सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

फूटी कौड़ी एक ज़माने में करेंसी हुआ करती थी

 फूटी कौड़ी एक ज़माने में करेंसी हुआ करती थी जिसकी क़ीमत सबसे कम होती थी तीन फूटी कौड़ियों से एक कौड़ी बनती थी और दस कौड़ियों से एक दमड़ी

आज कल के बोल चाल में फूटी कौड़ी को मुहावरे के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है
करंसी की क़ीमत इस तरह थी
3 फूटी कौड़ी- 1 कौड़ी
10 कौड़ी - 1 दमड़ी
02 दमड़ी - 1.5 पाई
1.5 पाई - 1 धैला
2 धैला - 1 पैसा
3 पैसे - 1 टका
2 टके - 1 आना
2 आने - दोअन्नी
4 आने - चवन्नी
8 आने - अठन्नी
16 आने - 1 रुपया
वह टेक्स्ट जिसमें 'धेला 安 पैसा दमड़ी चायाड़ पाई कौड़ी फूटी कौड़ी' लिखा है की फ़ोटो हो सकती है
SK Marwadi, Sonu dewasi nohar और 6.7 हज़ार अन्य लोग
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सृष्टि__संरचना आधुनिक विज्ञान के अनुसार पृथ्वी की आयु 4.5 अरब वर्ष पहले हुई थी

 

आधुनिक विज्ञान के अनुसार पृथ्वी की आयु 4.5 अरब वर्ष पहले हुई थी, वहीं हमारे सनातन धर्म के अनुसार भी पृथ्वी की लगभग 4.32 वर्ष पहले हुई है. (काल गणना के लिये अलग से पोस्ट लिखुंगा)
हमारी पृथ्वी के विषय में जितनी खोज आधुनिक विज्ञान ने अठारहवीं, उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में की हैं वह सभी अध्ययन हमारे पूर्वजों ने हजारों लाखों वर्ष पूर्व कर लिया था.
पृथ्वी के निर्माण के संबंध में वर्णन विष्णु पुराण में मिलता है, यह हमारे अष्टादश पुराणों (अठारह पुराणों) में महत्वपूर्ण पुराण है, जिसका लेखन महर्षि वेद व्यास द्वारा त्रेतायुग में किया गया था.
(हम इसके लेखन की तिथि त्रेतायुग के अंतिम दिन की भी मान लें तो यह पुराण द्वापर युग की आयु 864000 + आज का कलियुगाब्ध 5123 = 869123 वर्ष पुराना है.)
विष्णु पुराण के प्रथम अंश के ध्याय चार श्लोक संख्या ४९ के अनुसार (मैं संस्कृत श्लोक लिखे बिना श्लोक संख्या के साथ भावार्थ लिख रही हूँ)
तदनन्तर उन्होंने सप्तद्वीपादि क्रमसे पृथिवीका यथायोग्य विभाग कर भूलोकादि चारों लोकोंकी पूर्ववत् कल्पना कर दी ॥४९॥
यहां परमपिता ब्रह्मा जी द्वारा पृथ्वी को सात महाद्वीपों में विभक्त करने की बात कही गई है. जब हम ग्रंथों में भी सात द्वीपों की बात सुनते हैं तो हमारा ध्यान स्वतः ही हमारी वर्तमान शिक्षा में पढ़े सात महाद्वीपों पर चला जाता है. तो क्या प्राचीन काल में वर्णित सप्तद्वीप और वर्तमान सात महाद्वीप एक ही हैं?
इसी ग्रंथ में आगे विस्तार से सप्तद्वीपों का वर्णन किया गया है, हम जब उन्हे पढेंगे तो हमें आज की पृथ्वी और विष्णु पुराण में वर्णित पृथ्वी में बहुत अंतर मिलता है.
क्योंकि हम सृष्टि के शुरुआती दस्तावेजों को आज के दृष्य पर रखने का प्रयास कर रहे हैं. जब हम सृष्टि की रचना को पढ़ रहे हैं तो सृष्टि के रचनाकाल याने 4.32 करोड़ वर्ष पहले की पृथ्वी को देखना होगा ना कि वर्तमान भौगोलिक परिस्थिति को देखना.
4.32 करोड़ वर्ष पहले की पृथ्वी को देखने के लिये हम आधुनिक विज्ञान की मदद लेते हैं. इसके दो लाभ हैं पहला यह लेख सरल भाषा में समझ आ जाएगा, दूसरा हमारे ग्रंथों और लाखों वर्ष पुराने हमारे ज्ञान से अकाट्य तथ्य आपके सामने आएंगे.
वर्ष 1912 में जर्मन वैज्ञानिक #अल्फ्रेड_वेगनर ने यह सिद्ध किया कि सातों महाद्वीप स्थिर नहीं हैं, यह गतिशील हैं. और प्रतिवर्ष कुछ सेंटीमीटर स्थान परिवर्तन करते हैं. उन्होंने इस विषय पर और गहन अध्ययन किया. जिसमें उन्होंने इस गतिशीलता के पीछे पृथ्वी की ऊपरी सतह (जिसे मेंटल कहा जाता है) में निरंतर परिवर्तन होना बताया.
टेक्टॉनिक प्लोट्स और भूकम्प की थ्योरी भी यहीं से स्थापित हुई. उनके इस. सिद्धांत के अनुसार वैज्ञानिक आज से 4.32 करोड़ वर्ष पहले की पृथ्वी की भौगोलिक दशा का मानचित्र बना पाए. इसी के माध्यम से हम पृथ्वी की रचनाकाल के भूगोल को समझेंगे.
(पोस्ट के साथ संलग्न चित्र क्रमांक 2 देखें)
#अब_हमारे_ग्रंथों और पौराणिक साक्ष्य की और लौटते हैं.
ऊपर विष्णु पुराण में पृथ्वी को सात द्वीपों में बांटने के विषय में पढ़ा, विष्णु पुराण में द्वितीय अंश के अध्याय दो श्लोक संख्या ५ - ६ में इन द्वीपों के नाम तथा इनको महासागरों से घिरा हुआ भी बताया गया है.
हे द्विज ! जम्बू, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रोंच, शाक और सातवाँ पुष्कर – ये सातों द्वीप चारों ओर से खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जलके सात समुद्रों से घिरे हुए है || ५ – ६ ||
#इसी अध्याय का श्लोक सात कहता है कि जम्बू द्वीप बाकी द्वीपों से घिरा हुआ है.
हे मैत्रेय ! जम्बुद्वीप इन सबके मध्य में स्थित है और उसके भी बीचों – बीच में सुवर्णमय सुमेरुपर्वत है || ७ ||
अर्थात विष्णु पुराण के अनुसार सातों द्वीप जुड़े हुए हैं और जम्बू द्वीप इनके केंद्र में है. जो कि वर्तमान मानचित्र से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता.
मैंने इन सात द्वीपों के बारे और जानकारी जुटाने का प्रयास किया, तब मेरा ध्यान इस बात पर गया कि सात में से छः महाद्वीपों के नाम वृक्ष अथवा वनस्पतियों पर हैं परंतु एक द्वीप का नाम पक्षी के नाम पर है.
इनके बारे में जब विचार आया तो इन वनस्पतियों के विषय में जानकारी जुटाई. हमारे पूर्वज लाखों वर्षों पहले कितना उन्नत ज्ञान रखते थे यहाँ इसका एक और उदाहरण मिलता है. इन सात द्वीपों की व्याख्या में संपूर्ण पृथ्वी समाहित हो जाती है.
🔘1:- जम्बू द्वीप:- संस्कृत में जामुन को जम्बू कहा जाता है, यह पेड़ भारत चीन मंगोलिया के क्षेत्र में बहुतायत से पाया जाता है. वैज्ञानिक इस पेड़ का मूल स्थान इसी क्षेत्र को मानते हैं. इसके अनुसार हम कह सकते हैं कि जम्बू द्वीप दक्षिण और मध्य एशिया को इंगित करता है.
🔘2:- प्लक्ष द्वीप:- प्लक्ष पीपल का संस्कृत नाम है, कुछ विद्वान बोधिवृक्ष और रुद्राक्ष के पेड़ को भी प्लक्ष मानते हैं. यह तीनों ही वृक्ष सुदूर पूर्वी भारत से चीन ताइवान और जापान तक पाए जाते हैं. अतः हम पूर्वी एशिया को प्लक्ष द्वीप कह सकते हैं.
🔘3:- शाल्मली द्वीप:- शाल्मली रेशम का संस्कृत नाम है, इसे भारत में सेमल के नाम से भी जाना जाता है. इसका फल केले के आकार का होता है, जिसे. तोड़ने पर अंदर से चिकना रेशमी कपास निकलता है. यह पेड़ थाईलैंड इंडोनेशिया मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया (ओशियान) तक बहुतायत में पाए जाते हैं. इसलिये हम इस क्षेत्र को शाल्मली द्वीप कह सकते हैं.
🔘4:- कुश द्वीप:- कुश अथवा कुशा जिसका अंग्रेजी नाम हल्फा ग्रास है. पूजा में इसके प्रयोग का महत्व आप सभी जानते ही होंगे. घांस की यह प्रजाति अफ्रीकी क्षेत्र में बहुतायत से पाई जाती है. इस प्रदेश को हम कुश द्वीप के नाम से संबोधित कर सकते हैं.
🔘5:- शाक द्वीप:- संस्कृत में देवदार के वृक्ष को शाक कहा जाता है. इन वृक्षों का मूल स्थान है ब्रिटेन से सुदूर पश्चिमी युरोप तक. अतः हम पूरे युरोपीय उपमहाद्वीप को शाक द्वीप कह सकते हैं.
🔘6:- पुष्कर द्वीप:- पुष्कर को हिंदी में कूठ या कूट भी कहा जाता है. इसका अंग्रोजी नाम कॉस्टस (Costus) है. यह मूलतः कोस्टारिका वेनेजुएला सहित अमेरिकी महाद्वीप की वनस्पति है. यह क्षेत्र पुष्कर द्वीप कहा जा सकता है.
अब हम सातवें द्वीप की ओर ध्यान दें तो इसका नाम एक पक्षी के नाम पर है.
🔘7:- क्रौंच द्वीप:- क्रौंच कराँकुल या सारस. ऊपर छः द्वीपों को नक्शे पर देखें तो केवल एक ही महाद्वीप बचा है अंटार्कटिका. परंतु यह एकमात्र द्वीप है जिसपर सारस नहीं पाया जाता. इसके विषय में जानकारी जुटाने का प्रयास कर रहा था तो गूगल से मुझे एक चित्र प्राप्त हुआ, जिसे क्रैन ग्लेशियर (क्रौंच हिमखंड) के नाम से लिखा गया था. (चित्र क्रमांक 1 में मैंने सारस की आँख की जगह लाल बिंदु लगाया है ताकि समझने में आसानी हो).
अंटार्कटिका महाद्वीप पर यह ग्लेशियर ऐसा दिखाई दे रहा है जैसे किसी गोल पत्थर पर सारस बैठा हो.
आज से लाखों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने यह आकृति कैसे देखी होगी? जबकि हमें बताया जाता है पहला विमान वर्ष 1903 में राईट बंधुओं ने उड़ाया था.
#अतः हम अंटार्कटिका महाद्वीप को क्रौंच द्वीप कह सकते हैं.
यह व्याख्या हमारे ग्रंथों के अनुसार है, जिसमें सातों द्वीप आपस में जुड़े हुए हुए हैं तथा चारों ओर समुद्र से घिरे हुए हैं.
इस बात को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर परखने के लिये हम पृथ्वी का 4.5 करोड़ वर्ष पहले का मानचित्र देख सकते हैं. जिसे वैज्ञानिकों ने जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर के सिद्धांत के अनुसार तैय्यार किया है. वहाँ भी पृथ्वी 4.5 करोड़ वर्ष पहले एक सुपर कॉन्टिनेंट (जिसे कैनोरलैण्ड Kenorland नाम दिया गया) के रूप में दिखाई देती है.
(चित्र क्रमांक 2)
चलिये पृथ्वी की यह व्याख्या तो सृष्टि के रचनाकाल के समय की है. तो क्या हमारे पूर्वजों को वर्तमान भोगोलिक परिस्थितियों का भी ज्ञान था?
महाभारत के रचनाकार महर्षि वेद व्यास द्वापर युग के महर्षि हुए.
उन्होंने महाभारत के भीष्म पर्व में पृथ्वी की तात्कालिक संरचना की व्याख्या की है.
हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश (खरगोश) दिखायी देता है।
उपरोक्त व्याख्या के अनुसार ग्यारहवीं शताब्दी में रामानुजाचार्य जी ने पृथ्वी का मानचित्र बनाया था. जिसे ग्लोब पर रखने पर वर्तमान प्रचलित पृथ्वी का नक्शा बन जाता है.
(चित्र क्रमांक 3)
हमें हमारी सनातन संस्कृति को पुनः उसका खोया वैभव लौटाना है तो हम सभी को अपनें ग्रंथों का अध्ययन करना होगा. करोड़ों लोगों में कुछ लोग यह कार्य नहीं कर सकते.
इसलिये आप सभी से अनुरोध है कि मेरे स लेख का परिक्षण आप स्वयं न ग्रंथों के साथ करें जिनका उल्लेख इस लेख में किया है !!
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