बच्चों की पढ़ाई से पहले एक मूलभूत प्रश्न कि विवाह और बच्चे आपको क्यों चाहिए? क्योंकि पढ़ाई और स्कूल का सार इसी प्रश्न में छिपा हुआ है. सबसे मूल प्रश्न यही है कि विवाह क्यों करना है और बच्चे क्यों चाहिए? जब यह दो प्रश्न और उसके उत्तर स्पष्ट होते हैं, तो आने वाले जीवन में भ्रम नहीं रहता है. समस्या यही है कि हमें यही नहीं पता होता कि आखिर हमें बच्चे क्यों चाहिए?
केवल शादी करनी है, या केवल उन इच्छाओं की पूर्ति करनी है, जो आप बिना विवाह के नहीं कर सकते हैं, तो फिर शादी क्यों कर रहे हैं, उस इच्छा के लिए अनुबंध कर लीजिये! विवाह किसलिए? आर्थिक सुरक्षा के लिए, तो उसके लिए निवेश का विकल्प है! और सौभाग्य से आज के समय में यह दोनों ही कानूनी है, आप दैहिक इच्छाओं की पूर्ति करते हुए, बिना विवाह के, और अच्छे आर्थिक निवेश के साथ जीवन बिता सकते हैं. फिर विवाह क्यों? बच्चे क्यों?
हमारे यहाँ शास्त्रों में विवाह की महत्ता, इसलिए है क्योंकि विवाह के उपरांत ही व्यक्ति अर्द्धनारीश्वर के उस रूप को प्राप्त कर लेता है, जो स्वयं भगवान का रूप है! विवाह इसलिए क्योंकि आपके अस्तित्व को पूर्ण होना है. जिस क्षण यह भाव हृदय में उत्पन्न होता है, उस क्षण से आपको कभी भी अपने जीवन से कोई शिकायत रह ही नहीं जाती है. और जब विवाह अस्तित्व को पूर्ण करने के लिए होता है, तो हर प्रकार से संतुष्ट भाव ही एक संतुष्ट एवं मानसिक स्वस्थ सन्तान को उत्पन्न कर सकते हैं.
और वह आपके अस्तित्व का विस्तार है. इस सृष्टि में आपकी सन्तान आपके अस्तित्व का विस्तार है, जिसके बिना आपका जीवन निस्सार है! जिस क्षण आपने “हर प्रकार से संतुष्ट” संबंधों में रहते हुए गर्भ धारण किया, उसी क्षण आपके अस्तित्व को विराटता मिलनी आरम्भ हो जाती है. मातृत्व जीवन का अंत नहीं है, जैसा विकृत फेमिनिज्म बताता है, बल्कि यह जीवन का विस्तार है! अस्तित्व, व्यक्तित्व का विस्तार है!
परन्तु आज न ही संतुष्टि है, संतुष्टि में हर प्रकार की संतुष्टि की बात मैं कर रही हूँ. तो उस असंतुष्टि के भाव लेकर बच्चा जब आता है, तो उसका स्वागत तमाम तरह की चिंताओं के साथ होता है. अस्पताल का लाखों का बिल, हेल्थ बीमा, उसकी पढ़ाई का खर्च, आदि आदि! बच्चा एक लायबिलिटी बनकर आने लगा है, अस्तित्व तो कहीं है ही नहीं!
और इसी कारण बच्चों का स्वागत नहीं होता, क्योंकि वह टूटे सम्बन्धों में लाइबिलिटी बनकर आ रहा है!
और चूंकि जब वह लाइबिलिटी बनकर आता है, तो फिर हम उसमें निवेश करते हैं, जिससे कि वह समय पर हमें लाभ दे, लाभांश हमें मिलते रहें! न ही निस्वार्थ पालनपोषण है, न ही अस्तित्व का भाव! बच्चों को हमने एक ऐसे इन्वेस्टमेंट के रूप में ले लिया हैं जो इन मशीनी दैत्यों से हमें बचाएगा! और मशीनी दैत्यों से वह हमें बचाए, इसलिए हम उसे उस पढ़ाई में झोंक देते हैं, जो उसे उन्हीं मशीनी दैत्यों का मुकाबला करने में सक्षम बनाती है. इन सबमें मातृत्व कहाँ है?
सोचिये, आप बच्चे क्यों पैदा कर रहे हैं? सोचिये? पढ़ाई पर कल बात करेंगे! आज मात्र यही प्रश्न बार बार पूछिए और फिर जीवन में संतुष्टि की परिभाषा पर दृष्टि डालिए! चर्चा है, चलती रहनी चाहिए
ॐ नम: परमशिवाय!
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