शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

भारत_मे_जातियां_तो_थी_पर_छुआछुत_नही ::#स्वयं_अंग्रेजो #के_द्वारा_दिए_आंकडे_इसके_प्रमाण_है

 #भारत_मे_जातियां_तो_थी_पर_छुआछुत_नही ::#स्वयं_अंग्रेजो #के_द्वारा_दिए_आंकडे_इसके_प्रमाण_है

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भारत को कमजोर बनाने वाले अनेक चालें चलने वाले अंग्रेजो ने आंकडे जुटाने और हमारी कमजोरी और विशेषताओं को जानने के लिए सर्वे करवाए थें ! उन सर्वेक्षणों के तथ्यो और आज के झूठे इतिहास के कथनो मे जमीन आसमान का अंतर है !
सन 1820 मे एडम स्मिथ नामक अंग्रेज ने एक सर्वेक्षण किया था ! एक सर्वेक्षण टी.वी. मैकाले ने 1835 मे करवाया था ! इस सर्वेक्षण से ज्ञात और अनेक तथ्यो के अलावा ये पता चलता है की ----
🔘1, तब भारत के विद्यालयो मे औसतन 26 % उंची जातियों के विद्यार्थी पढते थे, तथा 64 % छोटी जातियों के छात्र थे !
🔘2, 1000 शिक्षको मे 200 द्विज/ ब्राह्मण और शेष डोम जाति तक के शिक्षक थे सर्ण कहलाने वाली जातियों के छात्र भी उनसे बिना किसी भेद भाव के पढते थे !
🔘3, मद्रास प्रेजीडेन्सी मे तब 1500 (ये भी अविश्वसनीय है न) मेडिकल कालेज थे, जिनमे एम.एस डिग्री के बराबर शिक्षा दि जाती थी ( आज सारे भारत मे इतने मेडिकल कालेज नही होंगे)
🔘4, मेडिकल कालेजो के अधिकांश सर्जन नाई जाती के थे, और इंजीनियरिंग कालेज के अधिकांश आचार्य पेरियार जाती के थे ! स्मरणीय है की आज छोटी जाती के समझे जाने वाले इन पेरियार वास्तुकारों ने ही मदुरई आदि दक्षिण भारत के अद्भुत वास्तु मंदिर बनाए है !
तब के मद्रास के जिला कलेक्टर ए.ओ.ह्युम ( जि हां वही कांग्रेस संस्थापक) ने लिखित आदेश निकाल कर पेरियार वास्तुकारों पर रोक लगा दी थी कि वे मंदिर निर्माण नही कर सकते ! इस आदेश को कानून बना दिया गया था !
ये नाई सर्जन या वैद्य कितने योग्य थे इसका अनुमान एक घटना से हो जाता है ! सन 1781 मे कर्नल कूट ने हैदर अली पर आक्रमण किया और उससे हार गया ! हैदर अली ने कर्नल कूट को मारने के बजाय उसकी नाक काटकर उसे भगा दिया ! भागते भटकते कूट बेलगांव नामक स्थान पर पहुंचा तो एक नाई सर्जन को उसपर दया आ गई, उसने कूट की नई नाक कुछ ही दिनो मे बना दी !
हैरान हुआ कर्नल कूट ब्रिटिश पार्लियामेंट मे गया और उसने सबसे अपनी नाक दिखाकर बताया की मेरी नाक किस प्रकार एक भारतीय सर्जन ने बनाई है ! नाक कटने का कोई निशान तक नही बचा था ! उस समय तक दुनियां को प्लास्टिक सर्जरी की कोई जानकारी नही थी ! तब इंगलैंड के चिकित्सक उसी भारतीय सर्जन के पास आये और उससे शल्य चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी सीखी ! उसके बाद ही उन अंग्रेजो के द्वारा युरोप मे यह प्लास्टिक सर्जरी पहुंची !
अब जरा सोचें की भारत मे आज से लगभग 198 वर्ष पहले तक तो कोई जातिवाद यानी छुआ छूत नही था ! कार्य विभाजन, कला कौशल की बृद्धि, समृद्धी के लिए जातियां तो जरुर थी, पर जातियों के नाम पर ये घृणा, विद्वेष, अमानवीय व्यवहार नही था !
फिर ये कुरीति कब और किसके द्वारा और क्यों प्रचलित की गई ?? हजारों वर्ष मे जो नही था वह कैसे हो गया ??
अपने देश समाज की रक्षा व सम्मान के लिए इसपर खोज शोध करने की आवश्यकता है ! यह अमानवीय व्यवहार बंद होना ही चाहिए, और इसे प्रचलित करने वालों के चेहरे से नकाब हम सभी को मिलकर हटाने की जरुरत है !
साथ ही बंद होना होना चाहिए ये भारत को चुन चुन कर लांछित करने के हिनता बोध जगाने के सुनियोजित प्रयास !
हमे अपने कमियों के साथ साथ गुणों का भी स्मरण करते रहना चाहिए, जिससे समाज हीन ग्रंथी का शिकार ना बन जाए ! यही तो करना चाह रहे है हमारे चाहने वाले, हमे कमजोर बनाने वाले ! उनकी चाल सफल करने मे सहयोग करना है या विफल बनाना है .....ये आप सभी को तय करना है .....ये ध्यान रहे !!

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