गुरुवार, 30 जुलाई 2015

तिलक क्या होता है तिलक के लाभ और मंत्र !!


ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।तिलक कई प्रकार के होते हैं - मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि। यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।
तिलक किस दिन किसका लगाये !! 
सोमवार := सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं।चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।
मंगलवार := मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है।मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।
बुधवार := बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए। इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।
गुरुवार := गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह।गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए। हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा। 
शुक्रवार : = शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।
शनिवार := शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह।शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते। दिन शुभ रहता है।
रविवार := रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं।इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। भगवान विष्णु की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता आती है।

तिलक लगाने का मंत्र !!
केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।

॥ धार्मिक कार्यों में मौली (कलावा) बंधन का महत्व ॥
मौली बांधना वैदिक परंपरा का अटूट अंग है। यज्ञ के मध्य मौली बंधन की परंपरा तो प्राचीन काल से है, परन्तु इसको संकल्प सूत्र के साथ ही, रक्षा सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जब से असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता हेतु, भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, ‍जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा हेतु यह बंधन बांधा था। मौली को प्रत्येक हिन्दू बांधता है।
मौली का अर्थ~
"मौली" का शाब्दिक अर्थ है, सर्वोपरि अर्थात सबसे ऊपर। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे "कलावा" भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम "उप मणिबंध" भी है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है, अतः उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।
मौली बांधने का मंत्र~
येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल ॥
कैसी होती है, मौली~
मौली कच्चे धागे (सूत) से निर्मित होती है, जिसमें मूलत: ३ वर्ण के धागे होते हैं, लाल, पीला व हरा, परन्तु यदा कदा यह ५ धागों की भी निर्मित होती है, जिसमें नीला एवं श्वेत वर्ण भी होता है। ३ व ५ का अर्थ, कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव।
कहां-कहां बांधते हैं मौली~
मौली को हाथ की कलाई, गले एवं कमर में बांधा जाता है। इसके अतिरिक्त, किसी मन्नत हेतु देवी देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है तथा जब मन्नत पूर्ण हो जाती है, तो मौली का बंधन मुक्त कर दिया जाता है। इसे घर में आई नवीन वस्तु पर भी बांधा जाता है एवं पशुओं को भी बांधा जाता है।
मौली बांधने के नियम~
शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को अपने दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों हेतु बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए व दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का सदैव ध्यान रहे, कि इस सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए व इसके बांधने में वैदिक विधि का प्रयोग करना चाहिए।
कब बांधी जाती है मौली~
पर्व-त्योहार के अतिरिक्त किसी अन्य दिवस मौली बांधने हेतु मंगलवार व शनिवार का दिवस शुभ माना जाता है। प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को पुरातन मौली को उतारकर, नवीन मौली बांधना उचित माना गया है। उतारी हुई पुरातन मौली को पीपल के वृक्ष के पास रख दें अथवा किसी बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। प्रतिवर्ष की संक्रांति के दिवस, यज्ञ की प्रारंभ में, किसी इच्छित कार्य के प्रारंभ में, मांगलिक कार्य, विवाह आदि हिन्दू संस्कारों के मध्य मौली बांधी जाती है।
क्यों बांधते हैं मौली~
* मौली को धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है।
* किसी पुनीत कार्य के आरम्भ में संकल्प हेतु भी बांधते हैं।
* किसी देवी देवता के मंदिर में मन्नत हेतु भी बांधते हैं।
* मौली बांधने के ३ कारण हैं, प्रथम आध्यात्मिक, द्वितीय चिकित्सीय एवं तृतीय मनोवैज्ञानिक।
* किसी भी शुभ कार्य की आरम्भ करते समय अथवा नवीन वस्तु का क्रय करने पर मौली बांधते हैं, जिससे वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे।
* हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म अर्थात पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है।
* इसके अतिरिक्त पालतू पशुओं में हमारे गाय, बैल व भैंस को भी पड़वा, गोवर्धन एवं होली के दिन मौली बांधी जाती है।
मौली करती है रक्षा~
मौली को कलाई में बांधने पर कलावा अथवा उप मणिबंध कहते हैं। हाथ के मूल में ३ रेखाएं होती हैं, जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी प्रकार शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं, तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है, जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की समस्त प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत व जादू-टोने का असर नहीं होता।
आध्यात्मिक पक्ष~
* शास्त्रों का ऐसा मत है, कि मौली बांधने से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों, लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा तथा शिव की कृपा से दुर्गुणों का नाश होता है। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है।
* यह मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती है।
* इसमें संकल्प निहित होता है। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित एवं संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता है। यदि आपने किसी देवी अथवा देवता के नाम की यह मौली बांधी है, तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी अत्यावश्यक हो जाता है।
* कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान जन का कथन है, कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है व कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।
चिकित्सीय पक्ष~
प्राचीनकाल से ही कलाई, पैर, कमर व गले में भी मौली बांधे जाने की परंपरा के ‍चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार, इससे त्रिदोष अर्थात वात, पित्त व कफ का संतुलन बना रहता है। प्राचीन वैद्य व घर परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में मौली का उपयोग करते थे, जो शरीर हेतु लाभकारी था। रक्तचाप (ब्लड प्रेशर), ह्रदयाघात (हार्टअटैक), मधुमेह (डायबिटीज) व लकवा (पैरालिसिस) जैसे रोगों से बचाव हेतु मौली बांधना हितकर बताया गया है।
हाथ में बांधे जाने का लाभ~
शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है, अतः यहां मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। उसकी ऊर्जा का अत्यधिक क्षय नहीं होता है। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के अनेक प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें, कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर कलावा बांधने से, इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है।
कमर पर बांधी गई मौली~
कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वानों का कथन है, कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है एवं कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।
मनोवैज्ञानिक लाभ~
मौली बांधने से उसके पवित्र व शक्तिशाली बंधन होने का भान होता रहता है एवं इससे मन में शांति व पवित्रता बनी रहती है। व्यक्ति के मन व मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं आते तथा वह गलत रास्तों पर नहीं भटकता है। अनेक अवसरों पर, इससे व्यक्ति गलत कार्य करने से बच जाता है।
शुभ प्रभात मित्रों, आपका दिवस मंगलमय हो...

●●●▬▬▬۩आसन व शरीर शुद्धि मन्त्र۩▬▬▬●●●

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतो5पि वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।  


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