शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

वाणी_के_१८_दोष

  #वाणी_के_१८_दोष

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सामान्य हम मनुष्यों की वाणी में गुणों के साथ दोषों की भी संभावना रहती है । शास्त्र , संत , विद्वान और ज्ञानीजन कहते - हैं कि वाणी की प्रेरिका बुद्धि है । इस क्रम में सामान्य वाणी के 18 दोष कहे गए हैं ।
🔸(१) पहला दोष है — अपेतार्थ ( निरर्थक शब्दजाल ) अर्थात निरर्थक वाणी बोलना ।
🔹(२) दूसरा दोष है— अनेक वाक्यों में एक ही भाव को बार - बार दोहराते चले जाना ।
🔸(३) तीसरा दोष है — अशुद्ध - अश्लील वाणी का प्रयोग ।
🔹(४) चौथा दोष है - आवश्यकता से अधिक कहना ।
🔸(५) पाँचवाँ दोष है - बहुत विस्तार से कहना ।
🔹(६) छठा दोष है – कटु वचन कहना ।
🔸(७) सातवाँ दोष है - संदिग्ध वाणी में कहना ।
🔹(८) आठवाँ दोष है - दीर्घांत पदोच्चारण करना ।
🔸(९) नवाँ दोष है — श्रोता से मुँह फेरकर बोलना ।
🔹(१०) दसवाँ दोष है - असत्य बोलना ।
🔸(११) ग्यारहवाँ दोष है – त्रिवर्ग के अथवा चतुर्वर्ग (धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष ) के विरुद्ध बोलना ।
🔹(१२) बारहवाँ दोष है- कर्णकटु यानी कडुए शब्दों का वार्त्तालाप में प्रयोग करना ।
🔸(१३) तेरहवाँ दोष है- कठिनता से उच्चारण करने योग्य शब्दों को कहना |
🔹(१४) चौदहवाँ दोष है- उलटे - पलटे ढंग से यानी विपर्यस्त क्रम में अपनी बात कहना ।
🔸(१५) पंद्रहवाँ दोष है - अत्यंत न्यून अर्थात आवश्यकता से बहुत कम में कहने की चेष्टा करना , जिससे श्रोता कुछ समझ ही न पाए , ऐसी वाणी बोलना ।
🔹(१६) सोलहवाँ दोष है - अकारण यानी बिना किसी कारण के ही बोलना ।
🔸(१७) सत्रहवाँ दोष है - निष्प्रयोजन यानी बिना किसी उद्देश्य के ही बोलना , एवं...
🔹(१८) अठारहवाँ दोष है - अनर्गल वाणी का प्रयोग करना
🔘2. क्रोध ,
🔘3. लोभ ,
🔘4 . भय ,
🔘5. दैन्य ,
🔘6. अनार्यता ,
🔘7. हीनता ,
🔘8. गर्व एवं
🔘9. दया से गद्गद होकर बोलना
ये नौ दुर्बुद्धिजन्य वाक्य दोष हैं । श्रोता या वक्ता इन दोनों में से ही किसी के भी कपटपूर्वक भाषण करने से यथार्थ बात छिपी ही रह जाती है । अतः शुद्ध रीति से अंतर्हदय की बात कहना ही उचित है ।
इसके अतिरिक्त अन्य ग्रंथों में , जो वाणी के गुण कहे गए हैं ; वो इस प्रकार हैं- श्लेष , प्रसाद , समता , मधुरता , सौकुमार्य , अर्थ की सुस्पष्टता , कांति , उदारता , उदात्तता , ओज , ऊर्जस्वलता , प्रियता , श्रेष्ठ शब्द , समाधि , सूक्ष्मता , गंभीरता , अर्थ की व्यापकता , संक्षेप में बहुत कहने की शैली , भाविकता , गति , रीति , उक्ति एवं प्रौढ़ि - ये वाणियों के गुण हैं

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