ॐ नमः शिवाय ... मित्रों !
आज का दिन आप सभी के लिए शुभ हो ....
आज का दिन आप सभी के लिए शुभ हो ....
यदि किसी भी जातक की जन्म पत्रिका में कालसर्प, पितृदोष एवं राहु-केतु तथा शनि से पीड़ा है
अथवा ग्रहण योग है तथा जो जातक मानसिक रूप से विचलित रहते हैं जिनको मानसिक शांति नहीं मिल रही हो तो उन्हें भगवान शिव की गायत्री मंत्र से आराधना करना चाहिए।
क्योंकि
कालसर्प, पितृदोष के कारण राहु-केतु को पाप-पुण्य संचित करने तथा शनिदेव द्वारा दंड दिलाने की व्यवस्था भगवान शिव के आदेश पर ही होती है।
अथवा ग्रहण योग है तथा जो जातक मानसिक रूप से विचलित रहते हैं जिनको मानसिक शांति नहीं मिल रही हो तो उन्हें भगवान शिव की गायत्री मंत्र से आराधना करना चाहिए।
क्योंकि
कालसर्प, पितृदोष के कारण राहु-केतु को पाप-पुण्य संचित करने तथा शनिदेव द्वारा दंड दिलाने की व्यवस्था भगवान शिव के आदेश पर ही होती है।
इससे सीधा अर्थ निकलता है कि इन ग्रहों के कष्टों से पीड़ित व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करे तो महादेवजी उस मनुष्य की पीड़ा दूर कर सुख पहुँचाते हैं।
भगवान शिव की शास्त्रों में कई प्रकार की आराधना वर्णित है परंतु शिव गायत्री मंत्र का पाठ सरल एवं अत्यंत प्रभावशील है।
भगवान शिव की शास्त्रों में कई प्रकार की आराधना वर्णित है परंतु शिव गायत्री मंत्र का पाठ सरल एवं अत्यंत प्रभावशील है।
मंत्र निम्न है :-
'ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् '
इस मंत्र का विशेष विधि-विधान नहीं है। इस मंत्र को किसी भी सोमवार से प्रारंभ कर सकते हैं। इसी के साथ सोमवार का व्रत करें तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे।
शिवजी के सामने घी का दीपक लगाएँ।
जब भी यह मंत्र करें एकाग्रचित्त होकर करें, पितृदोष, एवं कालसर्प दोष वाले व्यक्ति को यह मंत्र प्रतिदिन करना चाहिए।
सामान्य व्यक्ति भी करे तो भविष्य में कष्ट नहीं आएगा। इस जाप से मानसिक शांति, यश, समृद्धि, कीर्ति प्राप्त होती है।
शिव की कृपा का प्रसाद मिलता है।
जब भी यह मंत्र करें एकाग्रचित्त होकर करें, पितृदोष, एवं कालसर्प दोष वाले व्यक्ति को यह मंत्र प्रतिदिन करना चाहिए।
सामान्य व्यक्ति भी करे तो भविष्य में कष्ट नहीं आएगा। इस जाप से मानसिक शांति, यश, समृद्धि, कीर्ति प्राप्त होती है।
शिव की कृपा का प्रसाद मिलता है।
यह मंत्र मेरा अनुभूत है।
* शिवलिंग जल अभिषेक -
" संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम् !
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः !! "
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः !! "
अर्थात् जो जल समस्त जगत् के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है।
इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन् उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए।
इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन् उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए।
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रावण माह में ही समुद्र मंथन किया गया था ... मंथन के दौरान समुद्र से निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में समाहित कर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की,
किन्तु अग्नि के समान दग्ध विष के पान उपरांत महादेव शिव का कंठ नीलवर्ण हो गया।
किन्तु अग्नि के समान दग्ध विष के पान उपरांत महादेव शिव का कंठ नीलवर्ण हो गया।
विष की ऊष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया।
इस कारण भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व आज भी है तथा शिव पूजा में जल की महत्ता, अनिवार्यता भी सिद्ध होती है।
श्रावण मास मे शिव-उपासना से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं।
शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं।
!! ॐ नमः शिवाय !!
hello pandit JI, Name- monika sharma DOB-02/05/1986 time-4:21 place-Ambala
जवाब देंहटाएंmari khudli me dhush h koi samadha karo