ॐ नमः शिवाय ... मित्रों !
आज का दिन आप सभी के लिए शुभ हो ...
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" बिल्वपत्र की महत्ता "
बिल्वाष्टक स्तुति ने बताया गया हैं कि बेलपत्ते सत्व, रज और तमोगुण की तरफ संकेत करते हैं , इसलिए इन पत्तों को त्रिगुणाकार रुप कहा जाता हैं।
जिस समय हम सारी सृष्टि का विचार करते है यह तीन तत्वों से परिपूर्ण नजर आती हैं,
स्त्री, पुरुष तथा नपुंसक ,
मनुष्य, देव तथा राक्षस,
जलचर, नभचर तथा थलचर ,
इस सृष्टि का सृजन , पालन तथा संहार भी तीन देवता ही करते है...
ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश।
स्त्री, पुरुष तथा नपुंसक ,
मनुष्य, देव तथा राक्षस,
जलचर, नभचर तथा थलचर ,
इस सृष्टि का सृजन , पालन तथा संहार भी तीन देवता ही करते है...
ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश।
जैसे बिल की पत्तियां जाल से जुड़ी है उसी प्रकार यह सारा त्रीत्व चेतना से जुड़ा हुआ हैं। बिलपत्र को त्रिनेत्र की संज्ञा भी दी गई हैं।
इसी विवेक के नेत्र (तीसरी आंख) से शिव जी कामदेव शमन करते हैं ...
इसलिए भी शिव को बिलपत्र अर्पण करना चाहिए।
इसी विवेक के नेत्र (तीसरी आंख) से शिव जी कामदेव शमन करते हैं ...
इसलिए भी शिव को बिलपत्र अर्पण करना चाहिए।
पुराणों में श्रावण मास में भगवान शंकर की पूजा अर्चना को शुभ फलदायी बताया गया है।
शिव अभिषेक में नैवेद्य के रूप में बिल्व पत्रों का विशेष महत्व है ...
ऐसा माना जाता है कि शिवप्रिय बिल्व साक्षात् महादेव स्वरूप है तथा बिल्व पत्र में तीनों लोक के तीर्थ स्थापित हैं।
शिव अभिषेक में नैवेद्य के रूप में बिल्व पत्रों का विशेष महत्व है ...
ऐसा माना जाता है कि शिवप्रिय बिल्व साक्षात् महादेव स्वरूप है तथा बिल्व पत्र में तीनों लोक के तीर्थ स्थापित हैं।
बिल्व की महत्ता का वर्णन करते हुए शिवपुराण में वर्णित है कि बिल्व की जड़ों के समीप शिवलिंग स्थापित करने से साधक के महापाप भी कट जाते हैं तथा
दानादि कर्म से निर्धनता दूर होती है।
नियमित रूप से बिल्व पत्रों से भगवान शिव का अभिषेक करने वाला उपासक अंततोगत्वा शिवलोक को प्राप्त होकर शिवमय हो जाता है।
दानादि कर्म से निर्धनता दूर होती है।
नियमित रूप से बिल्व पत्रों से भगवान शिव का अभिषेक करने वाला उपासक अंततोगत्वा शिवलोक को प्राप्त होकर शिवमय हो जाता है।
लिंगपुराण में वर्णित है कि यदि उपासक को शिव अभिषेक हेतु नूतन बिल्व पत्र की प्राप्ति न हो तो वह अर्पित किये हुए बिल्व पत्र को धोकर शिव अर्चना में प्रयोग करे।
इसी से साधक का कल्याण हो जाता है।
इसी से साधक का कल्याण हो जाता है।
शास्त्रों में बिल्व को अनेक नामों से परिभाषित किया गया है जिनमें
शांडिल्य,
शिव,
शिवप्रिय,
पापहन,
जय,
विजय,
विष्णु,
त्रिनपत,
श्राद्धदेवक आदि मुख्य हैं।
शांडिल्य,
शिव,
शिवप्रिय,
पापहन,
जय,
विजय,
विष्णु,
त्रिनपत,
श्राद्धदेवक आदि मुख्य हैं।
* तत्वज्ञान की प्राप्ति के लिए उपासक के लिए बिल्व वृक्ष की जड़ के पास दीपक प्रज्वलित करना शुभ बताया गया है।
* ऐसा माना गया है कि जो व्यक्ति बिल्व वृक्ष का रोपण करता है, उसके कुल में कई पीढिय़ों तक लक्ष्मी निवास करती है।
* शिव अभिषेक हेतु तीन, पांच, अथवा सात के समूह वाले बिल्व पत्र का प्रयोग कल्याणकारी है। इनमें पांच अथवा सात पत्रों के समूह की विशिष्टता है।
साधक को निम्र मंत्र के साथ बिल्व पत्र तोड़कर भगवान शिव को अर्पित करने चाहिए-
साधक को निम्र मंत्र के साथ बिल्व पत्र तोड़कर भगवान शिव को अर्पित करने चाहिए-
"अमृतोद्धव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा। गृहमि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्।"
* आयुर्वेद के अनुसार बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
इस प्रकार यह एक औषधि के रूप में काम आता है।
इस प्रकार यह एक औषधि के रूप में काम आता है।
* बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है।
ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं।
इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं।
चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।
ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं।
इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं।
चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।
* शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
साधक को जीवन में कभी भी पैसों की कोई समस्या नहीं रहती है।
साधक को जीवन में कभी भी पैसों की कोई समस्या नहीं रहती है।
* शास्त्रों मे वर्णित है कि जिन स्थानों पर बिल्ववृक्ष हैं वह स्थान काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र है।
ऐसी जगह जाने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
ऐसी जगह जाने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
* ध्यान रखें इन कुछ तिथियों पर बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
ये तिथियां हैं -
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार तथा प्रतिदिन दोपहर के बाद बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
ऐसा करने पर पत्तियां तोडऩे वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है।
ये तिथियां हैं -
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार तथा प्रतिदिन दोपहर के बाद बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
ऐसा करने पर पत्तियां तोडऩे वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है।
* शास्त्रों के अनुसार बिल्व का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर-दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है और बीच में हो तो मधुर जीवन बनता है।
* घर में बिल्ववृक्ष लगाने से परिवार के सभी सदस्य कई प्रकार के पापों के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं।
इस वृक्ष के प्रभाव से सभी सदस्य यशस्वी होते हैं, समाज में मान-सम्मान मिलता है।
इस वृक्ष के प्रभाव से सभी सदस्य यशस्वी होते हैं, समाज में मान-सम्मान मिलता है।
* बिल्ववृक्ष के नीचे शिवलिंग पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती है।
* बिल्व की जड़ का जल अपने सिर पर लगाने से उसे सभी तीर्थों की यात्रा का पुण्य पा जाता है।
* गंध, फूल, धतूरे से जो बिल्ववृक्ष की जड़ की पूजा करता है, उसे संतान और सभी सुख मिल जाते हैं।
* बिल्व की जड़ के पास किसी शिव भक्त को घी सहित अन्न या खीर दान देता है, वह कभी भी धनहीन या दरिद्र नहीं होता ,
क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है यानी इसमे देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।
क्योंकि यह श्रीवृक्ष भी पुकारा जाता है यानी इसमे देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।
* पुराणों के अनुसार रविवार के दिन और द्वादशी तिथि पर बिल्ववृक्ष का विशेष पूजन करना चाहिए।
इस पूजन से व्यक्ति से ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्त हो जाता है।
इस पूजन से व्यक्ति से ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्त हो जाता है।
* बिल्व पत्र अखंडित हों एवं चढ़ते समय अंगूठा , मध्यमा एवं तर्जनी से सीधा पकड़ें ...
शिव लिंग पर चढ़ते समय बिल्व पत्र उल्टा चढ़ाएँ ।
शिव लिंग पर चढ़ते समय बिल्व पत्र उल्टा चढ़ाएँ ।
* शिव अभिषेक में बिल्व पत्र अर्पित करते समय निम्र मंत्र का उच्चारण मंगलमयी व मोक्षकारी है -
" त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्र च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ! "
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ! "
उपरोक्त मंत्र पढ़ने के पश्चात इन मंत्रों द्वारा भी बिल्व पत्र चड़ा सकते हैं -
1 ॐ अघोराय नमः
2 ॐ पशुपत्ये नमः
3 ॐ शिवाय नमः
4 ॐ विरुपाय नमः
5 ॐ विश्वरूपाय नमः
6 ॐ त्रयंबकाय नमः
7 ॐ भैरवाय नमः
8 ॐ शूल पांडिन्ये नमः
9 ॐ कपिर्दने नमः
10 ॐ ईशाय नमः
11 ॐ महेशय नमः
12 ॐ परदेशवाराय नमः
13 ॐ भूतनाथाय नमः
14 ॐ नागेश्वराय नमः
15 ॐ नीलकंठाय नमः
16 ॐ उमा महेश्वराय नमः
एवं अंत मे -
17 ॐ सम्पूर्ण शिव परिवाराय नमः !!
2 ॐ पशुपत्ये नमः
3 ॐ शिवाय नमः
4 ॐ विरुपाय नमः
5 ॐ विश्वरूपाय नमः
6 ॐ त्रयंबकाय नमः
7 ॐ भैरवाय नमः
8 ॐ शूल पांडिन्ये नमः
9 ॐ कपिर्दने नमः
10 ॐ ईशाय नमः
11 ॐ महेशय नमः
12 ॐ परदेशवाराय नमः
13 ॐ भूतनाथाय नमः
14 ॐ नागेश्वराय नमः
15 ॐ नीलकंठाय नमः
16 ॐ उमा महेश्वराय नमः
एवं अंत मे -
17 ॐ सम्पूर्ण शिव परिवाराय नमः !!
!! ॐ नमः शिवाय !!
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