रविवार, 30 अक्टूबर 2022

महाभारत भाइयों के प्रेम और साथ की कहानी है,जिसे हर व्यक्ति को पुन: पुन: पढना चाहिए:

महाभारत भाइयों के प्रेम और साथ की कहानी है,जिसे हर व्यक्ति को पुन: पुन: पढना चाहिए:

मत्स्य देश में यह सूचना वायु के पंखों पर सवार होकर आई कि राजकुमार उत्तर ने विशाल कुरु सेना को अकेले ही परास्त कर दिया है. जो गौवें कुरु सेना ने लूट ली थीं, वह सभी गायें स्वतंत्र होकर लौट आई थीं. कंक बने युधिष्ठिर, मत्स्य नरेश विराट को बल्लव अर्थात भीम के द्वारा सुशर्मा से मुक्त करा चुके थे. सुशर्मा ने मत्स्य नरेश की अधीनता स्वीकार कर ली थी. स्वयं मत्स्य नरेश को इस बात पर हैरानी हो रही थी कि अंतत: यह क्या हो रहा है? उनका पुत्र उत्तर कैसे पराजित कर सकता है इतनी विशाल कुरु सेना को? और फिर उन्हें गर्व का अनुभव होने लगा. “मेरा पुत्र, मेरा किशोर पुत्र और द्रोण, भीष्म जैसे महायोद्धा और वह अकेला!” उनके हृदय में आनदं की हिलोरे उत्पन्न होने लगीं. तभी कंक ने कहा
“महाराज जीतना तो था ही, बृहन्नला जो गयी है, साथ! उसका साथ ही विजय का निश्चित होना है!”
नृत्य सिखाने वाली बृहन्नला का उल्लेख इस वीर कृत्य में आने के साथ महाराज क्रोधित हो गए. उन्होंने कहा “हे ब्राह्मण तनिक सम्हल कर बात करो. , बृहन्नला न ही तो पुरुष है और न ही स्त्री, वह क्या जिताएगी? क्या उसने कभी युद्ध भूमि का मुंह भी देखा है?”
बृहन्नला अर्थात अर्जुन के प्रति यह कटु वाक्य सुनते ही कंक पश्चाताप में डूब गए. उनके एक गलत कदम के कारण विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर को इस भेष में रहना ही नहीं पड़ रहा था, अपितु दिव्यास्त्र प्राप्त अर्जुन को यह सब सुनना भी पड़ रहा था. परन्तु उन्होंने महाराज की बात पर ध्यान न दिया. वह पुन: बोले “नहीं महाराज! कई बार उसने अर्जुन के रथ का संचालन किया है! वह महारथी है!”
अब महाराज अपने युवा पुत्र के पराक्रम के सम्मुख उस नपुंसक बृहन्नला की अतिशय स्तुति से चिढ़ गए तथा उन्होंने जिन पासों से खेलते थे, वही कंक के मुख पर मार दिए! युधिष्ठिर अर्थात कंक के मुख से रक्त की धार बह निकली. सैरंध्री बनी द्रौपदी धर्मराज की यह स्थिति देखकर भागकर आई तथा रक्त की बूँद नीचे गिरने से पहले कटोरा रख दिया.
द्रौपदी के लिए अपने प्रिय युधिष्ठिर की देह से निकलने वाले रक्त को रोकना जितना आवश्यक था, उतना ही आवश्यक था कि , बृहन्नला को यह रक्त देखने से रोका जाए. क्योंकि उस बड़े भाई के मुख से बहता हुआ रक्त देखकर अर्जुन आपे में नहीं रह पाएंगे जिनका वह इतना आदर करते थे. जिनके एक गलत कदम पर बिना किसी विरोध के वह अपना वह राजपाट छोड़कर वन में चले आए थे, जो राजपाट उन्होंने स्वयं बनाया था. खांडवप्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ इन्हीं पाँचों भाइयों और द्रौपदी ने बनाया था. भाइयों के मध्य यह सम्बन्ध भारत वर्ष के इतिहास की अद्भुत कहानी है. यह भाइयों के उस प्रेम की कहानी है, जिसमें बड़े भाई से प्रश्न तो किये, परन्तु बड़े भाई के विरोध में नहीं गए.
अर्जुन यदि अपने भाई के मुख से निकला हुआ रक्त देखेंगे तो अनर्थ हो जाएगा, इसलिए द्रौपदी भागकर जाती हैं और वहीं रोक लेती हैं.
कितना सरल था यह कह देना कि महाभारत को अपने घर में न रखिये क्योंकि इससे झगड़ा होगा! क्यों न रखें और क्यों न पढ़ें जिससे यह ज्ञात हो कि युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव में इतना प्रेम है कि वह एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते! वह यह नहीं कहते कि बड़े भैया ने द्यूत खेला था, हम तो वन नहीं जाएंगे? वह यह नहीं कहते कि हमारा अधिकार बने बनाए हस्तिनापुर पर है, हम उजाड़ खांडवप्रस्थ क्यों लें? बल्कि वह अपने पौरुष से खांडवप्रस्थ को मात्र इन्द्रप्रस्थ ही नहीं बनाते हैं बल्कि राजसूय यज्ञ कराकर युधिष्ठिर को सम्राट भी बनवाते हैं. जब अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव अपने इन्द्रप्रस्थ की सीमाओं का विस्तार अपने पौरुष से कर रहे थे, उस समय लिबरल की नजर में आदर्श कर्ण, किसी कोने में बैठकर उनकी इस विजय यात्रा के विषय में सुनकर अपनी कुंठा का विस्तार कर रहा था.
अर्जुन अपने भाई के मुख से निकला हुआ एक बूँद रक्त नहीं सहन कर सकते! वह प्रलय ला देंगे, और वह भी उस भाई के लिए जिनके कारण वह उस अवस्था में थे. परन्तु यह भाइयों का और द्रौपदी का प्रेम था, जिसमें उलाहना नहीं है, जिसमें तंज नहीं है! बस है तो एक दूसरे के प्रति समर्पित प्रेम!
जब उजाड़ खांडव प्रस्थ, इन्द्रप्रस्थ बना तो वह इन्हीं भाइयों का पुरषार्थ था, महाभारत की कहानी पाँचों भाइयों के प्रेम और पुरुषार्थ का हमारा इतिहास है!
यह घर उजाड़ने वाली पुस्तक नहीं है, युधिष्ठिर के धैर्य की कहानी है, युधिष्ठिर के धर्म की कहानी है. जितनी बार पढेंगे उतनी बार उसमें से मोती ही पाएंगे.
राज्य, वनवास, संघर्ष और फिर राज्य के बाद साथ की कहानी है

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