शनि ग्रह अंधकार निराशा आलस्य आदि का कारक है आप जानते हैं कि सौरमंडल में सूर्य से सबसे दूर स्थित गृह शनि है
सूर्य के प्रकाश से विटामिन डी का निर्माण होता है इसलिए सूर्य का प्रकाश शारीरिक और मानसिक ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी माना गया
अब जो ग्रह सूर्य से इतनी दूर है कि वहां सूर्य का प्रकाश पहुंचने भी महीने लग जाते है तो स्वभाविक रूप से वह अंधकार का कारक होगा ही
ओर आप लगातार अंधेरी ओर सूर्य के प्रकाश से रहित जगहों पर रह कर देख लीजिये आपके अंदर विटामिन डी की कमी न हो जाये तो बता देना आत्मविस्वास की कमी न हो जाये तो कह देना
बस इसीलिए शनि को अंधकार निराशा इत्यादि चीजों का कारक माना गया है
इसलिए नहीं कि सूर्य ने शनि को लात मारकर भगा दिया और शनि उससे नाराज हो गया इसलिए उसने सूर्य के ऑपोजिट चीजें अंधकार इत्यादि अपना ली
अब देखिए आपके वैज्ञानिकों ने तो यह बात आज पता लगाई है कि सौरमंडल में सूर्य से सबसे दूर ग्रह शनि है लेकिन हमारे एस्ट्रोलॉजी में हमारे ऋषि यों ने हमारे मनीषियों ने यह बात बहुत पहले से पता लगा ली थी और उसी हिसाब से उन्होंने शनि के कारक तत्व डिसाइड किए
अब प्रश्न यह उठता है कि कर्म कारक भी तो शनि ही है
जब सूर्य से दूर रहना ही शनि का स्वभाव है तो बिना प्रकाश के कर्म कैसे संभव है
हां सही बात है सूर्य के बिना जब जीवन ही संभव नहीं तो कर्म कैसे संभव है
लेकिन ध्यान दीजिए सूर्य यानी चमक सूर्य यानी प्रतिष्ठा अर्थात लोगों के बीच चमकदार होने की पावर
लेकिन जब तक आप लोगों के बीच ही लगे रहेंगे तब तक कर्म कहां कर पाएंगे कर्म करने के लिए तो आपको एकांत ही चाहिए होगा तभी कर्म की गति बढ़ पाएगी कर्म करने के लिए तो आपको अपने विचारों को एकत्रित करके सिर्फ उसी कर्म में केंद्रित होकर अपने अंदर उतरना होगा
लेकिन यह कब होगा जब शनि उच्च होगा,
और शनि उच्च उसी जगह पर होता है जहां सूर्य नीच हो जाता है यानी तुला राशि में
अर्थात आपको अपने कर्मों को धार देने के लिए कर्म में ऊपर उठने के लिए कर्म योगी बनने के लिए कुछ समय के लिए तो सूर्य यानी चमक से और प्रतिष्ठा से दूरी बनानी ही पड़ेगी
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