" राहू - केतू "
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, असुरराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचिर्ती नामक दानव के साथ हुआ था।
इन दोनों के योग से राहु का जन्म हुआ।
जन्मजात शूर-वीर, मायावी राहु प्रखर बुद्धि का था।
कहा जाता है कि उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर समुद्र मंथन से निकले अमृत को छल से प्राप्त कर लिया।
किन्तु इस सारे घटनाक्रम को सूर्यदेव तथा चंद्रदेव देख रहे थे।
उन्होंने सारा घटनाक्रम भगवान विष्णु को बता दिया।
तब क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का मस्तक धड़ से अलग कर दिया ... किंतु राहु अमृतपान कर चुका था, इसलिए मरा नहीं, बल्कि अमर हो गया। उसके सिर और धड़ दोनों ही अमरत्व पा गए।
उसके धड़ वाले भाग का नाम केतु रख दिया गया।
इसी कारण राहु और केतु , सूर्य और चंद्र से शत्रुता रखते हैं और दोनों छाया ग्रह बनकर सूर्य व चंद्र को ग्रहण लगाकर प्रभावित करते रहते हैं।
इन दोनों के योग से राहु का जन्म हुआ।
जन्मजात शूर-वीर, मायावी राहु प्रखर बुद्धि का था।
कहा जाता है कि उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर समुद्र मंथन से निकले अमृत को छल से प्राप्त कर लिया।
किन्तु इस सारे घटनाक्रम को सूर्यदेव तथा चंद्रदेव देख रहे थे।
उन्होंने सारा घटनाक्रम भगवान विष्णु को बता दिया।
तब क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का मस्तक धड़ से अलग कर दिया ... किंतु राहु अमृतपान कर चुका था, इसलिए मरा नहीं, बल्कि अमर हो गया। उसके सिर और धड़ दोनों ही अमरत्व पा गए।
उसके धड़ वाले भाग का नाम केतु रख दिया गया।
इसी कारण राहु और केतु , सूर्य और चंद्र से शत्रुता रखते हैं और दोनों छाया ग्रह बनकर सूर्य व चंद्र को ग्रहण लगाकर प्रभावित करते रहते हैं।
राहू केतू कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है।
मानव जीवन पर इन दोनों छाया ग्रहों का अत्यंत ही प्रभाव रहता है।
छाया ग्रह होने के कारण इन्हें किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है, किन्तु कुछ ज्योतिषी कन्या राशि को राहु और मीन को केतु की राशि मानते हैं।
मानव जीवन पर इन दोनों छाया ग्रहों का अत्यंत ही प्रभाव रहता है।
छाया ग्रह होने के कारण इन्हें किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है, किन्तु कुछ ज्योतिषी कन्या राशि को राहु और मीन को केतु की राशि मानते हैं।
राहु और केतु के द्वारा अनेक योगों का निर्माण होता है। इनमें काल सर्प योग सर्वाधिक चर्चित है।
सूर्य और राहु की युति के कारण पितृ दोष का निमार्ण होता है, जिससे जातक के कुटुंब की हानि होती है या उसे विषेष कष्ट का सामना करना पड़ता है।
चार ग्रह राहु से युत हों तो माला नानाप्रद योग का निर्माण होता है, इससे जातक को राजकीय वैभव और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
राहु व गुरु की युति से गुरु चांडाल योग बनता है जिसके फलस्वरूप जातक कपटी व अविश्वासी होता है।
शुक्र व राहु की युति से अभोत्वक योग,
बुध व राहु की युति से जड़त्व,
शनि व राहु की युति से नंदी,
मंगल व राहु की युति से अंगारक एवं
सूर्य और चंद्र के साथ राहु या केतु की युति से ग्रहण योग का निर्माण होता है।
सूर्य और राहु की युति के कारण पितृ दोष का निमार्ण होता है, जिससे जातक के कुटुंब की हानि होती है या उसे विषेष कष्ट का सामना करना पड़ता है।
चार ग्रह राहु से युत हों तो माला नानाप्रद योग का निर्माण होता है, इससे जातक को राजकीय वैभव और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
राहु व गुरु की युति से गुरु चांडाल योग बनता है जिसके फलस्वरूप जातक कपटी व अविश्वासी होता है।
शुक्र व राहु की युति से अभोत्वक योग,
बुध व राहु की युति से जड़त्व,
शनि व राहु की युति से नंदी,
मंगल व राहु की युति से अंगारक एवं
सूर्य और चंद्र के साथ राहु या केतु की युति से ग्रहण योग का निर्माण होता है।
- राहु ग्रह ... धोखेबाजों, सुखार्थियों, विदेशी भूमि में संपदा विक्रेताओं, ड्रग विक्रेताओं, विष व्यापारियों, निष्ठाहीन और अनैतिक कृत्यों, आदि का प्रतीक रहा है।
यह अधार्मिक व्यक्ति, निर्वासित, कठोर भाषणकर्त्ताओं, झूठी बातें करने वाले, मलिन लोगों का ध्योतक भी रहा है।
इसके द्वारा पेट में अल्सर, हड्डियों और स्थानांतरण की समस्याएं आती हैं।
राहु व्यक्ति के शक्तिवर्धन तथा शत्रुओं को मित्र बनाने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक रहता है।
अनचाही समस्याएं राहू से आती हैं।
घर का दक्षिणी- पश्चिमी कोना राहू का है ... इस कोने में कभी गंदगी नहीं रहनी चाहिए। घर के दक्षिणी पूर्वी कोने में आवश्यक रूप से हरियाली का वास रखना चाहिए।
परिवार का जो सदस्य राहू से पीड़ित हो उसे हरियाली के पास रखें।
अंधेरे और गंदगी वाले कोनों में राहू का वास होता है, यदि प्रत्येक कोने को साफ और उजला रखेंगे तो राहू के खराब प्रभाव से दूर रहेंगे।
सात्विक खाने में यदि नियमित रूप से हींग का प्रयोग किया जाए तो राहू के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
चौके में बैठकर खाना खाने से राहू की दशा का खराब प्रभाव तक कम हो सकता है।
यह अधार्मिक व्यक्ति, निर्वासित, कठोर भाषणकर्त्ताओं, झूठी बातें करने वाले, मलिन लोगों का ध्योतक भी रहा है।
इसके द्वारा पेट में अल्सर, हड्डियों और स्थानांतरण की समस्याएं आती हैं।
राहु व्यक्ति के शक्तिवर्धन तथा शत्रुओं को मित्र बनाने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक रहता है।
अनचाही समस्याएं राहू से आती हैं।
घर का दक्षिणी- पश्चिमी कोना राहू का है ... इस कोने में कभी गंदगी नहीं रहनी चाहिए। घर के दक्षिणी पूर्वी कोने में आवश्यक रूप से हरियाली का वास रखना चाहिए।
परिवार का जो सदस्य राहू से पीड़ित हो उसे हरियाली के पास रखें।
अंधेरे और गंदगी वाले कोनों में राहू का वास होता है, यदि प्रत्येक कोने को साफ और उजला रखेंगे तो राहू के खराब प्रभाव से दूर रहेंगे।
सात्विक खाने में यदि नियमित रूप से हींग का प्रयोग किया जाए तो राहू के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
चौके में बैठकर खाना खाने से राहू की दशा का खराब प्रभाव तक कम हो सकता है।
- केतु ग्रह ... अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं प्राकृतिक प्रभाव को भी दर्शाता है।
केतु हानिकर और लाभदायक, दोनों ही ओर माना जाता है,
क्योंकि ये जहां एक ओर दुःख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है।
यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ने के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है।
यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है।
मान्यता है कि केतु भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है।
ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, विदेश यात्राएं ,धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है।
मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है।
जोड़ों का दर्द और पेशाब की बीमारी मुख्य रूप से केतू की समस्या के कारण आते हैं। कान बींधना, कुत्ता पालना केतू के खराब प्रभाव को कम करता है।
संतान को कष्ट होने और रोजगार की समस्या होने पर काला-सफेद कंबल साधु को देने से कष्ट दूर होता है।
केतु हानिकर और लाभदायक, दोनों ही ओर माना जाता है,
क्योंकि ये जहां एक ओर दुःख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है।
यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ने के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है।
यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है।
मान्यता है कि केतु भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है।
ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, विदेश यात्राएं ,धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है।
मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह हैं तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है।
जोड़ों का दर्द और पेशाब की बीमारी मुख्य रूप से केतू की समस्या के कारण आते हैं। कान बींधना, कुत्ता पालना केतू के खराब प्रभाव को कम करता है।
संतान को कष्ट होने और रोजगार की समस्या होने पर काला-सफेद कंबल साधु को देने से कष्ट दूर होता है।
चूंकि राहू और केतु छाया ग्रह हैं , ये दुर्गा-पूजन से शांत होते हैं क्योंकि देवी दुर्गा को ‘‘छायारूपेण’’ भी कहा गया है।
श्रावण मास में प्रतिदिन भगवान शंकर का जलाभिषेक करने से राहु-केतु , जातक का अनिष्ट नहीं कर पाते।
श्रावण के सोमवार का व्रत एवं सोलह सोमवार का व्रत दोनों राहु-केतु की शांति हेतु समान रूप से लाभकारी माने गए हैं।
पीड़ा कारक राहु-केतु को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्रों का रात्रि में नियमित रूप से जप करें।
शिव सहस्रनाम और हनुमत् सहस्रनाम का नित्य पाठ करने से अनेक प्रकार की ग्रह पीड़ाएं शांत हो जाती हैं।
कन्यादान करने से राहु और कपिला गौ दान केतु के कोप की शांति होती है।
राहु के लिए हल्के नीले और केतु के लिए हल्के गुलाबी रंग के वस्त्र पहनना और दान करना शांतिदायक होता है।
राहु-केतु की शांति के लिए 18-18 शनिवार राहु-केतु की पूजा करनी चाहिए और उपवास रखना चाहिए।
राहु की शांति के लिए श्वेत मलयागिरी चंदन का टुकड़ा नीले रेशमी वस्त्र में लपेटकर बुधवार को धारण करना चाहिए।
बुधवार या गुरुवार को अश्वगंध की जड़ का टुकड़ा आसमानी रंग के कपड़े में धारण करने से केतु पीड़ा का शमन होता है।
200 ग्राम चाय पत्ती 18 बुधवार दान करने से रोग कारक अनिष्टकारी राहु स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
यदि केतु रोग कारक हो तो रोग ग्रस्त जातक स्वयं अपने हाथों से कम से कम 7 बुधवार भिक्षुकों को हलुआ वितरण करे तो लाभ होगा।
राहु-केतु के अशुभत्व-निवारण के लिए उनके प्रिय रत्न गोमेद और लहसुनिया का दान करना चाहिए तथा धरण भी कारण चाहिये।
श्रावण मास में प्रतिदिन भगवान शंकर का जलाभिषेक करने से राहु-केतु , जातक का अनिष्ट नहीं कर पाते।
श्रावण के सोमवार का व्रत एवं सोलह सोमवार का व्रत दोनों राहु-केतु की शांति हेतु समान रूप से लाभकारी माने गए हैं।
पीड़ा कारक राहु-केतु को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्रों का रात्रि में नियमित रूप से जप करें।
शिव सहस्रनाम और हनुमत् सहस्रनाम का नित्य पाठ करने से अनेक प्रकार की ग्रह पीड़ाएं शांत हो जाती हैं।
कन्यादान करने से राहु और कपिला गौ दान केतु के कोप की शांति होती है।
राहु के लिए हल्के नीले और केतु के लिए हल्के गुलाबी रंग के वस्त्र पहनना और दान करना शांतिदायक होता है।
राहु-केतु की शांति के लिए 18-18 शनिवार राहु-केतु की पूजा करनी चाहिए और उपवास रखना चाहिए।
राहु की शांति के लिए श्वेत मलयागिरी चंदन का टुकड़ा नीले रेशमी वस्त्र में लपेटकर बुधवार को धारण करना चाहिए।
बुधवार या गुरुवार को अश्वगंध की जड़ का टुकड़ा आसमानी रंग के कपड़े में धारण करने से केतु पीड़ा का शमन होता है।
200 ग्राम चाय पत्ती 18 बुधवार दान करने से रोग कारक अनिष्टकारी राहु स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
यदि केतु रोग कारक हो तो रोग ग्रस्त जातक स्वयं अपने हाथों से कम से कम 7 बुधवार भिक्षुकों को हलुआ वितरण करे तो लाभ होगा।
राहु-केतु के अशुभत्व-निवारण के लिए उनके प्रिय रत्न गोमेद और लहसुनिया का दान करना चाहिए तथा धरण भी कारण चाहिये।
राहु दोष के लक्षण -
- मोटापे के कारण परेशानी
- अचानक दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े की आशंका
- हर तरह के व्यापार में घाटा
उपाय -
- मां सरस्वती की आराधना करें।
- " ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः " मंत्र का 1 माला जप नित्य करें।
- तांबे के बर्तन में गुड़, गेहूं भरकर बहते जल में प्रवाहित करें।
- माता से संबंध मधुर रखें।
- 400 ग्राम धनिया, बादाम जल में प्रवाहित करें।
- घर की दहलीज के नीचे चांदी का पत्ता लगायें।
- सीढ़ियों के नीचे रसोईघर का निर्माण न करवायें।
- रात में पत्नी के सिर के नीचे 5 मूली रखें, सुबह मंदिर में दान कर दें।
- मां सरस्वती के चरणों में लगातार 6 दिन तक नीले पुष्प की माला चढ़ायें,
- चांदी की गोली हमेशा जेब में रखें।
- लहसुन, प्याज, मसूर के सेवन से परहेज करें.
- मोटापे के कारण परेशानी
- अचानक दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े की आशंका
- हर तरह के व्यापार में घाटा
उपाय -
- मां सरस्वती की आराधना करें।
- " ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः " मंत्र का 1 माला जप नित्य करें।
- तांबे के बर्तन में गुड़, गेहूं भरकर बहते जल में प्रवाहित करें।
- माता से संबंध मधुर रखें।
- 400 ग्राम धनिया, बादाम जल में प्रवाहित करें।
- घर की दहलीज के नीचे चांदी का पत्ता लगायें।
- सीढ़ियों के नीचे रसोईघर का निर्माण न करवायें।
- रात में पत्नी के सिर के नीचे 5 मूली रखें, सुबह मंदिर में दान कर दें।
- मां सरस्वती के चरणों में लगातार 6 दिन तक नीले पुष्प की माला चढ़ायें,
- चांदी की गोली हमेशा जेब में रखें।
- लहसुन, प्याज, मसूर के सेवन से परहेज करें.
केतु दोष के लक्षण -
- बुरी संगत के कारण धन का हानि।
- जोड़ों के दर्द से परेशानी।
- संतान का भाग्योदय न होना, स्वास्थ्य के कारण तनाव ।
- बुरी संगत के कारण धन का हानि।
- जोड़ों के दर्द से परेशानी।
- संतान का भाग्योदय न होना, स्वास्थ्य के कारण तनाव ।
उपाय-
- भगवान गणेश की आराधना करें।
- " श्रीं ॐ गं " मंत्र का 1 माला जप नित्य करें।
- गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
- कुंवारी कन्याओं का पूजन करें, पत्नी का अपमान न करें।
- घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ तांबे की कील लगायें।
- पीले कपड़े में सोना, गेहूं बांधकर कुल पुरोहित को दान करें।
- दूध, चावल, मसूर की दाल का दान करें।
- बाएं हाथ की अंगुली में सोना पहनने से लाभ।
- 43 दिन तक मंदिर में लगातार केला दान करें।
- काले व सफेद तिल बहते जल में प्रवाहित करें।
- भगवान गणेश की आराधना करें।
- " श्रीं ॐ गं " मंत्र का 1 माला जप नित्य करें।
- गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
- कुंवारी कन्याओं का पूजन करें, पत्नी का अपमान न करें।
- घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ तांबे की कील लगायें।
- पीले कपड़े में सोना, गेहूं बांधकर कुल पुरोहित को दान करें।
- दूध, चावल, मसूर की दाल का दान करें।
- बाएं हाथ की अंगुली में सोना पहनने से लाभ।
- 43 दिन तक मंदिर में लगातार केला दान करें।
- काले व सफेद तिल बहते जल में प्रवाहित करें।
राहू मंत्र -
" ॐ अर्धकायं महावीर्य चंद्रादित्य विमर्दनम्
सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ! "
" ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: "
" ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात् "
सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ! "
" ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: "
" ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात् "
केतु मंत्र-
" ॐ पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम्
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम "
" ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम: "
" ॐ पद्मपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात् "
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम "
" ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम: "
" ॐ पद्मपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात् "
!! ॐ नमः शिवाय !!
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