बुधवार, 24 अगस्त 2016

रुद्राक्ष धारण के नियम -

रुद्राक्ष धारण के नियम -
1
सभी वर्ण के लोग रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
यदि किसी कारण वश रुद्राक्ष विशेष मंत्रो से धारण न कर सके तो सरल विधि से लाल , पीले या सफ़ेद धागे मे पिरो कर गंगा जल से स्नान करा कर “ॐ नमः शिवाय" का जप कर के,
चन्दन, विल्व पत्र ,लाल पुष्प ,धूप दीप दिखा कर ' शिव गायत्री मंत्र ' द्वारा अभिमंत्रित कर धारण करें और यथाशक्ति शिव मंदिर मे दान दें।
धारण करते समय " ॐ नम:शिवाय " का जप करें , ललाट पर भस्म लगाएँ।
अपवित्रता के साथ धारण न करें,
भक्ति और शुद्धता से ही धारण करें, अटूट श्रद्धा और विश्वास से धारण करने पर ही शुभ फल प्राप्त होता है.
2
कभी भी काले धागे मे धारण न करें।
वैसे शनि के प्रभाव के कारण विशेष रुद्राक्ष काले धागे मे पहनने का विधान भी है।
किन्तु लाल, पीले या सफेद धागे मे पिरोकर ही धारण करें,
चाँदी, सोना या तांबे मे भी धारण कर सकते हैं।
3
रुद्राक्ष हमेशा विषम संख्या मे धारण करें।
अर्थात किसी भी मुखी रुद्राक्ष के साथ 2 पंचमुखी रुद्राक्ष भी सम्मिलित करें , इस प्रकार वे 3 हो जाएँगे।
4
रुद्राक्ष धारण करने पर मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन,लिसोडा आदि पदार्थो का यथासंभव परित्याग कर देना चाहिए।
इन निषिद्ध वस्तुओं के सेवन का 'रुद्राक्ष-जाबा लोपनिषद्' मे सर्वथा निषेध किया गया है।
5
रुद्राक्ष को गंगाजल से धोकर शिवलिंग अथवा शिवमूर्ति से स्पर्श धारण करें।
स्वयं की शुभता की प्रार्थना करें व कुछ दक्षिणा प्रदान कर धारण करें।
6
रुद्राक्ष हमेशा नाभि के ऊपर शरीर के विभिन्न अंगों ( कंठ, गले, मस्तक, बांह, भुजा) मे धारण करें,
यद्यपि शास्त्रों मे विशेष परिस्थिति मे विशेष सिद्धि हेतु कमर मे भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है।
तांत्रिक प्रयोग के कारण ,अत्यधिक मासिक स्त्राव से त्रस्त एक महिला को मैंने कमर मे रुद्राक्ष पहनवाया था , जो कि शास्त्र अनुसार अनुचित था।
किन्तु 2 दिन मे ही बीमारी से छुटकारा मिल गया था।
7
रुद्राक्ष अंगूठी मे कदापि धारण नहीं करें,
अन्यथा भोजन-शौचादि क्रिया मे इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी।
8
रुद्राक्ष पहन कर श्मशान या किसी अंत्येष्टि कर्म मे अथवा प्रसूतिगृह मे न जायेँ।
संभोग के समय भी रुद्राक्ष उतार देना चाहिए।
9
स्त्रियां मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें।
10
रुद्राक्ष धारण कर रात्रि शयन न करें।
11
रुद्राक्ष मे अंतर्गर्भित विद्युत तरंगें होती हैं जो शरीर मे विशेष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार करने मे सक्षम होती हैं,
इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की " दिव्य औषधि " कहा गया है।
अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
शुष्क होने पर इसे सरसों या नीम के तेल मे कुछ समय तक डुबाकर रखें।
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रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त -
धारण के एक दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के तेल मे डुबाकर रखें।
धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर पवित्र कर लें।
फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर ॐ नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने रखें।
फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर) अथवा
पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।
तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या शास्त्रोक्त बीज मंत्र का 21, 11, 5 अथवा कम से कम 1 माला जप करें।
फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप करके रुद्राक्ष-धारण करें।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें।
रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा सात्विक अल्पाहार लें।
उक्त क्रिया संभव नहीं हो, तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर सोमवार को) संबंधित रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत अथवा गंगाजल से पवित्र करके, अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण श्रद्धा भाव से धारण करें।
मेष संक्रांति ,
पूर्णिमा,
अक्षयतृतीया,
दीपावली,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,
अयन परिवर्तन काल,
ग्रहण काल,
गुरु पुष्य ,
रवि पुष्य,
द्वि और त्रिपुष्कर योग अथवा सोमवार के दिन रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापो का नाश होता है।
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रुद्राक्ष धारण के ज्योतिषीय मत -
एकमुखी सूर्य का प्रतीक - सूर्य दोष शमनकारी।
द्विमुखी चंद्र का प्रतीक - चंद्र दोष दूर करता है।
त्रयमुखी मंगल का प्रतीक - मंगल दोष दूर करता है।
चतुर्मुखी बुध का प्रतीक - बुध दोष दूर करता है।
पंचमुखी गुरु का प्रतीक - गुरु दोष दूर करता है।
षष्ठमुखी शुक्र का प्रतीक - शुक्र दोष दूर करता है।
सप्तममुखी शनि का प्रतीक - शनि दोष दूर करताहै।
अष्टमुखी राहु का प्रतीक - राहु दोष दूर करता है।
नवममुखी केतु का प्रतीक - केतु दोष दूर करता है।
दशममुखी राहु-केतु, शनि-मंगल के दोष को दूर करता है।
एकादशमुखी समस्त ग्रहों,राशि, तांत्रिक दोषों को दूर करता है।
द्वादशमुखी समस्त ग्रह दोष दूरकर व्यक्ति मे सूर्य का बल बढ़ाता है।
त्रयोदशमुखी पुरुष जनित दुर्बलता दूर कर शारीरिक-आर्थिक क्षमता प्रदान करता है।
रुद्राक्ष वस्तुत: महारुद्र का अंश होने से परम पवित्र एवं पापों का नाशक है,
इसके दिव्य प्रभाव से जीव शिवत्व प्राप्त करता है।
भारतीय संस्कृति मे रुद्राक्ष का बहुत महत्व है।
माना जाता है कि रुद्राक्ष मनुष्य को हर प्रकार की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका उपयोग केवल साधक और तपस्वियों के लिए ही नहीं,
बल्कि सांसारिक जीवन मे रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है।

रविवार, 21 अगस्त 2016

हमें तिलक क्यों लगाना चाहिए ?

हमें तिलक क्यों लगाना चाहिए ? या जब तिलक कोई और लगा रहा हो, उस समय सिर पर हाथ क्यों रखना चाहिए ?


~आइये जाने इसका वैज्ञानिक महत्व~
शायद भारत के सिवा और कहीं भी मस्तक पर तिलक लगाने की प्रथा प्रचलित नहीं है। यह रिवाज अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है, और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है।
मनोविज्ञान की दृष्टि से भी तिलक लगाना उपयोगी माना गया है। माथा चेहरे का केंद्रीय भाग होता है, जहां सबकी नजर अटकती है। उसके मध्य में तिलक लगा
कर, विशेषकर स्त्रियों में, देखने वाले की दृष्टि को बांधे रखने का प्रयत्न किया जाता है।
स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती हैं। यह भी बिना प्रयोजन नहीं है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
तिलक का महत्व
हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक या कार्य की महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रुप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है ।
मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है । शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है । इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा । इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें । इस आसान तरीके से सर्वसाधारण की रुचि धार्मिकता की ओर, आत्मिकता की ओर, तृतीय नेत्र जानकर इसके उन्मीलन की दिशा में किया गयचा प्रयास जिससे आज्ञाचक्र को नियमित उत्तेजना मिलती रहती है ।
तन्त्र शास्त्र के अनुसार माथे को इष्ट इष्ट देव का प्रतीक समझा जाता है हमारे इष्ट देव की स्मृति हमें सदैव बनी रहे इस तरह की धारणा क ध्यान में रखकर, ताकि मन में उस केन्द्रबिन्दु की स्मृति हो सकें । शरीर व्यापी चेतना शनैः शनैः आज्ञाचक्र पर एकत्रित होती रहे । चुँकि चेतना सारे शरीर में फैली रहती है । अतः इसे तिलक या टीके के माधअयम से आज्ञाचक्र पर एकत्रित कर, तीसरे नेत्र को जागृत करा सकें ताकि हम परामानसिक जगत में प्रवेश कर सकें ।
तिलक का हमारे जीवन में कितना महत्व है शुभघटना से लेकर अन्य कई धार्मिक अनुष्ठानों, संस्कारों, युद्ध लडने जाने वाले को शुभकामनाँ के तौर पर तिलक लगाया जाता है वे प्रसंग जिन्हें हम हमारी स्मृति-पटल से हटाना नही चाहते इन शुशियों को मस्तिष्क में स्थआई तौर पर रखने, शुभ-प्रसंगों इत्यादि के लिए तिलक लगाया जाता है हमारे जीवन में तिलक का बडा महत्व है तत्वदर्शन व विज्ञान भी इसके प्रचलन को शिक्षा को बढाने व हमारे हमारे जीवन सरल व सार्थकता उतारने के जरुरत है ?।
तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक केवल धार्मिक मान्यता नहीं है बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी हैं इसके पीछे। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं।
– हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कोई भी पूजा-प्रार्थना तिलक बिना लगाये नहीं होती। सूने मस्तक को अशुभ माना जाता है। तिलक लगाते समय सिर पर हाथ रखना भी हमारी एक परंपरा है।
– धर्म शास्त्रों के अनुसार सुने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। तिलक लगाने के लिए अनामिका अंगुली शांति प्रदान करती है।
– मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है।
– अंगूठा प्रभाव और ख्याति तथा आरोग्य प्रदान कराता है। इसीलिए राजतिलक अथवा विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परंपरा रही है।
– तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है।
– ज्योतिष के अनुसार अनामिका तथा अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता अंगुली है। यह अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका तात्पर्य यही है कि सूर्य के समान, दृढ़ता, तेजस्वी, प्रभाव, सम्मान, सूर्य जैसी निष्ठा-प्रतिष्ठा बनी रहे।
– दूसरा अंगूठा है जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है। जीवन में सौम्यता, सुख-साधन तथा काम-शक्ति देने वाला शुक्र ही संसार का रचयिता है।
– जब अंगुली या अंगूठे से तिलक किया जाता है तो आज्ञा चक्र के साथ ही सहस्रार चक्र पर ऊर्जा का प्रवाह होता है। सकारात्मक ऊर्जा हमारे शीर्ष चक्र पर एकत्र हो साथ ही हमारे विचार सकारात्मक हो व कार्यसिद्ध हो। इसीलिए तिलक लगावाते समय सिर पर हाथ जरूर रखना चाहिए.

शनिवार, 20 अगस्त 2016

हवन द्वारा मनोकामना पूर्ती

हवन द्वारा मनोकामना पूर्ती 
1. लक्ष्मी के बीज मन्त्र ‘श्रीं’ के साथ प्रारंभ में प्रणव ‘ॐ’ और ;ह्रीं’ लगाकर ‘क्लीं’ और इसके बाद ‘फट स्वाहा’ यानी ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं फट स्वाहा’ मन्त्र से घी मिश्रित कमल या खीर से एक हजार हवन करता है; वह अतुल धन की प्राप्ति करता है। (आम की समिधा)
2. इसी मन्त्र के द्वारा गूलर की समिधा में जो पद्म बीजों से एक हजार हवन करता है; उसको कभी किसी से भय नहीं सताता और वह शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।
3. दही मिश्रित चावल , तिल, जौ, गेंहू, ईंख से आम की समिधा में जो एक हजार हवन करता है; उसे भाग्य की दुर्गति से मुक्ति मिलती हैं।
4. दुर्जा जी के मन्त्रों से बेल के फल का हवन से (बेल की ही समिधा) धन की रक्षा होती है और धन की प्राप्ति होती है।
5. सरस्वती या तारा के मन्त्रों से चमेली के फूलों को इसी के तेल से मिश्रित करके हवन करने से अक्षय वाक्शक्ति प्राप्त होती है।
6. ब्राह्मी के रस से (4:1) पकाए घी को सरस्वती या तारा के मन्त्र से सिक्त करके प्रातः सायं पचने योग्य घी का पान करने से समरण शक्ति एवं वाक्शक्ति समृद्ध होती है।
7. प्रातःकाल बच के एक तोला (12 ग्राम) चूर्ण को सरवती – तारा के मंत्र से सिक्त करके खाकर ऊपर से दूध पीने वाले की स्मरण शक्ति अदभुत रूप से विकसित होती है।
8. अपामार्ग की समिधा में दुर्गा मन्त्रों से दूब एवं घी का हवन करने से स्वास्थय एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। वहाँ बाहरी प्रकोप नहीं होते।
9. पलाश को घी से सिक्त करले आम की लकड़ी में गायत्री मन्त्र से हवन करता है; वह जीवन में सभी भौतिक सुखों को प्राप्त करता है।
10. कमर भर जल में ब्रह्म मुहूर्त में जो प्रतिदिन 108 गायत्री मंत्र का जप पूर्व दिशा की ओर मुख करके करता है; उसके पाप कटते हैं; दुःख दूर होता है

सुखी जीवन के सरल उपाय

सुखी जीवन के सरल उपाय
1-प्रतिदिन अगर तवे पर रोटी सेंकने से पहले दूध के छींटे
मारें, तो घर में बीमारी का प्रकोप कम होगा।
2-प्रत्येक गुरुवार को तुलसी के पौधें को थोडा - सा दूध
चढाने से घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।
3-प्रतिदिन संवेरे पानी में थोडा - सा नमक मिलाकर घर में
पोंछा करें, मानसिक शांति मिलेगी।
4-प्रतिदिन सवेरे थोडा - सा दूध और पानी मिलाकर मुखय
द्वार के दोनों ओर डाले, सुख - शांति मिलेगी।
5-मुखय द्वार के परदे के नीचे कुछ घुंघरु बांध दे, इसके संगीत
से घर में प्रसन्नता का वातावरण बनेगा।
6-प्रतिदिन शाम को पीपल के पेड को थोडा - सा दूध -
पानी मिलाकर चढाएं, दीपक जलाएं तथा मनोकामना के साथ
पांच परिक्रमा करें। शीघ्र मनोकामना पूरी होगी।
7-प्रतिदिन सवेरे पहली रोटी गाय को, दूसरी रोटी कुत्ते
को एवं तीसरी रोटी छत पर पक्षियों को डालें।
इससे पितृदोष से मुक्ति मिलती है तथा पितृदोष के कारण
प्राप्त कष्ट समाप्त होते हैं
8-किसी भी दिन शुभ - चौघडिये में पांच किलो साबूत नमक
एक थैली में लाकर अपने घर में ऐसी जगह रखें
जहां पानी नहीं लगे। यदि अपने आप पानी लग जाए तो इसे
काम में नहीं ले, फेंक दे तथा नया नमक लाकर रख दें। यह घर
के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है एवं सकारात्मक
प्रभाव को बढा

सोमवार, 25 जुलाई 2016

मंगल का स्वरूप



मंगल का स्वरूप
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मित्रों ज्योतिष में मंगल को हमारे शरीर में खून और मज्जा का कारक माना गया है ये एक ऐसा ग्रह है जो जब हमारे पास कुछ भी न हो तब भी हमे मनोबल देता है | हमारे साहस का ये कारक माना गया है | ये जोश का कारक ग्रह है इसिलिय इसे लड़ाई झगड़े का कारक ग्रह माना गया है क्योंकि जब तक ये जोश पैदा न करे लड़ाई झगड़ा नही हो सकता \ कुंडली में अच्छी सिथ्ती का मंगल हमे सेना पुलिस डॉक्टर छेत्र इन्जिनियेर छेत्र में जाने के सुनहरे अवसर प्रदान करता है तो वंही अशुभ मंगल होने पर जातक लुट मार पिट करने लग जता है और अपने साहस बल का प्रयोग गल तरीके से करने लग जाता है | इसका कारण ये भी है जब मंगल अशुभ हो तो जातक राहू हावी होने लग जता है उसका कारण ये भी है की लाल किताबा में मंगल को राहू पर काबी पाने वाला ग्रह माना गया है और ऐसे में जब मंगल खुद ही खराब हो जाए तो जातक राहू रूपी शराब का सेवन करने लग जाता है , जातक पर स्त्री के चक्कर में भी पड़ जाता है ऐसे में पुरुष जातक को उसकी पत्नी तो स्त्री जातक को उसका पति भी तंग करना सुरु कर देता है |
मंगल जब भी बुद्ध के साथ हो या फिर कुंडली में सूर्य शनी एकसाथ हो तो या नीच राशि में हो तो मंगल खराब बन जाता है ऐसे में यदि जातक को कोई उंचा पद मिल जाए तो वो उस पद का भी दुरूपयोग करने लग जाता है और राहू की चालाकी जूठ फरेब दोखा आदि जातक की सिफत बन जाती है | खराब मंगल वाला जातक अक्सर हथियार के बल पर लोगों का लुटने का कार्य भी करने लग जाता है|
हमारे दैनिक जीवन में मंगल का शुभ होना बहुत आवश्यक है क्योंकि किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य मंगल के बिना सफल नही हो सकते | जिन लोगो की कुंडली में मंगल खराब होता है उनके घर में अक्सर किसी मांगलिक कार्य के बाद कोई अनहोनी या खुसी को दुःख में बदलने वाली घटना घट जाती है | जैसे की आपकी नोकरी लगी आपको बहुत ख़ुशी हुई लेकिन कुछ समय बाद खबर मिलती है की पोस्टिंग छेत्र ऐसा है जिसमे कोई जाना भी पसंद नही करता तो आपकी ख़ुशी काफूर हो जाती है | इसी प्रकार आपको कोई धन लाभ मिलता है लेकिन कोई ऐसी समस्या a खड़ी हो जाती है की आपका पूरा पैसा खर्च हो जाता है \ घर में कोई शादी या मांगलिक कार्य होता है लेकिन उसी समय के दौरान किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाती है | दुसरे शब्दों में कहे की आप ख़ुशी का मांगलिक कार्यों का पूर्ण आनन्द नही ले पाते है | पति पत्नी के झगड़े जीवन में नित्य का विषय बन जाते है | तो येमंगल खराब होने के लक्ष्ण होते है \
वर्तमान समय में हम देखें तो मंगल मौत की राशि विर्श्चिक में चल रहे है \ हालाँकि इस राशि के स्वामी खुद मंगल ही राशि है लेकिन कालपुरुष की कुंडली में अस्ठ्म भाव में इस राशि के होने से खुद मंगल के शुभ फल इसमें कम हीओ माने गये है | आप देखें की जब से मंगल इस राशि में आये है जहां मौत के कारण शनी देव पहले से विराजमान थे तब से संसार में आतंकवाद के घटनाए ज्यादा बढ़ गई है जगह जगह युद्ध के हालत बन गये है | यदि आपका जन्म मेष मिथुन तुला लग्न में हुआ है तो ये समय आपके स्वास्थ्य के लिय भी अच्छा नही है , यदि आपकी दशा भी किसी अच्छे ग्रह की नही चल्र ही है तो वर्तमान समय में आपको बहुत सी समस्यों का सामना वर्तमान में करना पड़ रहा है | जिनकी भी कुंडली में मंगल मुख्य कारक ग्रह है उन्हें भी जीवन के विभिन्न छेत्रों में समस्या का सामना करना पड़ रहा है जैसे की कर्क लग्न वालों के कार्य भी वर्तमान समय में बहुत ज्यादा पप्रभाव इस समय के दौरान पड़ा है \ मित्रों आंशिक रूप से मंगल पर कुछ लिखने की कोसिस की है \ हालाँकि हम सभी जानते है की हमे कुंडली के सभी ग्रह प्रभावित करते है इसिलिय हम किसी एक ग्रह के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर नही पहुँच सकते |समय समय पर आगे भी इसके उपर लिखता रहूँगा
यदि आपको मंगल जनित अशुभ फल मिल रहे है तो आप चन्द्र की सहायता से उसके अशुभ फलों में कमी कर सकते है \
जय श्री राम

रविवार, 24 जुलाई 2016

धर्मशास्त्रों में वृक्षों का महत्व



धर्मशास्त्रों में वृक्षों का महत्व
पीपल के पेड़ को धर्मशास्त्रों में सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। इस एक पेड़ को मुक्ति के लाखों, करोड़ों उपायों के समकक्ष निरूपित किया है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने पीपल को श्रेष्ठ कहा है। भविष्य पुराण में ऐसे कई पेड़ों का उल्लेख है जो पापनाशक माने गए हैं। वृक्षायुर्वेद में पेड़ों के औषधीय महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी है।
वनस्पति जगत में पीपल ही एकमात्र ऐसा वृक्ष है जिसमें कीड़े नहीं लगते हैं। यह वृक्ष सर्वाधिक ऑक्सीजन छोड़ता है जिसे आज विज्ञान ने स्वीकार किया है। भगवान बुद्ध को जिस वृक्ष के नीचे तपस्या करने के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ था, वह पीपल का पेड़ ही है और श्रीमद् भागवत गीता के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि वृक्षों में श्रेष्ठ पीपल है।
भविष्य पुराण में ही बताया गया है कि शीशम, अर्जुन, जयंती, करवीर, बेल तथा पलाश के वृक्षों को लगाने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और रोपणकर्ता के तीन जन्मों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
सौ वृक्षों का रोपण करना ब्रह्मारूप और हजार वृक्षों का रोपण करने वाला विष्णुरूप बन जाता है। अशोक वृक्ष के बारे में लिखा है कि इसके लगाने से शोक नहीं होता। अशोक वृक्ष को घर में लगाने से अन्य अशुभ वृक्षों का दोष समाप्त हो जाता है। बिल्व वृक्ष को श्रीवृक्ष भी कहते हैं। यह वृक्ष अति शुभ माना गया है। इसमें साक्षात लक्ष्मी का वास होता है तथा दीर्घ आयुष्य प्रदान करता है।
इसी प्रकार वटवृक्ष के बारे में भी विस्तार से शास्त्रों में बताया गया है। वृक्षायुर्वेद में बताया गया है कि जो व्यक्ति दो वटवृक्षों का विधिवत रोपण करता है वह मृत्योपरांत शिवलोक को प्राप्त होता है।
भविष्य पुराण में ही बताया गया है कि वटवृक्ष मोक्षप्रद, आम्रवृक्ष अभीष्ट कामनाप्रद, सुपारी का वृक्ष सिद्धप्रद, जामुन वृक्ष धनप्रद, बकुल पाप-नाशक, तिनिश बल-बुद्धिप्रद तथा कदम्ब वृक्ष से विपुल लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
आंवले का वृक्ष लगाने से अनेक यज्ञों के सदृश पुण्यफल प्राप्त होता है।
गूलर के पेड़ में गुरुदत्त भगवान का वास माना गया है।
पारिजात के वृक्ष के बारे में तो यह बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण इसे स्वर्ग से लाए थे।
शास्त्रों में बताया गया है कि वृक्षों को काटने वाला गूंगा और अनेक व्याधियों से युक्त होता है। अश्वत्थ (पीपल, वटवृक्ष और श्रीवृक्ष) का छेदन करने वालों को ब्रह्म हत्या का पाप लगता है।
वृक्षों के आरोपण के लिए वैशाख, आषाढ़, श्रावण तथा भाद्रपद महीने श्रेष्ठ माने गए हैं। अश्विन, कार्तिक व ज्येष्ठ मास वृक्ष के आरोपण के लिए शुभ नहीं माने गए हैं जबकि पर्यावरण दिवस ज्येष्ठ मास में ही मना रहे हैं। बंजर भूमि को हरियाली में बदलना सचमुच एक भगीरथ प्रयास है।

केतु का महत्व



केतु का महत्व
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मित्रों सांसारिक जीवन में हमे दो तरह के केतु जीवन में मिलते है एक वो जो हमे देते है और दुसरे वो जो हमसे लेते है जैसे मामा भांजा बहनोई और साला | मामा पक्ष से हमे हमेशा ही कुछ न कुछ मिलता रहता है तो भांजे को हमे हमेशा ही कुछ न कुछ देते रहना पड़ता है | साला पक्ष से हमे हमारी पत्नी मिलती है तो हमारे वंस को आगे बढाती है तो साला हमे हमेशा ही कुछ न कुछ देते रहते है जबकि बहनोई को हमे हमेशा देते ही रहना पड़ता है सबसे पहले तो हमे हमारी बहन ही उसे सोंप्नी पडती है वो हमारी बहन को अपने साथ ले जाता है जबकि साले की बहन को हम अपने साथ ले आते है | घरों में कुते और चूहे के रूप में हम केतु को देखते है | कुता जो हमारे घर की रखवाली करता है जबकि चूहा जो हमे हमेशा ही नुक्सान पहुंचता है \ इस प्रकार हमारे दैनिक जीवन में अपनी महता हमे बताता है | केतु हमारे एक अच्छे सलाहकार के रूप में भी सहायता करता है और नुक्सान भी पहुंचा देता है जैसे की यदि आपका केतु शुभ फल दे रहा है तो आप यदि किसी अन्य की सलाह से कार्य करते है तो आपको बहुत लाभ मिलता है जबकि यदि केतु खराब हो तो दूसरों से ली हुई सलाह आपकी बर्बादी का कारण बन जाती है \ केतु एक संकेतक के रूप में भी सहायता कर देता हिया जैसे की हम वाहन चला रहे होते है और सामने से कोई हमे इशारा करके बता देता है की आगे खतरा है तो ये एक सहायक के रूप में सिद्ध होता है | केतु का महत्व आप इस बात से भी समझ सकते है लाल किताब कहती है की जब आपका राहू आपको खराब फल दे रहा हो तो केतु के उपाय से आपको राहत मिलेगी |
केतु के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है की केट छुडावे खेत यानी की केतु जिस भाव में हो उस भाव से सम्बन्धित जातक में अलगाव पैदा कर देता है | अन्य ग्रहों की तरह केतु की ज्योतिष में अहम भूमिका होती है | केतु गणेश जी , बेटा , भांजा , ब्याज , सलाहकार , दरवेस , दोहता , कुता , सुवर, छिपकली , कान , पैर , पेशाब , रीड की हड्डी , काले सफेद तिल , खटाई ,इमली , केला , कम्बल ,दहेज़ में मिली हुई खाट, लहसुनिया , भिखारी , मामा , दूरदर्शी , चल चलन , खरगोस , कुली , चूहा आदि का कारक केतु माना गया है | चन्द्र मंगल इसके शत्रु ग्रह शुक्र राहू मित्र ग्रह माने गये है बाकी के ग्रह इसके सम होते है | इसका समय रविवार को उषाकाल का होता है इसिलिय इस से सम्बन्धित उपाय यदि इस समय में किये जाए तो विशेष लाभ मिलता
ज्योतिष में केतु को मोक्ष का कारक ग्रह माना गया है | केतु को लाल किताब में कुल को तारने वाला , दुनिया की आवाज़ को मन्दिर तक पहुचाने वाला साधू ,मौत की निशानी यानी मौत आने का समय बताने वाला , गोली की जगह आकर मरने वाला सुवर ,रंग बिरंगा जिसमे लाल रंग न हो ,पुत्र को केतु माना गया है |
केतु को छलावा माना गया है पापी चाहे कैसा भी हो उसे बुरा ही माना गया है | चूँकि केतु की पाप ग्रह में गिनती होती है इसिलिय इसे बुरा ग्रह मना गया है |
केतु सूर्य के साथ होने पर उसके फल को कम कर देता है तो चन्द्र के साथ होने पर चन्द्र को ग्रहण लगा देता है | मंगल या शनी के साथ होने पर बुरा फल नही देता है लेकिन इन दो के साथ यदि कोई तीसरा ग्रह हो तो फिर तीनो का फल ही मंदा हो जाता है | गुरु के साथ उत्तम फल देता है और बुद्ध के साथ होने पर केतु बूरे फल देता है जबकि शुक्र के साथ होने पर केतु शुक्र की सहायता करता है |
चूँकि केतु संतान का कारक है और चन्द्र माता का इसिलिय जब कभी भी केतु चन्द्र के साथ हो या चन्द्र के खाना नम्बर चार में हो तो जातक को संतान से सम्बन्धित समस्या और माता को परेशानी और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है |
केतु के बारे में एक मुख्य कथन है की ना तो चारपाई टूटे न ही बुढिया मरे और न ही बिमारी मालुम हो और न ही सब कुछ सही हो | धीरे धीरे तीर कमान की तरह झुकते जाना मगर टूटना नही यानी की तड़फ ते जाना लेकिन मौत भी न मिलना केतु की ही करामात होती है | जैसा की आपने देखा होगा की कोई उम्र दराज इन्सान चारपाई में काफी समय तक रहता है और दुःख पाता रहता है लेकिन उसे मौत भी नशीब नही होती और ऐसी मौत केवल केतु देता है |
कुंडली में जब केतु बुरा हो तो उसका बुनियादी ग्रह शुक्र को भी आराम नही मिलता | जैसा की आपको पता है की केतु { पुत्र } शुक्र { रज ,वीर्य, पत्नी } का ही नतीजा होता है इसिलिय इसे इसका बुनिआय्दी ग्रह शुक्र कहा गया है | साथ ही जब कभी भी शुक्र को उसके साथी बुध की मदद न मिले या फिर कुंडली में मंगल बद हो तो केतु के उपाय से शुक्र को मदद मिलेगी | शुक्र शनी की गाडी केतु पहिये के बिना आगे नही बढ़ सकती | लाल किताब में केतु को बिर्हस्पती के बराबर का ग्रह माना गया है और केतु को गुरु का चेला कहा गया है ऐसे में जब शुक्र की मदद करने वाला केतु मंदा हो तो उसको ठीक करने के लिय बिर्हस्पती का उपाय करना होगा और फिर केतु शुक्र को मदद देगा | केतु जब भी बुद्ध के साथ या बुद्ध के घर तीन या छटे भाव में होगा बुरा फल देगा |
केतु पीठ का कारक माना गया है इसिलिय उभरी हुई पीठ रईसी की निशानी होगी जबकि छोटी पीठ गुलामी की |
केतु को अला बला यानी भुत प्रेत का कारक भी माना गया है ऐसे में मकान यदि किसी गली में आखरी कोने का हो या मकान केतु का हो यानी जिस मकान में तिन दरवाजे हो या तिन तरफ से खुला हो और केतु कुंडली में खराब हो तो ऐसी बला का उस मकान पर ज्यादा असर होगा| इस मकान के आसपास को कोई मकान गिरा हुआ यानी बर्बाद और खंडर हालत का होगा और कुतों का वहाँ आवागमन होगा या कोई खाली मैदान भी हो सकता है |
पेशाब की बिमारी होना ,, औलाद से सम्बन्धित समस्या होना , पांव के नाख़ून खराब हो जाना , सुनने की ताकत कम हो जाना अदि केतु खराब होने की निशानी होती है |हाथ केअंगूठे के नाख़ून वाला हिसा छोटा हो तो केतु दुश्मनों के साथ या उनके घर में होगा बुरा फल देगा इसी तरह अगर ये हिसा छोटा हो तो भी केतु बुरा फल देगा |
केतु खराब वाले को कान में सुराख करके सोना पहनना हमेशा लाभ देगा | साधू दरवेश की सेवा करना | धारिवाले कुते की सेवा करना | गणेश जी की पूजा करना, अपाहिज की सेवा करना उसकी सहायता करना अदि केतु के मुख्य उपाय है | मित्रों मै पहले भी केतु पर तिन चार पोस्ट कर चूका हूँ आज उन्ही सब पोस्टो को एक ही पोस्ट में सम्मलित करके पोस्ट की है |
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जय श्री राम

कारक विचार फलादेश

विकास खुराना to HINDU ASTROLOGY GROUP
23 hrs
कारक विचार
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कारक विचार फलादेश की सबसे महत्‍वपूर्ण कड़ी है। कई बार जातक जब समस्‍या बताता है तो नए ज्‍योतिषियों को पता ही नहीं चलता है कि इसे किस भाव या ग्रह से देखें। ऐसे में जितने कारक फौरी तौर पर ध्‍यान में होते हैं, उन्‍हीं के अनुसार ज्‍योतिषी निष्‍कर्ष पेश करने की कोशिश करते हैं। कई बार तो यह भी स्‍पष्‍ट नहीं हो पाता है कि सवाल का जवाब कुण्‍डली में कहां खोजा जाए। ऐसे में हमें भाव कारक ही बताते हैं कि किस सवाल का जवाब कहां खोजा जाए।
उनकी कारकत्‍व विचार पुस्‍तक में इतने कारक दिए गए हैं कि लगता है कि हर सवाल का जवाब दिया जा सकता है हर सवाल का जवाब ज्‍योतिष से दिया जा सकता है, बशर्ते आप कारकत्‍व के बारे में विस्‍तार से जानते हों। यहां मैं भावों के कारकों के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूं।
प्रथम भाव-
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इस भाव का कारक सूर्य है। यह सबसे प्रमुख भाव है। इसी भाव की राशि, इसमें बैठे ग्रह और इसके अधिपति ग्रह की स्थिति से जातक की स्थिति की प्राथमिक जानकारी मिल जाती है। बाकी भावों की तुलना में जातक की आत्‍मा को जानने का यह सबसे महत्‍वपूर्ण भाव है। जातक की जन्‍मकुण्‍डली अथवा प्रश्‍नकुण्‍डली के किसी सवाल के जवाब में उसके स्‍वास्‍थ्‍य, जीवंतता, सामूहिकता, व्‍यक्तित्‍व, आत्‍मविश्‍वास, आत्‍मसम्‍मान, आत्‍मप्रकाश, आत्‍मा आदि को देखा जाता है। हर सवाल के जवाब में पहले लग्‍न देखना ही होगा।
दूसरा भाव –
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इस भाव का कारक गुरु है। वैदिक ज्‍योतिष में इसे धन भाव कहा जाता है। इससे बैंक एकाउण्‍ट, पारिवारिक पृष्‍ठभूमि, कई मामलों में आंखें देखी जाती है। इसके अलावा यह संसाधन, नैतिक मूल्‍य और गुणों के बारे में बताता है।
तीसरा भाव –
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इस भाव का कारक मंगल है। इसे सहज भाव भी कहते हैं। कुण्‍डली को ताकत देने वाला भाव यही है। इसे आमतौर पर अनदेखा कर दिया जाता है, लेकिन भाग्‍य के ठीक विपरीत अपनी बाजुओं की ताकत से कुछ कर दिखाने वाले लोगों का यह भाव बहुत शक्तिशाली होता है। बौद्धिक विकास, साहसी विचार, दमदार आवाज, प्रभावी भाषण एवं संप्रेषण के अन्‍य तरीके इस भाव से देखे जाएंगे। छोटे भाई के लिए भी इसी भाव को देखाजाऐ.
चौथा भाव –
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इसका कारक चंद्रमा है। यह सुख का घर है। किसी के घर में कितनी शांति है इस भाव से पता चलेगा। इसके अलावा माता के स्‍वास्‍थ्‍य और घर कब बनेगा जैसे सवालों में यह भाव प्रबल संकेत देता है। शांति देने वाला घर, सुरक्षा की भावना, भावनात्‍मक शांति, पारिवारिक प्रेम जैसे बिंदुओं के लिए हमें चौथा भाव देखना होगा।
पांचवां भाव –
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इसका कारक गुरु है। इसे प्रॉडक्‍शन हाउस भी कह सकते हैं। इंसान क्‍या पैदा करता है, वह इसी भाव से आएगा। इसमें शिष्‍य, पुत्र और पेटेंट वाली खोजें तक शामिल हो सकती हैं। ईमानदारी से की गई रिसर्च भी इसी से देखी जाएगी। ईमानदारी से मेरा अर्थ है ऐसी रिसर्च जिससे विद्यार्थी अथवा विषय के लिए कुछ नया निकलकर आ रहा हो। इसके अलावा आनन्‍दपूर्ण सृजन, सुखी बच्‍चे, सफलता, निवेश, जीवन का आनन्‍द, सत्‍कर्म जैसे बिंदुओं को जानने के लिए इस भाव को देखना जरूरी है।
छठा भाव –
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इस भाव का कारक मंगल है। इसे रोग का घर भी कहते हैं। प्रेम के सातवें घर से बारहवां यानि खर्च का घर है। शत्रु और शत्रुता भी इसी भाव से देखे जाते हैं। कठोर परिश्रम, सश्रम आजीविका, स्‍वास्‍थ्‍य, घाव, रक्‍तस्राव, दाह, सर्जरी, डिप्रेशन, उम्र चढ़ना, कसरत, नियमित कार्यक्रम के सम्‍बन्‍ध में यह भाव संकेत देता है।
सातवां भाव –
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इसका कारक शुक्र है। लग्‍न को देखने वाला यह भाव किसी भी तरह के साथी के बारे में बताता है। राह में साथ जा रहे दो लोगों के लिए, प्रेक्टिकल के लिए टेबल शेयर कर रहे दो विद्यार्थियों के लिए, एक ही समस्‍या में घिरे दो साथ-साथ बने हुए लोगों के लिए यह भाव देखा जाएगा। जीवनसाथी, करीबी दोस्‍त, सुंदरता, लावण्‍य जैसे विषय इसी भाव से जुड़े हुए हैं। सभी विपरीत लिंग वालों के लिए। समलैंगिकों को कैसे देखेंगे यह अभी स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन कभी ऐसी कुण्‍डली आती है तो मैं दोनों का सातवां भाव ही देखने का प्रयास करूंगा।
आठवां भाव –
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इसका कारक शनि है। स्‍वाभाविक रूप से गुप्‍त क्रियाओं, अनसुलझे मामलों, आयु, धीमी गति के काम इससे देखे जाएंगे। इसके अलावा दूसरे के संसाधनों का सृजन में इस्‍तेमाल, जिंदगी की जमीनी सच्‍चाइयां, तंत्र-मंत्र के लिए यही भाव है
नौंवां भाव –
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इसका कारक भी गुरु है। इसे भाग्‍य भाव भी कहते हैं। पिछले जन्‍म में किए गए सत्‍कर्म प्रारब्‍ध के साथ जुड़कर इस जन्‍म में आते हैं। यह भाव हमें बताता है कि हमारी मेहनत और अपेक्षा से अधिक कब और कितना मिल सकता है। धर्म, अध्‍यात्‍म, समर्पण, आशीर्वाद, बौद्धिक विकास, सच्‍चाई से प्रेम, मार्गदर्शक जैसे गुणों को भी इसमें देखा जाता है।
दसवां भाव –
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इसके कारक ग्रह अधिक हैं। गुरु, सूर्य, बुध और शनि के पास दसवें घर का कारकत्‍व है। हम जो सोचते हैं वही बनते हैं। यह भाव हमारी सोच को कर्म में बदलने वाला भाव है। हर तरह का कर्म दसवें भाव से प्रेरित होगा। बस बाध्‍यता इतनी है कि एक्‍शन हमारा होना चाहिए। रिएक्‍शन के बारे में यह भाव नहीं बताता। प्रोफेशनल सफलताएं, साख, प्रसिद्धि, नेतृत्‍व, लेखन, भाषण, सफल संगठन, प्रशासन, स्किल बांटना जैसे काम यह भी
ग्‍यारहवां भाव –
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इसका कारक भी गुरु है। यह ज्‍यादातर उपलब्धि से जुड़ा भाव है। आय, प्रसिद्ध, मान सम्‍मान और शुभकामनाएं तक यह भाव एकत्रित करता है। हम कुछ करेंगे तो उस कर्म का कितना फल मिलेगा या नहीं मिलेगा, यह भाव अधिक स्‍पष्‍ट करता है। यह कर्म का संग्रह भाव है। उपलब्धि किसी भी क्षेत्र में हो सकती है। धैर्य, विकास और सफलता भी इसी भाव से देखे जाते हैं।.
बारहवां भाव –
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इसका कारक शनि है। यह खर्च का घर है। हर तरह का खर्च, शारीरिक, मानसिक, धन और जो भी खर्च हो सकते हैं सभी इसी से आएंगे। विद्या का खर्च भी इसी भाव से होता है। इस कारण बारहवें भाव में बैठा गुरु बेहतर होता है ग्‍यारहवें भाव की तुलना में क्‍योंकि सरस्‍वती की उल्‍टी चाल होती है, जितना संग्रह करेंगे उतनी कम होगी और जितना खर्च करेंगे उतनी बढ़ेगी। इसके अलावा बाहरी सम्‍बन्‍धों, विदेश यात्रा, धैर्य, ध्‍यान और मोक्ष इस भाव से देखे जाएंगे।
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कर्ज से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय

कर्ज से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय
कर्ज से मुक्ति के लिए वास्तु के उपाय
— कर्ज या ऋण शब्द के भीतर कष्ट छुपा होता है। अगर किसी व्यक्ति को कर्ज चुकाना हो तो उसकी पूरी जिंदगी तनाव में गुजर जाती है और रातो की नीद और दिन का चैन हराम हो जाता है .हम कुछ वास्तु
के उपाय अपनाकर कर्ज के
1- कर्ज से बचने के लिए उत्तर व दक्षिण की दीवार बिलकुल सीधी बनवाएँ।
2-उत्तर की दीवार हलकी नीची होनी चाहिए। कोई भी कोना कटा हुआ न हो, न ही कम होना चाहिए। गलत दीवार से धन का अभाव हो जाता है।
3-यदि कर्ज अधिक बना हुआ है और परेशान हैं तो ईशान कोण को 90 डिग्री से कम कर दें।
4-इसके अलावा उत्तर-पूर्व भाग में भूमिगत टैंक या टंकी बनवा दें। टंकी की लम्बाई, चौड़ाई व गहराई के अनुरूप आय बढ़ेगी। उत्तर-पूर्व का तल कम से कम 2 से 3 फीट तक गहरा करवा दें।
5-दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण दिशा में भूमिगत टैंक, कुआँ या नल होने पर घर में दरिद्रता का वास होता है।
6- दो भवनों के बीच घिरा हुआ भवन या भारी भवनों के बीच दबा हुआ भूखण्ड खरीदने से बचें क्योंकि दबा हुआ भूखंड गरीबी एवं कर्ज का सूचक है।
7-उत्तर दिशा की ओर ढलान जितनी अधिक होगी संपत्ति में उतनी ही वृद्धि होगी।
8-यदि कर्ज से अत्यधिक परेशान हैं तो ढलान ईशान दिशा की ओर करा दें, कर्ज से मुक्ति मिलेगी।
9-पूर्व तथा उत्तर दिशा में भूलकर भी भारी वस्तु न रखें अन्यथा कर्ज, हानि व घाटे का सामना करना पड़ेगा।
10-भवन के मध्य भाग में अंडर ग्राउन्ड टैंक या बेसटैंक न बनवाएँ। मकान का मध्य भाग थोड़ा ऊँचा रखें। इसे नीचा रखने से बिखराव पैदा होगा।
11-यदि उत्तर दिशा में ऊँची दीवार बनी है तो उसे छोटा करके दक्षिण में ऊँची दीवार बना दें।
12-इसके अलावा दक्षिण-पश्चिम के कोने में पीतल या ताँबे का घड़ा लगा दें। उत्तर या पूर्व की दीवार पर उत्तर-पूर्व की ओर लगे दर्पण लाभदायक होते हैं। दर्पण के फ्रेम पर या दर्पण के पीछे लाल, सिंदूरी या
मैरून कलर नहीं होना चाहिए। दर्पण जितना हलका तथा बड़े आकार का होगा, उतना ही लाभदायक होगा, व्यापार तेजी से चल पड़ेगा तथा कर्ज खत्म हो जाएगा।
13- दक्षिण तथा पश्चिम की दीवार के दर्पण हानिकारक होते हैं
14-दक्षिणी-पश्चिमी, पश्चिमी-उत्तरी या मध्य भाग का चमकीला फर्श या दर्पण गहराई दर्शाता है, जो धन के विनाश का सूचक होता है। फर्श पर मोटी दरी, कालीन आदि बिछाकर कर्ज व दिवालिएपन से बचा जा सकता है। दरवाजे उत्तर-पूर्व दिशा में होने चाहिए।
15-पश्चिमी-दक्षिणी भाग में फर्श पर उल्टा दर्पण रखने से फर्श ऊँचा उठ जाता है। फलतः कर्ज से मुक्ति मिलती है। उत्तर या पूर्व की ओर भूलकर भी उल्टा दर्पण न लगाएँ, अन्यथा कर्ज पर कर्ज होते चले जाएँगे। गलत दिशा में लगे दर्पण जबरदस्त वास्तुदोष के कारक होते हैं। सीढ़ियाँ कभी भी पूर्व या उत्तर की दीवार से न बनाएँ। सीढ़ियों का वजन दक्षिणी दीवार पर ही आना चाहिए। ऐसा न होने पर आय के लाभ के साधन खत्म हो जाते हैं। सीढ़ी हमेशा क्लाक वाइज दिशा में ही बढ़ाएँ। कर्ज से बचने के लिए उत्तर दिशा से दक्षिण की ओर बढ़ें। सीढ़ी की पहली पेड़ी मुख्य द्वार से दिखनी नहीं चाहिए, नहीं तो लक्ष्मी घर से बाहर चली जाती है।
जय राम जी की

रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ

🌷रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
• जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
• असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
• भवन-वाहन के लिए
दही से रुद्राभिषेक करें।
• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
• धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
• तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है । • पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
• ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
• सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै। • शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
• सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
• शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो
जाती है।
• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
• गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें

मंगलवार, 21 जून 2016

ग्रह की युति के फल भाग-१ ....... जब दो ग्रह एक ही राशि में हों तो इसे ग्रहों की युति कहा जाता है।

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ग्रह की युति के फल भाग-१ .......
जब दो ग्रह एक ही राशि में हों तो इसे ग्रहों की युति कहा जाता है।
जब दो ग्रह एक-दूसरे से सातवें स्थान पर हों अर्थात् 180 डिग्री पर हों, तो यह प्रतियुति कहलाती है। अशुभ ग्रह या अशुभ स्थानों के स्वामियों की युति-प्रतियुति अशुभ फलदायक होती है,
जबकि शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है।
आइए देखें, विभिन्न ग्रहों की युति-प्रतियुति के क्या फल हो सकते हैं -
1. सूर्य-गुरु : उत्कृष्ट योग, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, यश दिलाता है। उच्च शिक्षा हेतु दूरस्थ प्रवास योग तथा बौद्धिक क्षेत्र में असाधारण यश देता है।
2. सूर्य-शुक्र : कला क्षेत्र में विशेष यश दिलाने वाला योग होता है। विवाह व प्रेम संबंधों में भी नाटकीय स्थितियाँ निर्मित करता है।
3. सूर्य-बुध : यह योग व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है। व्यापार-व्यवसाय में यश दिलाता है। कर्ज आसानी से मिल जाते हैं।
4. सूर्य-मंगल : अत्यंत महत्वाकांक्षी बनाने वाला यह योग व्यक्ति को उत्कट इच्छाशक्ति व साहस देता है। ये व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की योग्यता रखते हैं।
5.सूर्य-शनि : अत्यंत अशुभ योग, जीवन के हर क्षेत्र में देर से सफलता मिलती है। पिता-पुत्र में वैमनस्य, भाग्य का साथ न देना इस युति के परिणाम हैं।
6. सूर्य-चंद्र : चंद्र यदि शुभ योग में हो तो यह यु‍ति मान-सम्मान व प्रतिष्ठा की दृष्टि से श्रेष्ठ होती है, मगर अशुभ योग होने पर मानसिक रोगी बना देती है।
7. चंद्र-मंगल : यह योग व्यक्ति को जिद्‍दी व अति महत्वाकांक्षी बनाता है। यश तो मिलता है, मगर स्वास्थ्‍य हेतु यह योग हानिकारक है। रक्त संबंधी रोग होते हैं।
दो ग्रहों युति का फल-
चन्द्र की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
चंद्र+मंगल- शत्रुओं पर एवं ईर्ष्या करने वालों पर, सफलता प्राप्त करने के लिए एवं उच्च वर्ग (सरकारी अधिकारी) विशेषकर सैनिक व शासकीय अधिकारी से मुलाकात करने के लिए उत्तम रहता है।
चंद्र+बुध- धनवान व्यक्ति, उद्योगपति एवं लेखक, सम्पादक व पत्रकार से मिलने या सम्बन्ध बनाने के लिए।
चंद्र+शुक्र- प्रेम-प्रसंगों में सफलता प्राप्त करने एवं प्रेमिका को प्राप्त करने तथा शादी- ब्याह के समस्त कार्यों के लिए, विपरीत लिंगी से कार्य कराने के लिए।
चंद्र+गुरु- अध्ययन कार्य, किसी नई विद्या को सीखने एवं धन और व्यापार उन्नति के लिए।
चंद्र+शनि- शत्रुओं का नाश करने एवं उन्हें हानि पहुंचाने या उन्हें कष्ट पहुंचाने के लिए।
चंद्र+सूर्य- राजपुरूष और उच्च अधिकारी वर्ग के लोगों को हानि या उसे उच्चाटन करने के लिए।
मंगल की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
मंगल+बुध- शत्रुता, भौतिक सामग्री को हानि पहुंचाने, तबाह-बर्बाद, हर प्रकार सम्पत्ति, संस्था व घर को तबाह-बर्बाद करने के लिए।
मंगल+शुक्र- हर प्रकार के कलाकारों (फिल्मी सितारों) में डांस, ड्रामा एवं स्त्री जाति पर प्रभुत्व और सफलता प्राप्त करने के लिए।
मंगल+ गुरु- युद्घ और झगड़े में या कोर्ट केस में, सफलता प्राप्त करने के लिए, शत्रु-पथ पर भी जनमत को अनुकूल बनाने के लिए।
मंगल+शनि- शत्रु नाश एवं शत्रु मृत्यु के लिए एवं किसी स्थान को वीरान करने (उजाड़ने ) के लिए।
बुध की अन्य गृहों से युति/सम्बन्ध का प्रभाव—-
बुध+शुक्र- प्रेम-सम्बन्धी सफलता, विद्या प्राप्ति एवं विशेष रूप से संगीत में सफलता के लिए।
बुध+गुरु- पुरुष का पुरुष के साथ प्रेम और मित्रता सम्बन्धों में पूर्ण रूप से सहयोग के लिए एवं हर प्रकार की ज्ञानवृद्घि के लिए नया है।
ग्रहों की युति-: चंद्र:-(विचार)-
शनि (दु:ख,विषाद,कमी,निराशा) :- मन में दु:ख,नकारात्मक सोच.
मंगल (साहस,धैर्य,तेज,क्षणिक क्रोध) :- विचारों में ओज,क्रांतिकारी विचार.
बुध (वाणी,चातुर्य.हास्य) :- हास्य-व्यंग्य पूर्ण विचार,नए विचार.
गुरु (ज्ञान,गंभीरता,न्याय,सत्य) :- न्याय,सत्य और ज्ञान की कसौटी पर कसे हुए गंभीर विचार.
शुक्र (स्त्री,माया,संसाधन,मिठास,सौंदर्य) :- माया में जकड़े विचार,सुंदरता से जुड़े विचार.
सूर्य (आत्म-तेज,आदर) :- आदर के विचार,स्वाभिमान का विचार.
राहू (मतिभ्रम,लालच) :- विचारों का द्वंद्व,सही-गलत के बीच झूलते विचार.
केतु (कटाक्ष,झूठ,अफवाह) :- झूठ,अफवाह और सही बातों को काटने का विचार.
विवाह भाव में चन्द्र एवं अन्य ग्रहों की युति-
चन्द्र-मंगल -सप्तम भाव में चन्द्र-मंगल युति
अगर कुण्डली में विवाह भाव में चन्द्र-मंगल दोनों की युति हो रही हो तो व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मृदुलता की कमी की संभावना बनती है.
चन्द्र-बुध -सप्तम भाव में चन्द्र-बुध युति
कुण्डली में चन्द्र व बुध की युति होने पर व्यक्ति का जीवनसाथी यशस्वी, विद्वान व सत्ता पक्ष से सहयोग प्राप्त करने वाला होता है. इस योग के व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के सहयोग से धन व मान मिलने की संभावना बनती है.
चन्द्र व गुरु -सप्तम भाव में चन्द्र व गुरु की युति
कुण्डली में विवाह भाव में जब चन्द्र व गुरु एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति का जीवनसाथी कला विषयों मे कुशल होता है.
उसके विद्वान व धनी होने कि भी संभावना बनती है. इस योग के व्यक्ति के जीवनसाथी को सरकारी क्षेत्र से लाभ मिलता है.
चन्द्र व शुक्र - सप्तम भाव में चन्द्र व शुक्र की युति
अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व शुक्र की युति होने पर व्यक्ति का जीवनसाथी बुद्धिमान हो सकता है.
उसके पास धन, वैभव होने कि भी संभावना बनती है. व्यक्ति के जीवनसाथी के सुविधा संपन्न होने की भी संभावना बनती है.
चन्द्र-शनि - सप्तम भाव में चन्द्र-शनि की युति
कुण्डली के विवाह भाव में चन्द्र व शनि दोनों एक साथ स्थित हों तो व्यक्ति का जीवनसाथी प्रतिष्ठित परिवार से होता है.
सप्तम भाव में चन्द्र की अन्य ग्रहों से युति-
बुध, गुरु, शुक्र - जब चंद्रमा की युति सप्तम भाव में बुध, गुरु, शुक्र से हो रही हों तो व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के शुभ फलों में वृद्धि होती है.
शनि, मंगल - अगर चन्द्र की युति विवाह भाव में शनि, मंगल के साथ हो रही हो तो दाम्पत्य जीवन में परेशानियां आती है.
. स्वयं चन्द्र भी जब कुण्डली में कृष्ण पक्ष का या निर्बल हो तब भी चन्द्र से मिलने वाले फल बदल जाते हैं.
चन्द्र सूर्य की युति का फल-
इन दोनों की युति होने पर व्यक्ति के अंदर अहम की भावना आ जाती है.
कुटनीति से व्यक्ति अपना काम निकालने की कोशिश करता है. व्यक्ति क्रोधी हो सकता है एवं व्यवहार में कोमलता की कमी रहती है. मन में अस्थिर एवं बेचैन रहता है. मन की शांति एवं व्यवहार कुशलता बढ़ाने के लिए चन्द्र के उपाय स्वरूप सोमवार के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करना चाहिए. मोती धारण करने से भी लाभ मिलता है.
चन्द्र मंगल की युति का फल-
मंगल भी सूर्य के समान अग्नि प्रधान ग्रह है. चन्द्र एवं मंगल की युति होने पर व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता आ जाती है. मंगल को ग्रहों में सेनापति कहा जाता है जो युद्ध एवं शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक होता है. जैसे युद्ध के समय बुद्धि से अधिक योद्धा बल का प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार इस युति वाले व्यक्ति परिणाम की चिंता किये किसी भी कार्य में आगे कदम बढ़ा देते हैं जिससे इन्हें नुकसान भी होता है. वाणी में कोमलता एवं नम्रता की कमी के कारण यह अपनी बातों से कभी-कभी मित्रों को भी शत्रु बना लेते हैं. हनुमान जी की पूजा करने से इन्हें लाभ मिलता है.
चन्द्र बुध की युति का फल-
चन्द्रमा शांत एवं शीतल ग्रह है और बुध बुद्धि का कारक ग्रह. जिस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र बुध की युति होती है वे काफी समझदार होते हैं, परिस्थितयों के अनुसार खुद को तैयार कर लेने की इनमें अच्छी क्षमता पायी जाती है. अपनी बातों को ये बड़ी ही चतुराई से कह देते हैं. वाक्पटुता से काम निकालने में भी यह माहिर होते हैं.
चन्द्र गुरू की युति का फल-
नवग्रहों में गुरू को मंत्री एवं गुरू का पद दिया गया है. मंत्री का कार्य होता है सलाह देना. सलाह वही दे सकता है जो ज्ञानी होगा. यानी इस युति से प्रभावित व्यक्ति ज्ञानी होता है और अधिक बोलने वाला भी होता है. ये सलाहकार, शिक्षक एवं ऐसे क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते हैं जिनमें बोलने की योग्यता के साथ ही साथ अच्छे ज्ञान की भी जरूरत होती है.
चन्द्र शुक्र की युति का फल-
चन्द्रमा के साथ शुक्र की युति होने पर व्यक्ति सुन्दर एवं आकर्षक होता है. इनमें सुन्दर दिखने की चाहत भी अधिक होती है. वाणी में कोमलता एवं विचारों में कल्पनाशीलता भी इनमें पायी जाती है. इस युति से प्रभावित व्यक्ति कलाओं में रूचि लेता है.
चन्द्र शनि की युति का फल-
जन्म कुण्डली में चन्द्रमा शनि के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति न्यायप्रिय होता है.
इस युति से प्रभावित व्यकति मेहनती होता है तथा अपनी मेहनत एवं ईमानदारी से जीवन में आगे बढ़ता है.
इनके स्वभाव में अस्थिरता पायी जाती है, छोटी-छोटी असफलताएं भी इनके मन में निराशा उत्पन्न करने लगती है.
चन्द्र राहु की युति का फल-
कुण्डली में चन्द्र के साथ राहु की युति होने पर व्यक्ति रहस्यों एवं कल्पना की दुनियां खोया रहता है.
इनमें किसी भी विषय को गहराई से जानने की उत्सुकता रहती है जिससे अपने विषय के अच्छे जानकार होते हैं.
इनके स्वभाव में एक कमी यह होती है कि अफवाहों एवं कही सुनी बातों से जल्दी विचलित हो जाते हैं.
चन्द्र केतु की युति का फल-
चन्द्र केतु की युति कुण्डली में होने पर व्यक्ति जोश में कार्य करने वाला होता है.
जल्दबाजी में कार्य करने के कारण इन्हें अपने किये कार्य के कारण बाद में पछताना भी पड़ता है लेकिन,
अपनी ग़लतियों से सीख लेना इनकी अच्छी आदत होती है.
ज्योतिषी के रूप में कैरियर बनाने का विचार करें तो यह अच्छे ज्योतिषशास्त्री बन सकते हैं.
सच्चाई एवं अच्छाई के लिए आवज़ उठाने के लिए चन्द्र केतु की युति वाले व्यक्ति सदैव तैयार रहते हैं.
शनि और पाप ग्रह की युति का फल-
शनि और मंगल
जब शनि और मंगल की युति बनती है तब दोनों मिलकर और भी अशुभ प्रभाव देने वाले बन जाते हैं.व्यक्ति का जीवन अस्थिर रहता है.
मानसिक और शारीरिक पीड़ा से व्यक्ति परेशान होता है
शनि और राहु केतु
.इन्हें शनि के समान ही कष्टकारी और अशुभ फल देने वाला कहा गया है.जब शनि की युति या दृष्टि सम्बन्ध इनसे बनती है तब शनि और भी पाप प्रभाव देने वाला बन जाता है.राहु और शनि के मध्य सम्बन्ध स्थापित होने पर स्वास्थ्य पर अशुभ प्रभाव होता है.शनि और राहु की युति नवम भाव में हृदय और गले के ऊपरी भाग से सम्बन्धित रोग देता है.इनकी युति कार्यों में बाधक और नुकसानदेय होती है.केतु के साथ शनि की युति भी समान रूप से पीड़ादायक होती है.इन दोनों ग्रहों के सम्बन्ध मानसिक पीड़ादायक और निराशात्मक विचारों को देने वाला होता है.
शनि और सूर्य
इन दोनों ग्रहों की युति बनती है उस भाव से सम्बन्धित फल की हानि होती है.
इन दोनों की युति व्यक्ति के लिए संकट का कारण बनती है.
सूर्य का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध-
सूर्य जगत का राजा है अपने समय पर उदय होता है और अपने समय पर ही अस्त हो जाता है।
चन्द्रमा के साथ सम्बन्ध होने पर देखने के बाद सोचने के लिये शक्ति देता है
मंगल के साथ मिलने पर शौर्य और पराक्रम की वृद्धि करता है
,बुध के साथ मिलकर अपने शौर्य और गाथा को दूरस्थ प्रसारित करता है अपनी वाणी और चरित्र को तेजपूर्ण रूप मे प्रस्तुत करता है,
शाही आदेश को प्रसारित करता है,गुरु के साथ मिलकर सभी धर्म और न्याय तथा लोगो के आपसी सम्बन्धो को बनाता है,
लोगो के अन्दर धन और वैभव की कमी को पूरा करता है,
शुक्र के साथ मिलकर राजशी ठाठ बाट और शान शौकत को दिखाता है भव्य कलाकारी से युक्त राजमहल और लोगो के लिये वैभव को इकट्ठा करता है
शनि के साथ मिलकर गरीबो और कामगर लोगो के लिये राहत का काम देता है जिनके पास काम नही है जो भटकते हुये लोग है उन्हे आश्रय देता है
वह केतु के द्वारा अपनी आज्ञा से करवाता है.
चन्द्रमा का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध-
राहु के साथ चन्द्रमा के आते ही कई प्रकार के भ्रम आजाते है और उन भ्रमो से बाहर निकलना ही नही हो पाता है
उसी प्रकार से केतु के साथ आते ही मोक्ष का रास्ता खुल जाता है,और जो भी भावना है वह खाली ही दिखाई देती है मन एक साथ नकारात्मक हो जाता है
सूर्य के साथ जाते ही चन्द्रमा के अन्दर सूखापन आजाता है
,मंगल के साथ जाते ही गर्म भाप का रूप चन्द्रमा ले लेता है और मानसिक सोच या जो भी गति होती है वह गर्म स्वभाव की हो जाती है
बुध के साथ चन्द्रमा की युति अक्समात मजाकिया हो जाती है
चन्द्रमा के साथ गुरु का ही हाथ होता है मानसिक रूप से कभी तो वह जिन्दा करने की बात करने लगता है और कभी कभी बिलकुल ही समाप्त करने की बात करने लगता है।
मंगल का अन्य ग्रहो से सम्बन्ध-
सूर्य के साथ मिलकर मंगल खुद को उत्तेजित कर लेता है और जितना अहम बढता जायेगा उतना वह अच्छा भी काम कर सकता है और खतरनाक भी काम कर सकता है
मंगल के साथ चन्द्रमा मिलता है तो वह अपनी सोच को क्रूर रूप से पैदा कर लेता है उसकी सोच मे केवल गर्म पानी जैसी बौछार ही निकलती है बुध के साथ मिलकर
लेकिन इस युति एक बार अच्छी मानी जाती है कि व्यक्ति के अन्दर बात करने की तकनीक आजाती है वह कम्पयूटर जैसे सोफ़्टवेयर की तकनीक को बना सकता है
मंग्ल के साथ गुरु के मिलने से जानकारी के अलावा भी प्रस्तुत करने की कला आजाती है और यह जीवन के लिये कष्टदायी भी हो जाती है।
मंगल के साथ शुक्र के मिलने से कलात्मक कारणो मे तो तकनीक का विकास होने लगता है लेकिन शरीर के अन्दर यह युति अधिक कामुकता को पैदा कर देती है और शरीर के विनास के लिये दिक्कत का कारण बन जाता है शुगर जैसी बीमारिया लग जाती है,
शनि के साथ मिलने से यह गर्म मिट्टी जैसे काम करवाने की युति देता है तकनीकी कामो मे सुरक्षा के कामो मे मन लगाता है,कत्थई रंग के कारण बनाने मे यानी सूखे हुये रक्त जैसे कारण पैदा करना इसकी शिफ़्त बन जाती है।
राहु के साथ मंगल की युति होने से या तो बिजली तेल पेट्रोल आदि के कामो मे बरक्कत होने लगती है या
बुध के साथ अन्य ग्रहो का सम्बन्ध-
बुध के साथ सूर्य के मिलने से व्यक्ति की सोच राजदरबार मे राजदूत जैसी होती है वह कमजोर होने पर चपरासी जैसे काम करता है और वह अगर केतु के साथ सम्बन्ध रखता है तो रिसेपसन पर काम कर सकता है
टेलीफ़ोन की आपरेटरी कर सकता है या ब्रोकर के पास बैठ कर केवल कहे हुये काम को कर सकता है इसकी युति के कारक ही काल सेंटर आदि माने जाते है,बुध के साथ
चन्द्रमा के होने से लोगो का बागवानी की तरफ़ अधिक मन लगता है कलात्मक कारणो मे अपनी प्रकृति को मिक्स करने का काम होता है
मंगल के साथ मिलकर जब भी कोई काम होता है तो तकनीकी रूप से होता है प्लास्टिक के अन्दर बिजली का काम बुध के अन्दर मंगल की उपस्थिति से ही है डाक्टरी औजारो मे जहां भी प्लास्टिक रबड का प्रयोग होता है
वह बुध और मंगल की युति से माना जाता है बुध के साथ गुरु का योग होने से लोग पाठ पूजा व्याख्यान भाषण आदि देने की कला मे प्रवीण हो जाते है लोगो को बोलने और मीडिया आदि की बाते करना अच्छा लगता है,
बुध के साथ शुक्र के मिलने से यह अपने को कलात्मक रूप मे आने के साथ साथ सजावटी रूप मे भी सामने करता है बाग बगीचे की सजावट मे और फ़ूलो आदि के गहने आदि बनाने प्लास्टिक के सजीले आइटम बनाने के लिये भी इसी प्रकार की युति काम करती है
बुध के साथ शनि के मिलने से भी जातक के काम जमीनी होते है या तो वह जमीन को नापने जोखने का काम करने लगता है या भूमि आदि को नाप कर प्लाट आदि बनाकर बेचने का काम करता है इसके साथ ही बोलने चालने मे एक प्रकार की संजीदगी को देखा जा सक्ता है,
गुरु के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध-
गुरु के साथ सूर्य के मिलने से जीव और आत्मा का संगम हो जाता है गुरु जीव है सूर्य आत्मा है जिस जातक की कुंडली मे जिस भाव मे यह दोनो स्थापित होते है वह भाव जीवात्मा के रूप मे माना जाता है।
गुरु का साथ चन्द्रमा के साथ होने से जातक मे माता के भाव जाग्रत रहते है,जातक के माता पिता का साथ रहता है जातक अपने ग्यान को जनता मे बांटना चाहता है।
गुरु के साथ मंगल के मिलने कानून मे पुलिस का साथ हो जाता है धर्म मे पूजा पाठ और इसी प्रकार की क्रियाये शामिल हो जाती है,विदेश वास मे भोजन और इसी प्रकार के कारण जुड जाते है,गुरु के साथ बुध होने से जातक के अन्दर वाचालता आजाती है वह धर्म और न्याय के पद पर आसीन हो जाता है उसके अन्दर भावानुसार कानूनी ग्यान भी हो जाता है।
शुक्र के साथ मिलकर गुरु की औकात आध्यात्मिकता से भौतिकता की ओर होना माना जाता है वह कानून तो जानता है लेकिन कानून को भौतिकता मे देखना चाहता है वह धर्म को तो मानता है लेकिन भौतिक रूप मे सजावट आदि के द्वारा अपने इष्ट को देखना चाहता है गुरु के साथ शनि के मिलने से जातक के अन्दर एक प्रकार से ठंडी वायु का संचरण शुरु हो जाता है जातक धर्मी हो जाता है कार्य करता है लेकिन कार्य फ़ल के लिये अपनी तरफ़ से जिज्ञासा को जाहिर नही कर पाता है जिसे जो भी कुछ दे देता है वापस नही ले पाता है कारण उसे दुख और दर्द की अधिक मीमांसा करने की आदत होती है।
गुरु राहु का साथ होने से जातक धर्म और इसी प्रकार के कारणो मे न्याय आदि के लिये अपनी शेखी बघारने के अलावा और उसे कुछ नही आता है कानून तो जानता है लेकिन कानून के अन्दर झूठ और फ़रेब का सहारा लेने की उसकी आदत होती है वह धर्म को मानता है लेकिन अन्दर से पाखंड बिखेरने का काम भी उसका होता है।
केतु के साथ मिलकर वह धर्माधिकारी के रूप मे काम करता है कानून को जानने के बाद वह कानूनी अधिकारी बन जाता है अन्य ग्रह की युति मे जैसे मंगल अगर युति दे रहा है तो जातक कानून के साथ मे दंड देने का अधिकारी भी बन जाता है
शुक्र के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध-
सूर्य के साथ मिलकर भौतिक सुखो का राज्य सेवा मे या पिता की तरफ़ से या पुत्र की तरफ़ से देने वाला होता है
चन्द्रमा के साथ मिलकर भावना से भरा हुआ एक प्रकार का बहकता हुआ जीव बन जाता है जिसे भावना को व्यकत करने के लिये एक अनौखी अदा का मिलना माना जाता है
मंगल के साथ मिलकर एक झगडालू औरत के रूप मे सामने आता है बुध के साथ मिलकर अपनी ही कानूनी कार्यवाही करने का मालिक बन जाता है गुरु के साथ मिलकर एक आध्यात्मिक व्यक्ति को भौतिकता की ओर ले जाने वाला बनता है
शनि के साथ मिलने पर यह दुनिया की सभी वस्तुओ को देता है लेकिन मन के अन्दर शान्ति नही देता है,राहु के साथ मिलकर प्रेम का पुजारी बन जाता है केतु के साथ मिलकर भौतिक सुखो से दूरिया देता है।
शनि के साथ ग्रहों का आपसी सम्बन्ध-
सूर्य शनि की युति वाले जातक के पास काम केवल सुबह शाम के ही होते है,वह पूरे दिन या पूरी रात कान नही कर सकता है इसलिये इस प्रकार के व्यक्ति के पास साधनो की कमी धन की कमी आदि मुख्य रूप से मानी जाती है,
शनि चन्द्र की युति मे मन का भटकाव रुक जाता है मन रूपी चन्द्रमा जो पानी जैसा है शनि की ठंडक और अन्धेरी शक्ति से फ़्रीज होकर रह जाता है शनि चन्द्र की युति वाला जातक कभी भी अपने अनुसार काम नही कर पाता है उसे हमेशा दूसरो का ही सहारा लेना पडता है।
शनि मंगल की युति मे काम या तो खूनी हो जाते है या मिट्टी को पकाने जैसे माने जाते है शनि अगर लोहा है तो मंगल उसे गर्म करने वाले काम माने जाते है।
इसी प्रकार से शनि के साथ बुध के मिलने से जमीन की नाप तौल या जमीन के अन्दर पैदा होने वाली फ़सले या वनस्पतियों के कार्य का रूप मान लिया जाता है,
शनु गुरु की युति मे एक नीच जाति का व्यक्ति भी अपनी ध्यान समाधि की अवस्था योगी का रूप धारण कर लेता है
शनि शुक्र की युति मे काला आदमी भी एक खूबसूरत औरत का पति बन जाता है एक मजदूर भी एक शहंशाही औकात का आदमी बन जाता है,
शनि राहु की युति मे जो भी काम होते है वह दो नम्बर के कामो के रूप मे जाने जाते है अगर शनि राहु की युति त्रिक भाव मे है तो जातक को जेल जाने से कारण जरूर पैदा होते है।
शनि केतु की युति मे जातक व्यापार और दुकान आदि के फ़ैलाने के काम करता है वह एक वकील की हैसियत से अपने कामो करता है
केतु के साथ अन्य ग्रहो के सम्बन्ध-
सूर्य केतु राजनेता होता है चन्द्र केतु जनता का आदमी होता है मंगल केतु इंजीनियर होता है
बुध केतु कमन्यूकेशन का काम करने वाला होता है लेकिन खून से सम्बन्ध नही रखता है,इसी लिये कभी कभी दत्तक पुत्र की हैसियत से भी देखा जाता है
गुरु केतु को सिद्ध महात्मा भी कहते है और डंडी धारी साधु की उपाधि भी दी जाती है
शुक्र केतु को वाहन चालक जैसी उपाधि दी जाती है या वाहन के अन्दर पैसा लेने वाले कंडक्टर की होती है वह कमाना तो खूब जानता है लेकिन उसे गिना चुना ही मिलता है
शनि केतु को धागे का काम करने वाले दर्जी की उपाधि दी जाती है या एक कम्पनी की कई शाखायें खोलने वाले चेयरमेन की उपाधि भी दी जाती है अक्सर यह मामला ठेकेदारी मे भी देखा जाता है।
ज्योतिष और यौन सुख :-
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख पाता है। जिनमें घर, वाहन सुख आदि समिल्लित है। इसके अलावा शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक भी माना जाता है। शुक्र सुख, उपभोग, विलास और सुंदरता के प्रति आकर्षण पैदा करता है। विवाह के बाद कुछ समय तो गृहस्थी की गाड़ी बढिय़ा चलती रहती है किंतु कुछ समय के बाद ही पति पत्नि में कलह झगडे, अनबन शुरू होकर जीवन नारकीय बन जाता है. इन स्थितियों के लिये भी जन्मकुंडली में मौजूद कुछ योगायोग जिम्मेदार होते हैं. अत: विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिये.
सातवें भाव में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि भी नही होनी चाहिये. लेकिन स्वग्रही सप्तमेश पर शनि मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की संपूर्ण दॄष्टि संबंध या युति है तो इस स्थिति में दापंत्य सुख अति अल्प हो जायेगा. इस स्थिति के कारण सप्तम भाव एवम सप्तमेश दोनों ही पाप प्रभाव में आकर कमजोर हो जायेंगे.
यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है वहीं षष्ठेश, अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में न्यूनता आती है.
यदि सप्तम अधिपति पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, सप्तमाधिपति से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, चंद्र एवम शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है.
लग्नेश सप्तम भाव में विराजित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक को अत्यंत सुंदर सुशील और गुणवान पत्नि मिलती है जिसके साथ उसका आजीवन सुंदर और सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत होता है. (यह योग कन्या लग्न में घटित नही होगा)
सप्तमेश की केंद्र त्रिकोण में या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे जोडों में परस्पर अत्यंत स्नेह रहता है. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव ना हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है.
सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो पति पत्नि अत्यंत प्रेम पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.
पुरूष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक शुक्र होता है उसी तरह स्त्री की कुंडली में पति सुख का कारक ग्रह वॄहस्पति होता है. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.
जिस स्त्री के द्वितीय, सप्तम, द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में होकर वॄहस्पति से देखे जाते हों, सप्तमेश से द्वितीय, षष्ठ और एकादश स्थानों में सौम्य ग्रह बैठे हों, ऐसी स्त्री अत्यंत सुखी और पुत्रवान होकर सुखोपभोग करने वाली होती है.
पुरूष का सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो वही राशि स्त्री की हो तो पति पत्नि में बहुत गहरा प्रेम रहता है.
वर कन्या का एक ही गण हो तथा वर्ग मैत्री भी हो तो उनमें असीम प्रम होता है. दोनों की एक ही राशि हो या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है.
अगर वर या कन्या के सप्तम भाव में मंगल और शुक्र बैठे हों उनमे कामवासना का आवेग ज्यादा होगा अत: ऐसे वर कन्या के लिये ऐसे ही ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी का चुनाव करना चाहिये.
दांपत्य सुख का संबंध पति पत्नि दोनों से होता है. एक कुंडली में दंपत्य सुख हो और दूसरे की में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता, अत: सगाई पूर्व माता पिता को निम्न स्थितियों पर ध्यान देते हुये किसी सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से दोनों की जन्म कुंडलियों में स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, संतान पक्ष इत्यादि का समुचित अध्ययन करवा लेना चाहिये सिफर् गुण मिलान से कुछ नही होता.
वर वधु की आयु का अधिक अंतर भी नही होना चाहिये, दोनों का शारीरिक ढांचा यानि लंबाई उंचाई, मोटाई, सुंदरता में भी साम्य देख लेना चाहिये. अक्सर कई धनी माता पिता अपनी काली कलूटी कन्या का विवाह धन का लालच देकर किसी सुंदर और गौरवर्ण लड़के से कर देते हैं जो बाद में जाकर कलह का कारण बनता है