शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

देव उठनी एकादशी -पूजा विधि-मंत्र

  *【1-देव उठनी एकादशी -पूजा विधि-मंत्र 】*

*【2-तुलसी पूजन विधि -दशाक्षरी मंत्र एवं नामाष्टक मंत्र सहित 】*
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*देव उठनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी स्नान करके भगवान विष्णु के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें. शाम के समय पूजा स्थल साफ करके चूना, गेरू, हल्दी, आटे से रंगोली बनाएं. घी के 11 दीपक जलाएं. भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करें उन्हें गन्ना, अनार, केला, सिंघाड़ा, लड्डू, पतासे, मूली आदि ऋतुफल और अनाज आदि अर्पित करें. मंत्रोच्चारण,स्त्रोत पाठ करें. इस दिन शंख बजाएं, भजन कीर्तन करके देवों को जगाएं. चरणामृत जरूर ग्रहण करें*
*【🔔देव जगाने का मंत्र】*🔔
*उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये. त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥*
*उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव. गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥*
*शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव.*
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*तुलसी पूजन विधि*
*देवउठनी ग्यारस / एकादशी पर तुलसी विवाह और विष्णु पूजन का विशेष महत्व है। आइए जानें कैसे करें तुलसी पूजन, पढ़ें विशेष मंत्र 😘
1 -तुलसी के पौधे के चारों तरफ स्तंभ बनाएं।
2 -फिर उस पर तोरण सजाएं।
3 -रंगोली से अष्टदल कमल बनाएं।
4 -शंख,चक्र और गाय के पैर बनाएं।
5 -तुलसी के साथ आंवले का गमला लगाएं।
6 -तुलसी का पंचोपचार सर्वांग पूजा करें।
7 -दशाक्षरी मंत्र से तुलसी का आवाहन करें।
8 - *तुलसी का दशाक्षरी मंत्र-श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै स्वाहा।*
9 -घी का दीप और धूप दिखाएं।
10-सिंदूर,रोली,चंदन और नैवेद्य चढ़ाएं।
11-तुलसी को वस्त्र अंलकार से सुशोभित करें।
12 -फिर लक्ष्मी अष्टोत्र या दामोदर अष्टोत्र पढ़ें।
13 -तुलसी के चारों ओर दीपदान करें।
14-एकादशी के दिन श्रीहरि को तुलसी चढ़ाने का फल दस हज़ार गोदान के बराबर है।
15 -जिन दंपत्तियों के यहां संतान न हो वो तुलसी नामाष्टक पढ़ें*
-तुलसी नामाष्टक के पाठ से न सिर्फ शीघ्र विवाह होता है बल्कि बिछुड़े संबंधी भी करीब आते हैं।
17-नए घर में तुलसी का पौधा, श्रीहरि नारायण का चित्र या प्रतिमा और जल भरा कलश लेकर प्रवेश करने से नए घर में संपत्ति की कमी नहीं होती।
18 -नौकरी पाने, कारोबार बढ़ाने के लिये गुरुवार को श्यामा तुलसी का पौधा पीले कपड़े में बांधकर, ऑफिस या दुकान में रखें। ऐसा करने से कारोबार बढ़ेगा और नौकरी में प्रमोशन होगा।
*19 - दिव्य तुलसी मंत्र 😘
*देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः । नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये ।।*
*ॐ श्री तुलस्यै विद्महे।*
*विष्णु प्रियायै धीमहि।*
*तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।*
*तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।*
*धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।*

तीज त्यौहारों को मनाने के तरीकों में आए बदलाव के साथ क्षेत्र में देवउठनी एकादशी मनाने का रिवाज भी बदलने लगा है। पहले देव उठाने का कार्य पूरा करने के बाद परिवार के युवा और ब'चे हाथों में मशाल लेकर घे-घे की आवाज करते हुए निकलते थे। यह परम्परा अब ढाणियों में छोटे बालकों के बीच ही देखने को मिलती है।
इसके बाद भी कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो आज भी जीवंत हैं। देवउठनी एकादशी की सायं परिवारों में गुड़ के व्यंजन बनाने की खास परम्परा है। कई परिवारों में गुड के पुए और चंदिया बनाई जाती है तो कई परिवारों में आटे और गुड़ से मिला चूरमा और दाल बनाई जाती है। इसके अलावा कई परिवारों में नई हरी सब्जियां बनाने का प्रचलन है। देवउठनी एकादशी के दिन परिवार के सभी पुरुष एक साथ एकत्रित होते हंै और देव उठाने की परम्परा पूरी करते हैं। महिलाएं भी मंगल गीत गाती हंै और देवस्थान की पूजा करती हंै। इस मौके पर सभी प्रकार की हरी सब्जियां, सिंघाड़े, सरसों की पत्तियां, फूल आदि के आगे दीप जलाया जाता है।
इन्हें गत्ते से बनी एक टोकरी में ढककर रखा जाता है। बाद में उस टोकरी को उठो देव, बैठो देव, पांवलिया चटकाओ देव, कुंआरेन के ब्याह कराओ और ब्याहों के गौने कराओ और जो गौना कर लाए, उन्हें संतान प्रदान करो देव का गीत सात बार दोहराते हंै। उसके बाद देवताओं का विधिवत पूजन किया जाता है।
इस दिन सब्जी बाजार में पूजा योग्य हरी सब्जियों को अलग से सजाकर बेचा जाता है।
इस दिन खास तौर पर बाजार में पूजा सामग्री के लिए हरी सब्जियां, हरे सिंघाड़ों के साथ गुड़ आदि की ही 'यादा खरीदारी होती है। इस दिन एक खास परम्परा भी निभाई जाती है। इसमें जिस स्थान पर दीवाली के बाद गोवर्धन का पूजन किया जाता है, वहां गाय के गोबर से बनाए गए गोवर्धन के प्रतीक को एकत्रित कर वहां सफाई की जाती है।
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