा तो पता चला की वे ठाकुर जी को रजाई ओढ़ाना भूल गये थे | वे ठाकुर जी के पास जाकर बैठ गये और बड़े प्यार से 

बोले, ''आपको भी सर्दी लगती है क्या...?''

निक्सन का इतना कहना था कि ठाकुर जी के श्री विग्रह से आसुओं की अद्भुत धारा बह चली...

ठाकुर जी को इस तरह रोता देख निक्सनजी भी फूट फूट कर रोने लगे !

उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज भक्त इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी |

रोजाना पैदल चलिए, सात बीमारियों से हो सकता है बचाव

 रोजाना पैदल चलिए, सात बीमारियों से हो सकता है बचाव

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🚶‍♂️रोजाना पैदल चलने के भी कई सारे स्वास्थ्य फायदे होते हैं। तेजी से बदल रही दुनिया में आज लगभग हर किसी के पास मोटरसाइकिल मौजूद है, और ज्यादातर लोगों के पास कार भी है।

*सभी लोग अपने टाइम की बचत के लिए इन संसाधनों से ऑफिस, स्कूल या फिर बाजार जाते हैं। हालांकि इससे समय की बचत तो होती है लेकिन लोगों की जिंदगी में पैदल चलने की स्थिति बिल्कुल भी नहीं बन पाती है। हाल ही में हुए में एक रिसर्च के अनुसार पैदल चलने से आप कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से बचे रह सकते हैं।

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🚶‍♀️रिसर्च के अनुसार अगर आप रोजाना पैदल चलते हैं तो इससे आपको कई सारी बीमारियों का खतरा कम हो जाएगा और आपकी क्वालिटी ऑफ लाइफ में भी काफी सुधार आएगा।

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👉👩‍🦯ब्रेन स्ट्रोक👩‍🦯

👩‍🦯अक्सर आपने सुना होगा या डॉक्टर के द्वारा सलाह ली होगी कि रोजाना मॉर्निंग वॉक पर जरूर जाएं। इससे आपको ताजी हवा तो मिलती है साथ ही साथ आपका मूड भी रिफ्रेश हो जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि मॉर्निंग वॉक करने से ही आप ब्रेन स्ट्रोक जैसी जानलेवा स्थिति से भी आपको बचा सकता है? आपको सुनकर हैरानी होगी लेकिन अगर आप पूरे हफ्ते को मिलाकर कुल 2 घंटे तक पैदल चलते हैं तो इससे ब्रेन स्ट्रोक का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।

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👉🚶‍♂️वजन घटाने के लिए

🚶‍♂️जिन लोगों को मोटापे की समस्या है उन्हें तो जरूर पैदल चलना चाहिए और डॉक्टरों के द्वारा भी वेट लॉस टिप्स में पैदल चलने की सलाह जरूर दी जाती है। दरअसल, पैदल चलने से शरीर बहुत तेजी में पसीने को बाहर छोड़ता है जो मोटी चर्बी को पतला करने में काफी मददगार साबित होता है। इतना ही नहीं, अगर आप रोजाना 1 घंटे पैदल चलते हैं तो यह आपको मोटापे की समस्या से काफी दूर रखेगा और आप स्वस्थ बने रहेंगे।

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👉🚶‍♀️डिप्रेशन🚶‍♀️

🚶‍♀️कभी-कभी ऑफिशियल वर्क, घर की नोकझोंक के कारण, दोस्तों यारों से कहासुनी या फिर किसी विशेष बात के कारण आप डिप्रेशन में चले जाते हैं और आपको इसका अंदाजा भी नहीं लगता है लेकिन अगर आप रोजाना पैदल चलते हैं तो आप इस समस्या से भी बचे रहेंगे। डिप्रेशन की समस्या से बचे रहने के लिए रिचार्ज के अनुसार आपको रोजाना 30 मिनट तक पैदल जरूर चलना चाहिए। दरअसल पैदल चलने से हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं की एक्सर्साइज हो जाती है और यह दिमाग पर भी काफी एक्टिव प्रभाव डालता है। जिसके कारण अगर आप रोजाना पैदल चलते हैं तो यह दिमाग को सक्रिय रूप से काम करने के लिए एक्टिव तो करता ही है साथ ही साथ आपको डिप्रेशन से भी बचाए रखने में मदद करता है।

👉👩‍🦯दिमाग तेज करने के लिए

🚶‍♂️दिमाग को तेज करने के लिए आप तरह-तरह के फूड्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको बिना किसी फूड्स के ही दिमाग तेज करना है तो आप पैदल चलने की आदत भी डाल सकते हैं इसलिए पूरे हफ्ते में कम से कम 40 मिनट की चहलकदमी जरूर करें। इससे आपके दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और आप के मस्तिष्क की कार्य क्षमता का विकास भी होगा। इसके अलावा हम आपको बता दें कि पैदल चलने का मतलब यह नहीं है कि आप रोजाना 4 या 5 किलोमीटर पैदल चलें बल्कि आप कम से कम 20 से 25 मिनट तक मॉर्निंग वॉक पर या फिर ईवनिंग वॉक पर जरूर निकलें।

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👉🚶‍♀️हड्डियों को मजबूती मिलेगी

👩‍🦯पैदल चलने के अन्य फायदों की बात करें तो इसका दूसरा सबसे ज्यादा असर हमारे शरीर के ढांचे पर ही असरकारी होता है और सीधे तौर पर वह हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है। रिसर्च में यह भी देखा गया कि पैदल चलने वाले लोगों में हिप फ्रैक्चर का खतरा करीब 43% तक कम हो जाता है। इसलिए आप भी अपनी दिनचर्या में से समय निकालें और कम से कम रोजाना 15 या 20 मिनट तक तो जरूर ही चलें।

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👉🚶‍♂️डायबिटीज🚶‍♀️

🚶‍♀️भारत को डायबिटीज की राजधानी कहा जाता है क्योंकि भारत में आज करोड़ों की संख्या में लोगों को डायबिटीज है और वह इस बीमारी से जूझ रहे हैं। लेकिन अगर आप डायबिटीज जैसी बीमारी से बचे रहना चाहते हैं तो आपको रोजाना पैदल जरूर चलना चाहिए।

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👩‍🦯दरअसल, पैदल चलने से शरीर के खून में मौजूद एक्स्ट्रा ब्लड शुगर काफी हद तक बर्न हो जाता है और आप इस बीमारी की चपेट में आने से बचे रहते हैं। इतना ही नहीं, अगर आपको डायबिटीज है तो पैदल चलने से आप इससे होने वाले जोखिम से भी बचे रहेंगे।

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👉🚶‍♂️हृदय रोगों का खतरा कम करे

👩‍🦯हृदय रोगों के कारण भारत में आज कई सारे लोगों को तरह-तरह की दवाओं का सेवन करना पड़ता है और उन्हें अपने खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना पड़ता है। इतना ही नहीं है, ऐसे लोगों की क्वालिटी ऑफ लाइफ सुधारने के लिए डॉक्टरों के द्वारा रोजाना मॉर्निंग वॉक पर जाने के लिए भी कहा जाता है। हालांकि, अगर आप हृदय रोग के मरीज नहीं भी है तो इस बीमारी से बचे रहने के लिए आपको रोजाना 30 मिनट पैदल जरूर चलना चाहिए।

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🚶‍♂️दरअसल, पैदल चलने से हमारे शरीर के ब्लड सर्कुलेशन में भी बदलाव होते हैं जो हमारे हृदय को ठीक तरह से काम करने के लिए प्रेरित करता है और हृदय रोग से भी बचाए रहने में मदद कर सकता है।

अगर ब्लैडर चोक हो जाए...

 अगर ब्लैडर चोक हो जाए...            ______


मूत्राशय भरा हुआ है, 

और पेशाब नहीं हो रहा है, 

या पेशाब करने में असमर्थ हो रहे हैं.. तो क्या करें?? 👉


यह एक प्रसिद्ध एलोपैथी चिकित्सक 70 वर्षीय ईएनटी विशेषज्ञ का अनुभव है।  

आइए सुनते हैं अनुठा अनुभव..👉   


एक सुबह वे अचानक उठे।  उन्हें मुत्रत्याग करने की जरूरत थी, लेकिन वे कर नहीं सके (कुछ लोगों को बाद की उम्र में कभी-कभी यह समस्या होती है)। उन्होंने बार-बार कोशिश की, लेकिन लगातार कोशिश नाकाम रही। तब उन्होंने महसूस किया कि एक समस्या खड़ी हो गयी है।


एक डॉक्टर होने के नाते, वे ऐसी शारीरिक समस्याओं से अछूते नहीं थे; उनका निचला पेट भारी हो गया। बैठना या खड़े़ रहना दुस्वार होने लगा, तल-पेट में दबाव बढ़ने लगा ।


तब उन्होंने एक जाने-माने यूरोलॉजिस्ट को फोन पर बुलाया और स्थिति के बारे में बताया।  मूत्र-रोग विशेषज्ञ ने उत्तर दिया: "मैं इस समय एक बाहरी क्षेत्र के अस्पताल में हूँ, और आपके क्षेत्र के क्लिनिक में दो घंटे में पहुँच पाऊँगा। क्या आप इतने लंबे समय तक इसका सामना कर सकते हैं?"

उन्होंने उत्तर दिया: "मैं कोशिश करूँगा।"

उसी समय, उन्हें बचपन की एक अन्य एलोपैथिक महिला-डॉक्टर का ध्यान आया। बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपनी दोस्त-डाक्टर को स्थिति के बारे में बताया।

उस सहेली ने उत्तर दिया:-  "ओह, आपका मूत्राशय भर गया है। और कोशिश करने पर भी आप मुत्रत्याग कर नहीं पा रहे... चिंता न करें। जैसा मैं बता रही हूं, वैसा ही करें। आप इस समस्या से छुटकारा पा जाएंगे।"  

और उसने निर्देश दिया:- 

 "सीधे खड़े हो जाइये, और जोर से बार-बार कूदिये। कूदते समय दोनों हाथों को ऊपर यूॅं उठाए रखें, मानो आप किसी पेड़ से आम तोड़ रहे हों। ऐसा 10 से 15 बार करें।"

बूढ़े डॉक्टर ने सोचा: "क्या? सचमुच मैं इस स्थिति में कूद पाऊंगा? इलाज थोड़ा संदिग्ध लग रहा था। फिर भी डॉक्टर ने कोशिश की... 

3 से 4 बार छलांग लगाने पर ही उन्हें पेशाब की तलब लगी और उन्हें राहत मिल गयी।  

 उन्होंने इतनी सरल विधि से समस्या को हल करने के लिए अपनी मित्र डॉक्टर को सहर्ष धन्यवाद दिया। 

अन्यथा, उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता, मूत्राशय की जाॅंच, इंजेक्शन, एंटीबायोटिक्स आदि के साथ साथ कैथेटर डालना होता... उनके और करीबी लोगों के लिए मानसिक तनाव के साथ लाखों का बिल भी होता।

 

कृपया वरिष्ठ नागरिकों के साथ साझा करें। इस असहनीय अनुभव वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह एक बहुत ही सरल उपाय है.... 

कृपया इसे शेयर जरुर करें 

*🙏

👨‍🏫👩‍🏫 सभी वरिष्ठ नागरिक (55 से ऊपर की उम्र के) कृपया अवश्य पढ़ें, हो सकता है आपके लिए फायदेमंद हो .. 

           

आप जानते हैं कि मन चाहे कितना ही जोशीला हो पर साठ की उम्र पार होने पर यदि आप अपनेआप को फुर्तीला और ताकतवर समझते हों तो यह गलत है।  वास्तव में ढलती उम्र के साथ शरीर उतना ताकतवर और फुर्तीला नहीं रह जाता।


आपका शरीर ढलान पर होता है, जिससे ‘हड्डियां व जोड़ कमजोर होते हैं, पर कभी-कभी मन भ्रम बनाए रखता है कि ‘ये काम तो मैं चुटकी में कर लूँगा’।  पर बहुत जल्दी सच्चाई सामने आ जाती है मगर एक नुकसान के साथ।


सीनियर सिटिजन होने पर जिन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए, ऐसी कुछ टिप्स दे रहा हूं। 


 -- धोखा तभी होता है जब मन सोचता है कि ‘कर लूंगा’ और शरीर करने से ‘चूक’ जाता है।  परिणाम एक एक्सीडेंट और शारीरिक क्षति!


ये क्षति फ्रैक्चर से लेकर ‘हेड इंज्यूरी’ तक हो सकती है।  यानी कभी-कभी जानलेवा भी हो जाती है।


-- इसलिए जिन्हें भी हमेशा हड़बड़ी में काम करने की आदत हो, बेहतर होगा कि वे अपनी आदतें बदल डालें।


भ्रम न पालें, सावधानी बरतें क्योंकि अब आप पहले की तरह फुर्तीले नहीं रहे।


छोटी सी चूक कभी बड़े नुक़सान का कारण बन जाती है।


-- सुबह नींद खुलते ही तुरंत बिस्तर छोड़ खड़े न हों, क्योंकि आँखें तो खुल जाती हैं मगर शरीर व नसों का रक्त प्रवाह पूर्ण चेतन्य अवस्था में नहीं हो पाता ।


अतः पहले बिस्तर पर कुछ मिनट बैठे रहें और पूरी तरह चैतन्य हो लें।  कोशिश करें कि बैठे-बैठे ही स्लीपर/चप्पलें पैर में डाल लें और खड़े होने पर मेज या किसी सहारे को पकड़कर ही खड़े हों। अक्सर यही समय होता है डगमगाकर गिर जाने का।


-- गिरने की सबसे ज्यादा घटनाएं बाथरुम/वॉशरुम या टॉयलेट में ही होती हैं।  आप चाहे अकेले हों, पति/पत्नी के साथ या संयुक्त परिवार में रहते हों लेकिन बाथरुम में अकेले ही होते हैं।


-- यदि आप घर में अकेले रहते हों, तो और अधिक सावधानी बरतें क्योंकि गिरने पर यदि उठ न सके तो दरवाजा तोड़कर ही आप तक सहायता पहुँच सकेगी, वह भी तब जब आप पड़ोसी तक समय से सूचना पहुँचाने में सफल हो सकेंगे।


— याद रखें बाथरुम में भी मोबाइल साथ हो ताकि वक्त जरुरत काम आ सके।


-- देशी शौचालय के बजाय हमेशा यूरोपियन कमोड वाले शौचालय का ही इस्तेमाल करें।  यदि न हो तो समय रहते बदलवा लें, इसकी तो जरुरत पड़नी ही है, अभी नहीं तो कुछ समय बाद।


संभव हो तो कमोड के पास एक हैंडिल लगवा लें।  कमजोरी की स्थिति में इसे पकड़ कर उठने के लिए ये जरूरी हो जाता है।


बाजार में प्लास्टिक के वेक्यूम हैंडिल भी मिलते हैं, जो टॉइल जैसी चिकनी सतह पर चिपक जाते हैं, पर इन्हें हर बार इस्तेमाल से पहले खींचकर जरूर जांच-परख लें।


-- हमेशा आवश्यक ऊँचे स्टूल पर बैठकर ही नहायें।


बाथरुम के फर्श पर रबर की मैट जरूर बिछाकर रखें ताकि आप फिसलन से बच सकें।


-- गीले हाथों से टाइल्स लगी दीवार का सहारा कभी न लें, हाथ फिसलते ही आप ‘डिस-बैलेंस’ होकर गिर सकते हैं।


-- बाथरुम के ठीक बाहर सूती मैट भी रखें जो गीले तलवों से पानी सोख ले।  कुछ सेकेण्ड उस पर खड़े रहें फिर फर्श पर पैर रखें वो भी सावधानी से। 


-- अंडरगारमेंट हों या कपड़े, अपने चेंजरूम या बेडरूम में ही पहनें।  अंडरवियर, पाजामा या पैंट खडे़-खडे़ कभी नहीं पहनें।


हमेशा दीवार का सहारा लेकर या बैठकर ही उनके पायचों में पैर डालें, फिर खड़े होकर पहनें, वर्ना दुर्घटना घट सकती है।


कभी-कभी स्मार्टनेस की बड़ी कीमत चुकानी पड़ जाती है।


-- अपनी दैनिक जरुरत की चीजों को नियत जगह पर ही रखने की आदत डाल लें, जिससे उन्हें आसानी से उठाया या तलाशा जा सके।


भूलने की आदत हो, तो आवश्यक चीजों की लिस्ट मेज या दीवार पर लगा लें, घर से निकलते समय एक निगाह उस पर डाल लें, आसानी रहेगी।


-- जो दवाएं रोजाना लेनी हों, उनको प्लास्टिक के प्लॉनर में रखें जिससे जुड़ी हुई डिब्बियों में हफ्ते भर की दवाएँ दिन-वार के साथ रखी जाती हैं।


अक्सर भ्रम हो जाता है कि दवाएं ले ली हैं या भूल गये।प्लॉनर में से दवा खाने में चूक नहीं होगी।


-- सीढ़ियों से चढ़ते उतरते समय, सक्षम होने पर भी, हमेशा रेलिंग का सहारा लें, खासकर ऑटोमैटिक सीढ़ियों पर।


ध्यान रहे अब आपका शरीर आपके मन का ओबिडियेंट सरवेन्ट नहीं रहा।


— बढ़ती आयु में कोई भी ऐसा कार्य जो आप सदैव करते रहे हैं, उसको बन्द नहीं करना चाहिए। 


कम से कम अपने से सम्बन्धित अपने कार्य स्वयं ही करें।


— नित्य प्रातःकाल घर से बाहर निकलने, पार्क में जाने की आदत न छोड़ें, छोटी मोटी एक्सरसाइज भी करते रहें। नहीं तो आप योग व व्यायाम से दूर होते जाएंगे और शरीर के अंगों की सक्रियता और लचीला पन कम होता जाएगा।  हर मौसम में कुछ योग-प्राणायाम अवश्य करते रहें।


— अपना पानी, भोजन, दवाई इत्यादि स्वयं लें जिससे शरीर में सक्रियता बनी रहे।


बहुत आवश्यक होने पर ही दूसरों की सहायता लेनी चाहिए। 


— *घर में छोटे बच्चे हों तो उनके साथ अधिक समय बिताएं, लेकिन उनको अधिक टोका-टाकी न करें। 


-- ध्यान रखें कि अब आपको सब के साथ एडजस्ट करना है न कि सब को आपसे।


-- इस एडजस्ट होने के लिए चाहे, बड़ा परिवार हो,  छोटा परिवार हो या कि पत्नी/पति हो, मित्र हो, पड़ोसी या समाज।


एक मूल मंत्र सदैव उपयोग करें।    

    

1. नोन अर्थात नमक।  भोजन के प्रति स्वाद पर नियंत्रण रखें।   


2. मौन  कम से कम एवं आवश्यकता पर ही बोलें।   


3. कौन (मसलन कौन आया  कौन गया, कौन कहां है, कौन क्या कर रहा है) अपनी दखलंदाजी कम कर दें।                 


नोन, मौन, कौन के मूल मंत्र को जीवन में उतारते ही वृद्धावस्था प्रभु का वरदान बन जाएगी जिसको बहुत कम लोग ही उपभोग कर पाते हैं। 


कृपया इस संदेश को अपने घर, रिश्तेदारों, आसपड़ोस के वरिष्ठ सदस्यों को भी अवश्य प्रेषित करें।


  

            🙏🏻धन्यवाद!🙏🏻

🙄जंगल का स्कूल😗

 🙄जंगल का स्कूल😗


हुआ यूँ कि जंगल के राजा शेर ने ऐलान कर दिया कि अब आज के बाद कोई अनपढ़ न रहेगा। हर पशु को अपना बच्चा स्कूल भेजना होगा। राजा साहब का स्कूल पढ़ा-लिखाकर सबको Certificate बांटेगा।

                सब बच्चे चले स्कूल। हाथी का बच्चा भी आया, शेर का भी, बंदर भी आया और मछली भी, खरगोश भी आया तो कछुआ भी, ऊँट भी और जिराफ भी।

    FIRST UNIT TEST/EXAM हुआ तो हाथी का बच्चा फेल।

 

"किस Subject में फेल हो गया जी?"


"पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गया, हाथी का बच्चा।" 


"अब का करें?" 


"ट्यूशन दिलवाओ, कोचिंग में भेजो।" 


अब हाथी की जिन्दगी का एक ही मक़सद था कि हमारे बच्चे को पेड़ पर चढ़ने में Top कराना है।


किसी तरह साल बीता। Final Result आया तो हाथी, ऊँट, जिराफ सब  के बच्चे फेल हो गए। बंदर की औलाद first आयी। 


Principal ने Stage पर बुलाकर मेडल दिया। बंदर ने उछल-उछल के कलाबाजियाँ दिखाकर गुलाटियाँ मार कर खुशी का इजहार किया। 


उधर अपमानित महसूस कर रहे हाथी, ऊँट और जिराफ ने अपने-अपने बच्चे कूट दिये। 


नालायकों, इतने महँगे स्कूल में पढ़ाते हैं तुमको | ट्यूशन-कोचिंग सब लगवाए हैं। फिर भी आज तक तुम पेड़ पर चढ़ना नहीं सीखे। सीखो, बंदर के बच्चे से सीखो कुछ, पढ़ाई पर ध्यान दो।


फेल हालांकि मछली भी हुई थी। बेशक़ Swimming में First आयी थी पर बाकी subject में तो फेल ही थी। 


मास्टरनी बोली, "आपकी बेटी  के साथ attendance की problem है।


मछली ने बेटी को आँखें दिखाई!

बेटी ने समझाने की कोशिश की कि, "माँ, मेरा दम घुटता है इस स्कूल में। मैं साँस ही नहीं ले पाती। मुझे नहीं पढ़ना इस स्कूल में। हमारा स्कूल तो तालाब में होना चाहिये न?"


 मां - नहीं, ये राजा का स्कूल है। 


तालाब वाले स्कूल में भेजकर मुझे अपनी बेइज्जती नहीं करानी। समाज में कुछ इज्जत Reputation है मेरी। तुमको इसी स्कूल में पढ़ना है। पढ़ाई पर ध्यान दो।"


हाथी, ऊँट और जिराफ अपने-अपने बच्चों को पीटते हुए ले जा रहे थे। 


रास्ते में बूढ़े बरगद ने पूछा, "क्यों पीट रहे हो, बच्चों को?"


जिराफ बोला, "पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गए?"


बूढ़ा बरगद सोचने के बाद पते की बात बोला,


"पर इन्हें पेड़ पर चढ़ाना ही क्यों है ?"

उसने हाथी से कहा, 


"अपनी सूंड उठाओ और सबसे ऊँचा फल तोड़ लो। जिराफ तुम अपनी लंबी गर्दन उठाओ और सबसे ऊँचे पत्ते तोड़-तोड़ कर खाओ।"


ऊँट भी गर्दन लंबी करके फल पत्ते खाने लगा।

हाथी के बच्चे को क्यों चढ़ाना चाहते हो पेड़ पर? मछली को तालाब में ही सीखने दो न?


दुर्भाग्य से आज स्कूली शिक्षा का पूरा Curriculum और Syllabus सिर्फ बंदर के बच्चे के लिये ही Designed है। इस स्कूल में 35 बच्चों की क्लास में सिर्फ बंदर ही First आएगा। बाकी सबको फेल होना ही है। हर बच्चे के लिए अलग Syllabus, अलग Subject और अलग स्कूल चाहिये।


हाथी के बच्चे को पेड़ पर चढ़ाकर अपमानित मत करो। ज🚔🤑बर्दस्ती उसके ऊपर फेलियर का ठप्पा मत लगाओ। ठीक है, बंदर का उत्साहवर्धन करो पर शेष 34 बच्चों को नालायक, कामचोर, लापरवाह, Duffer, Failure घोषित मत करो।


मछली बेशक़ पेड़ पर न चढ़ पाये पर एक दिन वो पूरा समंदर नाप देगी।


शिक्षा - अपने बच्चों की क्षमताओं व प्रतिभा की कद्र करें चाहे वह पढ़ाई, खेल, नाच, गाने, कला, अभिनय, व्यापार, खेती, बागवानी, मकेनिकल, किसी भी क्षेत्र में हो और उन्हें उसी दिशा में अच्छा करने दें | 


जरूरी नहीं कि सभी बच्चे पढ़ने में ही अव्वल हो! बस जरूरत हैं उनमें अच्छे संस्कार व नैतिक मूल्यों की जिससे बच्चे गलत रास्ते नहीं चुने l


सभी अभिभावकों को सादर समर्पित 🙏🙏

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

सनातन धर्म की पुनर्स्थापना

 🌹 श्रीकृष्णाः शरणं मम🌹

सनातन धर्म  की पुनर्स्थापना  जैसे हर युग में पहले होती आई है... बैसे ही अब भी होगी... कैसे पढो़...


अपने धर्मग्रंथों को पढ़िए , ये सारे राक्षसों के वध से भरे पड़े हैं.

राक्षस भी ऐसे-२ वरदानों से प्रोटेक्टेड थे कि दिमाग घूम जाए...


एक को वरदान प्राप्त था कि वो न दिन में मरे, न रात में, न आदमी से मरे , न जानवर से, न घर में मरे, न बाहर, न आकाश में मरे, न धरती पर, न अस्त्र से मरे,  न शस्त्र से, न 12 महीनों में किसी माह में मरे.. 


तो दूसरे को वरदान था कि वे भगवान भोलेनाथ और विष्णु के संयोग से उत्पन्न पुत्र से ही मरे.


तो, किसी को वरदान था कि... उसके शरीर से खून की जितनी बूंदे जमीन पर गिरें ,उसके उतने प्रतिरूप पैदा हो जाएं.


तो, कोई अपने नाभि में अमृत कलश छुपाए बैठा था.


लेकिन... हर राक्षस का वध हुआ. बगैर किसी बदलाव के


हालाँकि... सभी राक्षसों का वध अलग अलग देवताओं ने अलग अलग कालखंड एवं भिन्न भिन्न जगह किया...


लेकिन... सभी वध में एक  बात कॉमन रही और वो यह कि... किसी भी राक्षस का वध उसका वरदान विशेष  निरस्त कर अर्थात उसके वरदान को कैंसिल कर के नहीं किया गया...

ये नहीं किया गया कि,

 तुम इतना उत्पात मचा रहे हो इसीलिए तुम्हारा वरदान कैंसिल कर रहे हैं..

और फिर उसका वध कर दिया.


बल्कि... हुआ ये कि... देवताओं को उन राक्षसों को निपटाने के लिए उसी वरदान में से रास्ता निकालना पड़ा कि इस वरदान के मौजूद रहते हम इनको कैसे निपटा सकते हैं.


और अंततः कोशिश करने पर वो रास्ता निकला भी... 

 सब राक्षस निपटाए भी गए...


तात्पर्य यह है कि...

 परिस्थिति कभी भी अनुकूल होती नहीं है,   अनुकूल बनाई जाती हैं.


आप किसी भी एक राक्षस के बारे में सिर्फ कल्पना कर के देखें कि अगर उसके संदर्भ में अनुकूल परिस्थिति का इंतजार किया जाता तो क्या वो अनुकूल परिस्थिति कभी आती ?


उदाहरण के लिए चर्चित राक्षस रावण को ही ले लेते हैं.


रावण के बारे में ये विवशता   कही जा सकती थी कि... 

भला रावण को कैसे मार पाएंगे?

 पचासों तीर मारे और बीसों भुजाओं व दसों सिर भी काट दिए..

लेकिन, उसकी भुजाएँ व सिर फिर जुड़ जाते हैं तो इसमें हम क्या करें ???


इसके बाद अपनी असफलता का सारा ठीकरा ऐसा वरदान देने वाले ब्रह्मा पर फोड़ दिया जाता कि... उन्होंने ही रावण को ऐसा वरदान दे रखा है कि अब उसे मारना असंभव हो चुका है.


और फिर.. ब्रह्मा पर ये भी आरोप डाल दिया जाता कि जब स्वयं ब्रह्मा रावण को ऐसा अमरत्व का वरदान देकर धरती पर राक्षस-राज लाने में लगे हैं तो भला हम कर भी क्या सकते हैं? 


लेकिन... ऐसा हुआ नहीं ... 

बल्कि, भगवान राम ने उन वरदानों के मौजूद रहते हुए ही रावण का वध किया


क्योंकि, यही "सिस्टम" है.


तो... पुरातन काल में हम जिसे वरदान कहते हैं...

 आधुनिक काल में हम उसे संविधान द्वारा प्रदत्त स्पेशल स्टेटस कह सकते हैं...

जैसे कि... अल्पसंख्यक स्टेटस, पर्सनल बोर्ड आदि आदि.


इसीलिए... आज भी हमें राक्षसों को इन वरदानों (स्पेशल स्टेटस) के मौजूद रहते ही निपटाना होगा.. 

जिसके लिए इन्हीं स्पेशल स्टेटस में से लूपहोल खोजकर रास्ता निकालना होगा.


और, आपको क्या लगता है कि... इनके वरदानों (स्पेशल स्टेटस) को हटाया जाएगा...


क्योंकि, हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों में ऐसा एक भी साक्ष्य नहीं मिलता कि किसी राक्षस के स्पेशल स्टेटस (वरदान) को हटा कर पहले परिस्थिति अनुकूल की गई हो तदुपरांत उसका वध किया गया हो.


और, जो हजारों लाखों साल के इतिहास में कभी नहीं हुआ... अब उसके हो जाने में संदेह लगता है.


परंतु... हर युग में एक चीज अवश्य हुई है...

और, वो है राक्षसों का विनाश.

एवं, सनातन धर्म की पुनर्स्थापना.


🙏 इसीलिए..

 इस बारे में जरा भी भ्रमित न हों कि ऐसा नहीं हो पायेगा.


लेकिन, घूम फिर कर बात वहीं आकर खड़ी हो जाती है कि.... भले ही त्रेतायुग के भगवान राम हों अथवा द्वापर के भगवान श्रीकृष्ण..


राक्षसों के विनाश के लिए हर किसी को जनसहयोग की आवश्यकता पड़ी थी.


और, जहाँ तक धर्मग्रंथों का सार की बात है

तो वो भी यही है कि हर युग में राक्षसों के विनाश में सिर्फ जनसहयोग की आवश्यकता   पड़ती है..


ये इसीलिए भी पड़ती है ताकि... राक्षसों के विनाश के बाद जो एक नई दुनिया बनेगी... 

उस नई दुनिया को उनके बाद के लोग संभाल सके, संचालित कर सकें.


नहीं तो इतिहास गवाह है कि.... बनाने वालों ने तो भारत में आकाश छूती इमारतें और स्वर्ग को भी मात देते हुए मंदिर बनवाए थे... 


लेकिन, उसका हश्र क्या हुआ ये हम सब जानते हैं.


इसीलिए... राक्षसों का विनाश जितना जरूरी है...

उतना ही जरूरी उसके बाद उस धरोहर को संभाल के रखने का भी है.


और... अभी शायद उसी की तैयारी हो रही है.


अर्थात... सभी समाज को गले लगाया जा रहा है.. और, माता शबरी को उचित सम्मान दिया जा रहा है.


वरना, सोचने वाली बात है कि जो रावण ... पंचवटी में लक्ष्मण के तीर से खींची हुई एक रेखा तक को पार नहीं कर पाया था...भला उसे पंचवटी से ही एक तीर मारकर निपटा देना क्या मुश्किल था? 


अथवा... जिस महाभारत को श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र के प्रयोग से महज 5 मिनट में निपटा सकते थे भला उसके लिए 18 दिन तक युद्ध लड़ने की क्या जरूरत थी? 


लेकिन... रणनीति में हर चीज का एक महत्व होता है... जिसके काफी दूरगामी परिणाम होते हैं.


इसीलिए...  कभी भी उतावलापन नहीं होना चाहिए.

और फिर वैसे भी कहा जाता है कि जल्द काम शैतान का


क्योंकि,  ये बात अच्छी तरह मालूम है कि.... रावण, कंस, दुर्योधन, रक्तबीज और हिरणकश्यपु आदि का विनाश तो निश्चित है तथा यही उनकी नियति है..!!

लंका जल रही है,

अयोध्या सज रही है और शबरी राष्ट्रपति बन रही है इतिहास से सीख लेकर कार्य जारी है!


नोट : धर्मग्रंथ रोज सुबह नहा धो कर सिर्फ पुण्य कमाने के उद्देश्य से पढ़ने के लिए ही नहीं होते ..


बल्कि, हमारे धर्मग्रंथों के रूप में हमारे पूर्वज/देवताओं ने अपने अनुभव हमें ये बताने के लिए लिपिबद्ध किया ताकि आगामी पीढ़ी ये जान सके कि अगर फिर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो तो उससे कसे निपटा जाए.


🙏राधे राधे

जगद्गगुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज

  जगद्गगुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज


जगदगुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज, राम जन्मभूमि केस में जिनकी गवाही के बाद बंद हो गए थे 20 करोड़ मुसलमानों के मुंह 


अगर आप हिंदू हैं तो आपको जगदगुरु श्री रामभद्राचार्य जी के बारे में जरूर जानना चाहिए


-एक बालक जिसने 3 साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिख दी 


-एक बालक जिसने 5 साल की उम्र में पूरी श्रीमदभगवत गीता के 700 श्लोक विद चैप्टर और श्लोक नंबर के साथ याद कर लिए


-एक बालक जिसने 7 साल की उम्र में सिर्फ 60 दिन के अंदर श्रीरामचरितमानस की 10 हजार 900 चौपाइयां और छंद याद कर लिए 


-वही बालक गिरिधर आज पूरी दुनिया में जगदगुरु श्री रामभद्राचार्य जी के नाम से जाने जाते हैं 


-मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी 1950 को जौनपुर में उनका जन्म हुआ था 


- 2 महीने की उम्र में ही वो नेत्रहीन हो गए लेकिन वो 22 भाषाओं में बोल सकते हैं इसके अलावा 100 से ज्यादा पुस्तकें और 50 से ज्यादा रिसर्च पेपर बोलकर लिखवा चुके हैं 


-एक नेत्रहीन बालक इतना बड़ा विद्वान बन गया कि जब रामजन्मभूमि केस में मुस्लिम पक्ष ने ये सवाल खड़ा किया कि अगर बाबर ने राममंदिर तोड़ा तो तुलसी दास ने जिक्र क्यों नहीं किया ? ये सवाल इतना भारी था कि हिंदू पक्ष के लिए संकट खड़ा हो गया लेकिन तब संकट मोचन बने श्रीरामभद्राचार्य जिन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट (हाईकोर्ट का नाम अब भी वही है) में गवाही दी और तुलसी दास के दोहाशतक में लिखा वो दोहा जज साहब को सुनाया जिसमें बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा राम मंदिर को तोड़ने का जिक्र है 


 रामजन्म मंदिर महिं मंदिरहि तोरि मसीत बनाय । 

 जबहि बहु हिंदुन हते, तुलसी कीन्ही हाय ।। 

 दल्यो मीर बाकी अवध, मंदिर राम समाज । 

 तुलसी रोवत हृदय अति, त्राहि त्राहि रघुराज ।। 


- चहुं ओर जय जय कार हो गई, रामभद्राचार्य जी महाराज की । 

- उनके प्रोफाइल पर गौर कीजिए आध्यात्मिक नेता, शिक्षक, संस्कृत के विद्वान, कवि, विद्वान, दार्शनिक, गीतकार, गायक, साहित्यकार और कथाकार 


- 24 जून 1988 को काशी विद्वत परिषद ने उनको जगदगुरु रामभद्राचार्य की उपाधि दी... उनका बचपन का नाम था गिरिधर 


- प्रयागराज में कुंभ मेले में 3 फरवरी 1989 में सभी संत समाज द्वारा स्वामी गिरिधर को श्री रामभद्राचार्य की उपाधि दे दी गई

- श्री रामभद्राचार्य तुलसी पीठ के संस्थापक हैं और जगदगुरु रामभद्राचार्य हैंडिकैप्ड यूनिवर्सिटी के आजीवन कुलपति भी हैं । विश्व हिंदू परिषद के रूप में भी वो हिंदुओं को प्रेरणा दे रहे हैं 


-प्रणाम है ऐसे महान संत को


ॐ के 11 शारीरिक लाभ:

 ॐ के 11 शारीरिक लाभ:


ॐ अर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, 


जो सर्व विदित है ।


अ उ म् । 


"अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, 


"उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,


"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात्"ब्रह्मलीन" हो जाना।


 ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है।


 ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।


 जानें, 


ॐ कैसे है स्वास्थ्य वर्द्धक 

 अपनाएं आरोग्य के लिए मात्र ॐ के उच्चारण का मार्ग



1, ॐ और थायरायडः 


ॐ के दूसरे अक्षर का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।


 2. ॐ और घबराहटः 


अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।


3. ॐ और तनावः यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, 


अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है। 


4. ॐ और खून का प्रवाहः


 यह हृदय औरख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।


5. ॐ और पाचनः 


ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।


6. ॐ लाए स्फूर्तिः


 इससे शरीर में फिर से युवा वस्था वाली स्फूर्तिका संचार होता है।


7. ॐ और थकान: 


थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।


8. ॐ और नींदः 


नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।


9. ॐ और फेफड़े: 


कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है। 


10. ॐ और रीढ़ की हड्डी: 


ॐ के पहले शब्द का उच्चारण करने से कंपन पैदा होती है। 

इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है


11. ॐ दूर करे तनावः 


अनेक बार ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है। 

🙏एक साँस में ॐ जितनी देर तक कर सकें करें। 

🙏राधे राधे

जो रमने के लिए विवश कर दे वह राम..!

 जो रमने के लिए विवश कर दे वह राम..!

जीवन की आपाधापी में पड़ा अशांत मन जिस आनंददायक गंतव्य की सतत तलाश में है, वह गंतव्य है राम..!


भारतीय मन हर स्थिति में राम को साक्षी बनाने का आदी है।


👉दुःख में,

हे राम..!


👉पीड़ा में,

हे राम..!


👉लज्जा में,

हाय राम..!


👉अशुभ में,

अरे राम राम..!


👉अभिवादन में,

राम राम..!


👉शपथ में,

रामदुहाई..!


👉अज्ञानता में,

राम जाने..!


👉अनिश्चितता में,

राम भरोसे..!


👉अचूकता के लिए,

रामबाण..!


👉मृत्यु के लिए,

रामनाम सत्य..!


👉सुशासन के लिए,

रामराज्य..!


जैसी अभिव्यक्तियां पग-पग पर राम को साथ खड़ा करतीं हैं।


राम भी इतने सरल हैं कि हर जगह खड़े हो जाते हैं।


हर भारतीय उन पर अपना अधिकार मानता है। 


👉जिसका कोई नहीं उसके लिए राम हैं-

निर्बल के बल राम..!


असंख्य बार देखी सुनी पढ़ी जा चुकी रामकथा का आकर्षण कभी नहीं खोता।


राम पुनर्नवा हैं।


हमारे भीतर जो कुछ भी अच्छा है, वह राम है।


जो शाश्वत है, वह राम हैं।


सब-कुछ लुट जाने के बाद जो बचा रह जाता है वही तो राम है।


घोर निराशा के बीच जो उठ खड़ा होता है वह भी राम ही है।


🙏जै रामजी की,

पढ़ें और विचार करें..

 🙏 एकबार  अवश्य  ही पढ़ें  और विचार करें..

👉🏻सबसे  बड़ा आंख खोलने (सत्य)वाला सन्देश सब जानते समझते तो है परन्तु आज इकट्ठा आज पहली बार पढोगे कृपया ध्यान देवे👇🏻👇🏻👇🏻

एक Gynaecologist🤶🏼 अपने पूरे जीवन में यह कुछ lines पढ़ती हैं और आजीवन इन Lines के सहारे कमाती हैं । 

वह Lines क्या हैं , यह हैं :- 


1. अरे बच्चे के गले में नाल फँस गयी है , Operate करना पड़ेगा ।

2. अरे बच्चे ने पॉटी कर दी है , condition Critical है , Operate करना पड़ेगा ।

3. बच्चे का पानी सूख गया , Operate करना पड़ेगा । 

4. बच्चा उल्टा हो गया , जच्चा बच्चा बचाने के लिए Operate करना पड़ेगा ।

5. बच्चे का Weight बहुत ज्यादा है , Operate करना पड़ेगा ।

6. बच्चा हिल नहीं रहा है , operate करना पड़ेगा । 

7. समय से ऊपर हो गया , Labour pain नहीं आया , Operate करना पड़ेगा । 

8. बच्चा नहीं निकल रहा है , Operate करना पड़ेगा । 

9. Labour Pain बन्द हो गया ( जो स्वयं वह Epidural injection देकर करते हैं ) , Operate करना पड़ेगा । 

10. इतने पढ़े लिखे होकर भी तुम अपनी Wife की डिलीवरी Normal करवाओगे ।। Operate करना पड़ेगा । 


तुम अब लेकर आ रहे हो अपनी Wife को !!!! पढ़ने लिखने का क्या फायदा ?? 

और हर महीने Ultrasound और भर भर कर हज़ारों की Medicines   जिनके बिना भ्रूण बनेगा ही नहीं , यह ऐसे दिमाग में भरती हैं । 


यह 10 सूत्रीय महामंत्र हैं , जिनसे पूरे जीवन भर एक Doctor अपने सात पुश्तों का इंतजाम कर लेता है । 


और यह 10 सूत्रीय महामंत्र एकमात्र बोगे हिंदुओं पर ही कार्य करता है । 

क्योंकि यह जानते हैं कि यह बहुत ही भयाक्रांत प्रजाति है और वर्षों की गुलाम प्रजाति रही है । 


इनका यह 10 सूत्रीय महामंत्र कभी भी बुरका नशीन ख़ातूनों पर प्रभाव नहीं डाल पाता ।।

मुस्लिम औरतें 10 10 बच्चे बिना चीड़ फाड़ के पैदा करती हैं जो फौलाद किस्म के होते हैं । 


और वहीं डरपोक हिंदुओं के एक ही बच्चा होगा वह भी पेट फाड़कर और असंख्य chemical दवाईयों से निर्मित होते हैं और पूरे जीवन भर  मोम के पुतले बनकर रोगी बनकर असंख्य chemical दवाईयों पर निर्भर रहकर विदेश में बस जाते हैं ।  


कभी देख लेना जहाँ 90 प्रतिशत हिंदुओं के बच्चे सब दवाईयाँ खा खाकर पेट फाड़कर जन्म लेते हैं और मात्र 1% ख़ातूनों के बच्चे Operation से पेट फाड़कर पैदा होते हैं । 


यह क्यों है , यह सभी लोगों को गहनता से विचार करना चाहिए । 


हिंदुओं के लिए भगवान मूर्ख है जिसने स्त्रियों को वह Aperture दिया जहाँ से बच्चे जन्मते हैं । 

इनके लिए Doctor भगवान है जो पेट फाड़कर अप्राकृतिक तौर पर बच्चे निकालते हैं । 


विश्व में एकमात्र मनुष्य का ही और उसमें से हिंदुओं के ही बच्चे होते हैं जो पेट फाड़कर पैदा किये जाते हैं ,बाकी के विश्व के सभी जीवों के बच्चे प्राकृतिक रूप से वहीं से पैदा होते हैं , जहाँ से उन्हें होना चाहिए । 


हिंदुओं की इतनी निर्भरता Doctors पर देखकर लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब यह गर्भाधान भी Doctors से ही करवायेंगे और स्वयं कमरे के बाहर बैठ कर इन्तेजार करेंगे । 


लेकिन यह अत्यंत सोचनीय विषय है कि ऐसा क्यों है । 


क्यों नहीं हम इसके मूल में जाते हैं । 


क्यों नहीं कभी किसी मुस्लिम औरत का बच्चा फँसता है , क्यों उनके बच्चे के गले में नाल नहीं फँसती है , क्यों क्यों क्यों ₹?? 


सोचिये सोचिये सोचिये ।

आपको जीवन में क्या चाहिए? धन, संपदा या प्रभु का प्रेम?

 आपको जीवन में क्या चाहिए? धन, संपदा या प्रभु का प्रेम?


एक बार श्रीचैतन्य महाप्रभु रास्ते में से जा रहे

थे. उनके पीछे गौर भक्त वृन्द भी थे.

महाप्रभु हरे कृष्ण का कीर्तन करते जा रहे थे..

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

II हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे II


कीर्तन करते-करते महाप्रभु थोड़ा सा आगे निकल गए, उन्हें बड़ी जोर की प्यास लगी, परन्तु कहीं पानी नहीं मिला. तब एक व्यापारी सिर पर मिट्टी का घड़ा रखे सामने से चला आ रहा था. महाप्रभु ने उसे देखते ही बोले ‘भईया बड़ी प्यास लगी है थोड़ा सा जल मिल जायेगा’?


व्यापारी में कहा – ‘मेरे पास जल तो नहीं है हाँ इस घड़े में छाछ जरुर है’

इतना कहकर उसने छाछ का घड़ा नीचे उतारा.

महाप्रभु बहुत प्यासे थे इसलिए सारी की सारी छाछ पी गए और बोले ‘भईया बहुत अच्छी छाछ थी, प्यास बुझ गई’.


व्यापारी बोला – ‘अब छाछ के पैसे लाओ’!


महाप्रभु -‘भईया पैसे तो मेरे पास नहीं हैं'? 

व्यापारी महाप्रभु के रूप और सौंदर्य को देखकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने सोचा इन्होने नहीं दिया तो कोई बात नहीं इनके पीछे जो इनके साथ वाले आ रहे है इनसे ही मांग लेता हूँ. महाप्रभु ने उसे खाली घड़ा दे दिया उसे सिर पर रखकर वह आगे बढ़ गया. पीछे आ रहे नित्यानंद जी और भी भक्त वृन्दो से उसने पैसे मांगे तो वे कहने लगे ‘हमारे मालिक तो आगे चल रहे हैं जब उनके पास ही नहीं है तो फिर हम तो उनके

सेवक है हमारे पास कहाँ से आयेगे’? उन सब को देखकर वह बड़ा प्रभावित हुआ और उसने कुछ नहीं कहा.


जब घर आया और सिर से घड़ा उतारकर देखा तो क्या देखता है कि घड़ा हीरे-मोतियों से भरा हुआ है. एक पल के लिए तो बड़ा प्रसन्न हुआ पर अगले ही पल दुखी हो गया. मन में तुरंत विचार आया उन प्रभु ने इस मिट्टी के घड़े को छुआ तो ये हीरे-मोती से भर गया, जब वे मिट्टी को ऐसा बना सकते हैं तो मुझे छू लेने से मेरा क्या ना हो गया होता? अर्थात प्रभु की भक्ति मेरे अन्दर आ जाती…. झट दौड़ता हुआ उसी रास्ते पर गया जहाँ प्रभु को छाछ पिलाई थी. अभी प्रभु ज्यादा दूर नहीं गए थे. तुरंत उनके चरणों में गिर पड़ा


‘प्रभु मुझे प्रेम का दान दीजिये

प्रभु ने उठकर उसे गले से लगा लिया और उसका जीवन बदल गया.

🙏राधे राधे

भंडारा

 भंडारा

तीन दोस्त भंडारे में "प्रसाद" ग्रहण कर रहे थे कि

उनमें से एक बोला:- काश! हम भी ऐसे भंडारे का आयोजन कर पाते.. 

दूसरा बोला:- हां यार ....सैलरी आने से पहले जाने के रास्ते बनाकर आती है ...

तीसरा बोला:- खर्चे इतने सारे होते हैं तो कहा से करें भंडारा ....❓


पास बैठे एक महात्मा जी भी भंडारे का आनंद ले रहे थे.....

वो उन दोस्तों की बाते सुन रहे थे...

महात्मा उन तीनों से बोले:-

बेटा भंडारा करने के लिए "धन" नहीं बल्कि केवल "अच्छे मन" की जरूरत होती है ....

वो तीनों आश्चर्यचकित होकर महात्मा की ओर देखने लगे ....

महात्मा ने सभी की उत्सुकता को देखकर हंसते हुए कहा:- बच्चो,बिस्कुट का एक पैकेट लो और उन्हें चीटियों के स्थान पर बारीक तोड़ कर उनके खाने के लिए रख दो, देखना अनेकों चीटियां उन्हें खुश होकर खाएंगी 

हो गया भंडारा .....

 गेहूं बाजरा (अनाज) के दाने लाओ उसे  बिखेर दो चिडिया कबूतर आकर खाऐंगे ...

हो गया भंडारा ...

थोड़ा टाइट गूंथा हुआ आटा घर से लाओ और किसी तालाब में हाथ से गोली बना का कर मछलियों को डालो 

हो गया भंडारा....

तो आप कब भंडारा कर रहे हो

मित्रो,ईश्वर ने सभी के लिए अन्न का प्रबंध किया है, ये जो तुम और मैं यहां बैठकर पूड़ी सब्जी का आनंद ले रहे हैं ना ......

इस अन्न पर ईश्वर ने हमारा नाम लिखा हुआ है...

तुम भी जीव जन्तुओं के लिए उनके नाम के भोजन का प्रबंध करने के लिए जो भी करोगे वो भी उस ऊपरवाले की इच्छाओं से ही होगा ....

यही तो है भंडारा ...

जाने कौन कहां से आ रहा है या कोई कहीं जा रहा है❓

 किसी को पता भी नहीं होता कि किसको कहां से क्या मिलेगा ...❓

सब उसी की माया है .....

🙏राधे राधे

मृत्यु के लिये प्रवेश!

 मृत्यु के लिये प्रवेश!

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वाराणसी के एक गेस्ट हाउस का एकाउंट है, जहाँ लोग मृत्यु के लिए प्रवेश लेते हैं। इसे 'काशी लाभ मुक्ति भवन' कहा जाता है।


कुछ लोग इसे डेथं होटल भी कहते हैं ।।


एक हिंदु मान्यता के अनुसार यदि कोई काशी में अपनी अंतिम सांस लेता है, तो उसे काशी लाभ (काशी का फल) जो वास्तव में मोक्ष या मुक्ति है, प्राप्त होता है।


इस गेस्ट हाउस के बारे में दिलचस्प तथ्य यह है कि इसमें रहने और मरने के लिए केवल दो सप्ताह की अनुमति है। इसलिए इसमें प्रवेश से पहले किसी को अपनी मृत्यु के बारे में वास्तव में निश्चित होना चाहिए।


यदि कोई व्यक्ति दो सप्ताह के बाद भी जीवित रहता है, तो उसे ये गेस्ट हाउस छोड़ना होता है।


उत्सुकतावश, मैंने वहां जाने का फैसला किया, यह समझने के लिए कि उन लोगों ने क्या सीखा, जिन्होंने

न केवल मृत्यु को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया बल्कि एक निश्चित समय के साथ अपनी मृत्यु का अनुमान भी लगा लिया हो।


मैंने गेस्टहाउस में दो सप्ताह बिताए और प्रवेश करने वाले लोगों का साक्षात्कार लिया। उनके जीवन के सबक वास्तव में विचारोत्तेजक थे।


उसी माहौल में मेरी मुलाकात श्री भैरव नाथ शुक्ला से हुई, जो पिछले 44 वर्षो से मुक्ति भवन के प्रबंधक थे। इतने सालों में उन्होंने वहाँ काम करते हुए 12,000 से ज्यादा मौते देखी थीं।


मैंने उनसे पूछा, "शुक्ला जी, आपने जीवन और मृत्यु, दोनों को इतने करीब से देखा है। मैं जानने के लिए उत्सुक हूँ कि आपके अनुभव क्या रहे।"


शुक्ला जी ने इस संबंध में मेरे साथ जीवन के 12 सबक साझा किये। लेकिन इस श्रृंखला में एक सबक, जिससे शुक्ला जी बहुत प्रभावित थे और जो मुझे भी अंदर तक छू गया, वह जीवन का पाठ है- 'जाने से पहले सभी विवादों को मिटा दें।


उन्होंने मुझे इसके पीछे की एक कहानी सुनाई...


उस समय के एक संस्कृत विद्वान थे, जिनका नाम राम सागर मिश्रा था। मिश्रा जी छह भाइयों में सबसे बड़े थे और एक समय था जब उनके सबसे छोटे भाई के साथ उनके सबसे करीब के संबंध थे।


बरसों पहले एक तर्क ने मिश्रा और उनके सबसे छोटे भाई के बीच एक कटुता को जन्म दिया। इसके चलते उनके बीच एक दीवार बन गई, अंततः उनके घर का विभाजन हो गया।


अपने अंतिम वर्षों में, मिश्रा जी ने इस गेस्टहाउस में प्रवेश किया। उन्होंने मिश्रा जी को कमरा नं. 3 आरक्षित करने के लिए कहा क्योंकि उन्हें यकीन था कि उनके आने के 16वें दिन ही उनकी मृत्यु हो जाएगी।


14वें दिन मिश्रा जी ने, 40 साल के अपने बिछड़े भाई को देखने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा, "यह कड़वाहट मेरे दिल को भारी कर रही है। मैं जाने से पहले हर मनमुटाव को सुलझाना चाहता हूँ।"


16वें दिन एक पत्र उनके भाई को भेजा गया। जल्द ही, उनके सबसे छोटा भाई आ गए। मिश्रा जी ने उनका हाथ पकड़ कर घर को बांटने वाली दीवार गिराने को कहा। उन्होंने अपने भाई से माफी मांगी।


दोनों भाई रो पड़े और बीच में ही अचानक मिश्रा जी ने बोलना बंद कर दिया। उनका चेहरा शांत हो गया और वह उसी क्षण वह चल बसे।


शुक्ला जी ने मुझे बताया कि उन्होंने वहाँ आने वाले कई लोगों के साथ इसी एक कहानी को बार-बार दोहराते हुए देखा है। उन्होंने कहा, "मैंने देखा है कि सारे लोग जीवन भर इस तरह का अनावश्यक मानसिक बोझा ढोते हैं, वे केवल अपनी यात्रा के समय इसे छोड़ना चाहते हैं।"


हालाँकि, उन्होंने कहा की ऐसा नहीं हो सकता है कि आपका कभी किसी से मनमुटाव ना हो बल्कि अच्छा यह है कि मनमुटाव होते ही उसे हल कर लिया जाए। किसी से मनमुटाव, किसी पर गुस्सा या शक-शुबा होने पर उसे ज्यादा लंबे समय तक नहीं रखना चाहिए और उन्हें हमेशा जल्द से जल्द हल करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि अच्छी खबर यह है कि हम जिंदा हैं, लेकिन बुरी खबर यह है कि हम कब तक जिंदा है, यह कोई नहीं जानता।


तो, चाहे कुछ भी हो, अपने मनमुटावों को आज ही सुलझा लें, क्योंकि 

कल का वादा इस दुनिया में किसी से नहीं किया जा सकता है। सोचें...क्या कुछ ऐसा है या कोई है जिसके साथ हम समय रहते शांति स्थापित करना चाहते हैं?            


 "जब हमें किसी के साथ कड़वे अनुभव होते हैं, तब हमें क्षमा भाव अपनाकर भावनात्मक बोझ दूर कर लेना चाहिए।


लक्ष्मण_रेखा

 


लक्ष्मण रेखा आप सभी जानते हैं पर इसका असली नाम शायद नहीं पता होगा । लक्ष्मण रेखा का नाम (सोमतिती विद्या है)
यह भारत की प्राचीन विद्याओ में से जिसका अंतिम प्रयोग महाभारत युद्ध में हुआ था चलिए जानते हैं अपने प्राचीन भारतीय विद्या को
महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि एक वेदमन्त्र है--सोमंब्रही वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति,,
यह वेदमंत्र कोड है उस सोमना कृतिक यंत्र का,, पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है,, वह यंत्र जल,वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है,, कोड को उल्टा कर देने पर एक खास प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है,,
जब महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भृमण करते हुए वशिष्ठ आश्रम पहुंचे तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा--राजकुमारों की शिक्षा दीक्षा कहाँ तक पहुंची है??महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि यह जो ब्रह्मचारी राम है-इसने आग्नेयास्त्र वरुणास्त्र ब्रह्मास्त्र का संधान करना सीख लिया है,,
यह धनुर्वेद में पारंगत हुआ है महर्षि विश्वामित्र के द्वारा,, यह जो ब्रह्मचारी लक्ष्मण है यह एक दुर्लभ सोमतिती विद्या सीख रहा है,,उस समय पृथ्वी पर चार गुरुकुलों में वह विद्या सिखाई जाती थी,,
महर्षि #विश्वामित्र के गुरुकुल में,,महर्षि #वशिष्ठ के गुरुकुल में,, महर्षि #भारद्वाज के यहां,, और उदालक गोत्र के आचार्य #शिकामकेतु के गुरुकुल में,,
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि लक्ष्मण उस विद्या में पारंगत था,, एक अन्य ब्रह्मचारी वर्णित भी उस विद्या का अच्छा जानकार था,,
सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति- इस मंत्र को सिद्ध करने से उस सोमना कृतिक यंत्र में जिसने अग्नि के वायु के जल के परमाणु सोख लिए हैं उन परमाणुओं में फोरमैन
आकाशीय विद्युत मिलाकर उसका पात बनाया जाता है,,फिर उस यंत्र को एक्टिवेट करें और उसकी मदद से एक लेजर बीम जैसी किरणों से उस रेखा को पृथ्वी पर गोलाकार खींच दें,,
उसके अंदर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा,, लेकिन बाहर से अंदर अगर कोई जबर्दस्ती प्रवेश करना चाहे तो उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि वहीं राख बनकर उड़ जाएगा जो भी व्यक्ति या वस्तु प्रवेश कर रहा हो,,ब्रह्मचारी लक्ष्मण इस विद्या के इतने
जानकर हो गए थे कि कालांतर में यह विद्या सोमतिती न कहकर लक्ष्मण रेखा कहलाई जाने लगी,,
महर्षि दधीचि,, महर्षि शांडिल्य भी इस विद्या को जानते थे,
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या को जानने वाले अंतिम थे,,
उन्होंने कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में मैदान के चारों तरफ यह रेखा खींच दी थी,, ताकि युद्ध में जितने भी भयंकर अस्त्र शस्त्र चलें उनकी अग्नि उनका ताप युद्धक्षेत्र से बाहर जाकर दूसरे प्राणियों को संतप्त न करे,,
मुगलों द्वारा करोडों करोड़ो ग्रन्थों के जलाए जाने पर और अंग्रेजों द्वारा महत्वपूर्ण ग्रन्थों को लूट लूटकर ले जाने के कारण कितनी ही अद्भुत विधाएं जो हमारे यशस्वी पूर्वजों ने खोजी थी लुप्त हो गई,,जो बचा है उसे संभालने में प्रखर बुद्धि के युवाओं को जुट जाना चाहिए, परमेश्वर सद्बुद्धि दे हम सबको.....
🚩 जय जय श्री राम 🚩

बाबा नानक से जुड़ी कहानी

 तो एक दिन बालक मूलशंकर ने देखा कि भगवान की मूर्ति के सामने रखे प्रसाद को एक चूहा खा रहा है। तो उन्होंने प्रसाद खाते चूहे को देखकर ये निष्कर्ष निकाला कि जो भगवान अपने प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकता वो हमारी क्या करेगा फिर उन्होंने बड़े होकर मूर्ति पूजा को पाखंड बताते हुए एक किताब लिखी सत्यार्थ प्रकाश और Guess What एक दिन चूहा उनकी किताब भी कुतर गया। तो क्या हमें इससे ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि किताब बकवास है क्योंकि चूहा खा गए। चूहा तो प्रसाद भी खा सकता है और किताब भी। उसे आपका अध्यात्म और तर्क दोनों ही समझ नहीं आते। अब मैं सोचता हूं ये कितनी बकवास कहानी थी जो बचपन में हमें पढ़ाई जाती थी।

बिल्कुल ऐसी ही बात बीबीसी ने लिखी है कि गुरु नानक देव जी ने बचपन में जनेऊ को पाखंड बताते हुए जनेऊ पहनने से मना कर दिया। जिस पर इन भाई साहब का कहना है कि गुरू नानक जी पंडित से कहा वो मुझे वो जनेऊ पहनाओं जो "जो दया रूपी कपास, संतोष रूपी सूत, जत रूपी गांठ और सत्य रूपी लपेटे का बना हो।"
इसपर जब मैंने इनसे पूछा कि क्या ऐसे किसी कपड़े का पग मिल सकता है अगर मैं पहनना चाहूं तो उन्होंने मना कर दिया। अब तीन धागों का जनेऊ पहनना पाखंड है लेकिन तीन मीटर का पग पहनना पाखंड नहीं है।
आप जैसे मूर्ति का अंधविश्वास कह सकते हैं, जनेऊ को पाखंड बता सकते हैं। ऐसे पग को नहीं कह सकते और आपको कहना भी नहीं चाहिए। क्या बीबीसी किसी और धर्म के धार्मिक प्रतीक को ऐसे अंधविश्वास बताते हुए स्टोरी कर सकता है या उसे करनी चाहिए।
खैर, सोचिए जब 11 साल के नानक जी ने जनेऊ पहनने से मना किया तो पुजारी ने क्या किया वो उनके बालमन में उपजे सवालों से प्रभावित हुआ और उनका बिना जनेऊ संस्कार किए वहां से चला गया। ये ही भारत है हम सवाल उठाते नानक भी हैं और उस हम उस सवाल का सम्मान करते पुजारी भी।
वरना हमने पढ़ा है अनलहक कहने पर मंसूर का क्या हाल किया गया था। अहमदियां क्यों जान बचाए - बचाए फिरते हैं और कैसे मंदिर नाम रखे गुरुद्वारों में भगवान की मूर्तियां उतार दी गईं।
राम जी की चीड़िया, राम जी का खेत
खा लो चीड़िया भर भर पेट
बाबा नानक से जुड़ी वो कहानी जो मां बचपन में सुनाती थी।

#पारिजात / #हरसिंगार

 


फूल और प्रकृति की फ़ोटो हो सकती है


⚜️ पूरी रात सुगंधी बिखेरता पारिजात,भोर होते ही अपने सभी फूल पृथ्वी पर बिखेर देता है!अलौकिक सुगंध से सराबोर इसका पुष्प केवल मन को ही प्रसन्न नहीं करता,अपितु तन को भी शक्ति देता है ! एक कप गर्म पानी में इसका फूल डालकर पियें,अद्भूत ताजगी मिलेगी....
⚜️यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है....
⚜️स्वर्ग में इसको छूने से देव नर्तकी #उर्वषी की थकान मिट जाती थी,#पारिजात नाम के इस वृक्ष के फूलों को देव मुनि नारद ने श्रीकृष्ण की पत्नी #सत्यभामा को दिया था,इन अदभूत फूलों को पाकर सत्यभामा भगवान #श्रीकृष्ण से जिद कर बैठी कि पारिजात वृक्ष को स्वर्ग से लाकर उनकी वाटिका में रोपित किया जाए!
⚜️सत्यभामा की जिद पूरी करने के लिए जब श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए नारद मुनि को स्वर्ग लोक भेजा तो इन्द्र ने श्री कृष्ण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पारिजात देने से मना कर दिया,जिस पर भगवान श्री कृष्ण ने गरूड पर सवार होकर स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और परिजात को प्राप्त कर लिया,श्री कृष्ण ने यह पारिजात लाकर सत्यभामा की वाटिका में रोपित कर दिया!
⚜️भगवान श्री कृष्ण ने पारिजात को लगाया तो था सत्यभामा की वाटिका में,परन्तु उसके फूल उनकी दूसरी पत्नी रूकमणी की वाटिका में गिरते थे,एक मान्यता के अनुसार परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी, जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था!
⚜️यह वृक्ष एक हजार से पांच हजार वर्ष तक जीवित रह सकता है,पारिजात वृक्ष के वे ही फूल उपयोग में लाए जाते है,जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते है,यानि वृक्ष से फूल तोड़ने की पूरी तरह मनाही है!
⚜️यह वृक्ष आसपास लगा हो खुशबू तो प्रदान करता ही है,साथ ही #नकारात्मक उर्जा को भी भगाता है,इस उपयोगी वृक्ष को अवश्य ही घर के आसपास लगाना चाहिए!!!

#संस्कृत_के_बारे_में


 

1. मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम ‘अष्टाध्यायी’ है।
2. संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (ऋग्वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की# प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।
3. इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।
4. संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं।
5. संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
6. संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है शांति है सहयोग है वसुदैव कुटुम्बकम् कि भावना है।!
7. नासा का कहना है की 6th और 7th generation super computers संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे।
8. संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां(Beams of light) निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने।!
9. कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंतःस्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।!
10. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक राज्य(official state) भाषा है।!
11.अरब आक्रमण से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रभाषा थी।!
12. कर्नाटक के मट्टुर(Mattur) गाँव में आज भी लोग संस्कृत में ही बोलते हैं।!
13. जर्मनी के 14 विश्वविद्यालय लोगों की भारी मांग पर संस्कृत (Sanskrit) की शिक्षा उपलब्ध करवा रहे हैं लेकिन आपूर्ति से ज्यादा मांग होने के कारन वहाँ की सरकार संस्कृत (Sanskrit) सीखने वालों को उचित शिक्षण व्यवस्था नहीं दे पा रही है।!
14. हिन्दू युनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाएगा।!
15. संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है।!
16. यूनेस्को(UNESCO) ने भी मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अपनी सूची में संस्कृत वैदिक जाप को जोड़ने का निर्णय लिया गया है। !यूनेस्को(UNESCO) ने माना है कि संस्कृत भाषा में वैदिक जप मानव मन, शरीर और आत्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।!
17. शोध से पाया गया है कि संस्कृत (Sanskrit) पढ़ने से स्मरण शक्ति(याददाश्त) बढ़ती है।!
18. संस्कृत वाक्यों में शब्दों की किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे- अहं गृहं गच्छामि >या गच्छामि गृहं अहं दोनों ही ठीक हैं।!
19. नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। जैसा के ऊपर बताया गया है।!
20. संस्कृत भाषा में किसी भी शब्द के समानार्थी शब्दों की संख्या सर्वाधिक है. जैसे हाथी शब्द के लिए संस्कृत में १०० से अधिक समानार्थी शब्द हैं।! #सनातनीहिन्दुस्थानी