महाभारत काल में एक प्रतापी और सात्विक ऋषि थे नाम था मांडव्य, एक राजा ने उन्हें गलती से पकड़ लिया और चोरी के जुर्म में फांसी पर लटका देने का आदेश दे दिया. उन्हें फांसी पर लटकाया गया पर वो मरे नहीं और तड़पते रहे, उन्हें उतरा गया और फिर फांसी पर लटकाया गया दुबारा भी ऐसा हुआ, ऐसा चार बार हुआ तो राजा डर गया और ऋषि को छोड़ दिया.
तब ऋषि ने यमराज का आह्वान किया और यमराज आये, तब ऋषि ने यमराज से इस भोगे गए कष्ट का कारण पूछा तो यमराज ने उन्हें बताया की जब वो 12 साल के थे तो उन्होंने एक तितली को पकड़ा और उसके पीछे चार बार सुई चुभोई थी इस कारण आपको ये यत्न सेहन करनी पड़ी है.
इस पर ऋषि क्रोधित हो गए और बोले तुम्हारा न्याय सही नहीं है, बारह वर्ष का बालक अबोध होता है और उसे अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता. इस कारण उन्होंने यमराज को श्राप दिया की तुम मनुष्य यो-नि में एक अछूत के यंहा जन्म लोगे. जब यमराज ने माफ़ी मांगी तो उन्हें इतनी रहत मिली की अछूत होने के बावजूद भी उसे उचित सम्मान मिलेगा.
यमराज तब दासी पुत्र विदुर के रूप में जन्मे, उचित शिक्षा मिली और नीति शाश्त्र में निपुण हुए. हस्तिनापुर में हुए सभी पापो पुण्यो अन्यायों और कर्मो को देखा और पूर्ण न्याय उन्हें महाभारत और गीता से मिला. तब से न्याय न्याय संगत हो रहे है.
अपने अंत काल में विदुर धृतराष्ट्र कुंती गंधारी के साथ वन में तपस्या में लीं हो गए और शरीर खो दिया, जब युधिस्ठिर उनसे मिलाने पहुंचे तो वो उनके शरीर में घुस गए. स्वर्गारोहण के दौरान एक कुत्ते के रूप में वो उनके साथ चले और निज धाम वापस पहुंचे.
#श्रोत*** यमराज के न्याय तंत्र में थी कमी, एक ऋषि ने दिया श्राप तो विदुर बन पूर्ण हुआ ज्ञान ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें