आज शरद पूर्णिमा ( टेसू की पूर्णिमा )
*******************************
अभी अनछुआ हुआ नहीं ये खेल अब भी ग्वालियर संभाग में ये कहीं कही किन्ही किन्ही मोहल्लों गलियों में देखने को मिल जाता है।
ग्वालियर का बीतता हुआ कल,,,धीरे धीरे जा रहा है समय के गर्त में ये लोकरंजनी बचपन का खेल
****************
वो भी रुपए साठ का
............................
टेसू आया टेशन से
वो भी बड़े फैशन से
कोट पहने टाट का
वो भी रुपए साठ का।
टाई बांधे रस्सी की
वो भी रुपए अस्सी की।
मेरा टेसू यहीं अड़ा
खाने को मांगे दही बड़ा...
और न जाने कितनी लम्बी
कहानी है इस टेसू की
विवाह से पहले।
टेसू का विवाह झांझी से
शरद पूर्णिमा पर होता है।
बच्चे हाथ में टेसू लिए
उसकी शादी का खर्च
जुटाने घर घर टेसू
की कथा सुनाने पहुँचते है।
जो दे उसका भला।
जो ना दे तो....
मेरा टेसू यहीं अड़ा....
हर परंपरा कुछ कहती है।
************************
मेर टेशु यही अडा खाने को मांगे दही बडा
धही बड़े मे पन्नी रख दो चार अठननी
अठननी मे खोट हैं, रख दो दस का नोट है।
दस के नोट मे खोट तो रख दो सो का नोट
सो के नोट कोई खेल नही हमारा तुम्हारा कोई मेल नही।
******************************************
ईमली की जड से निकली पतंग
सो सो मोती झलके रंग
एक रंग मेने मांग लिया
चढ घोडे सलाम किया
मारूँगा भाई मारूँगा
दिल्ली जात पुकारूँगा
*********************
पानी पियो कीच को धरदयो नोट बीस को
************************
टेसू आया टेशन से रोटी खाई बेसन से ,
कोट पहना टाट का बो भी अस्सी साठ का
********************
जितने मुंह
उतने किस्से
मकसद एक ही
टेसू की शादी
***************
देश के कई स्थानों में ये ढिल्लु राजा के नाम से भी जाना जाता है।
ढिल्लु मतलब निठल्ला कोई काम धंधा नहीं इधर से उधर घूमना ओर अडोस पड़ोस के घरों में अर्थात झेन्जी के घर में ताका झांकी करना। और अपने बाबा के शे में रहना आखिर में बाबा का लाडला पोता जो हे ।
कहते हैं ना..... "बाबा जी का ठिल्लु"
टेसू - झेन्जी की शादी के तुरंत बाद मतलब जैसे ही फेरे होते तो लड़कियां टेसू तोड़ देती ओर उसकी आँखें जो कौड़ियों की बनी होतीं उनको नोंच कर निकालती आपस में छीना झपटी करती की कौड़ी उनमें से कौन लेगा।
ऐसा क्यों होता ?
ये शायद कोईं लोक - कथा के अंतर्गत होता होगा , कोई कहानी होनी चाहिये ?
ये आज तक नही पता। की क्या था ?
कोईं आल्हा - ऊदल , नल - दयमंती की तरह की कोई प्रेम कथा रही होगी लोक कथाओं में !!!
समय के गर्त में विस्मृत हे।
******************************************
सूअटा नाम का दानव टेसू ओर झेँझी की शादी नहीं होने देना चाहता इसलिये दोनो को तोड़ देता है।
खैर जो भी है मधुर यादे हे 4 G के युग में उम्मीद करता हूँ की 8 G, 9G, 10 G आदि के आने के बाद भी ये सब मौजूद रहे।
और मेरा टेसूं यहीं अड़ा रहे।
और झेंजी के घर में ताक-झाँक करता आनंद लेता रहे।
टेसू झेन्जी का इतिहास
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
देश के कई भागों में -टेसू और झैन्जी -का एक विशेष परंपरागत पर्व ...आज विजयदशमी से शरदपूर्णिमा तक मनाया जाता है जिसमें दोनों की धूमधाम से शादी की जाती है ...आइये इसे विस्तार से जाने ...
टेसू भीमसेन का बेटा है, पांडव भाइयों में सबसे अधिक शक्तिशाली हो गया है माना जाता है कि उन्होंने चंबल क्षेत्र पर शासन किया और महाभारत की लड़ाई का गवाह बनकर फैसला किया. वह कुरुक्षेत्र में हारने वाले की और से युद्ध करने आया जिसे श्रीकृष्ण न समझ लिए और गुरुदक्षिणा में उसका सिर माँगा टेसू ने - अपना सिर दे दिया ...लेकिन उसने कृष्ण से कहा कि में महाभारत युद्ध देखना चाहता हूँ ...कृष्ण ने उसकी इक्ष्छा पूरी करने के लिए तीन खंभे पर उसका सिर स्थापित किया है जहां से वह कुरुक्षेत्र की लड़ाई देख सके ...और बाद में उसकी इक्छा अनुसार झैंझी से शादी कर सके
आज देश के विभिन्न भागों में टेसू की प्रतिमा प्रतीकात्मक रूप से झैन्जी से शादी की जाने की परम्परा को निभाया जाता है. शरद पूर्णिमा की रात को सबसे सुंदर माना है . मानो कोई आकाश को धोकर साफ सुथरा करता हो . सितारों सर्दियों की ठंड , मुश्किल ताक अधिग्रहण , और चंद्रमा उज्जवल और मजबूत लगता है. तब टेसू की झैन्जी से शादी की जाती है . जिस घर में टेसू झैन्जी का विवाह किया जाता है उस घर में उत्सव होता है ...बच्चे घर घर भीख मांगकर शादी का समारोह मानते है .लड़के घरों रोचक ढंग से टेसू को सजाते है जैसे दूल्हा सजाया जाता है . तीन लड़कियों का जोड़ बनाकर टेसू तैयार होता है एक हाथ में एक लाल तोता और अन्य में एक हुक्का , घोषणा हँस आँखें , एक लाल पैन से सना हुआ मुंह , उसकी मूंछें के साथ एक खिलौना के रूप में दर्शाया जाता है ...जबकि लडकिया झैंझी तैयार करती है ...एक छोटी से कई छेद बाली मटकी में एक " दिया " जलाकर रखा जाता है जिसकी रौशनी फिल्टर होकर बाहर दिखती है . उस मटकी रूपी झैन्जी को भी खूब सजाया जाता है जैसे दुल्हन सजी हो. शरद पूर्णिमा को सभी लोग चाँद की रौशनी में टेसू और झैन्जी के गीत गाते है ...महिलाये मधुर आवाज में गाती है और टेसू के आने पर गाली गीत भी होते है .
शादी के बाद सभी बराती और घराती लोग एक लाइन से बैठकर भोजन करते है ...फिर टेसू और झैंझी को एक और लेजाकर नष्ट कर दिया जाता है और माना जाता है की उनका प्रेम अमर है और वे दो जिस्म और एक आत्मा हो गए है!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें