आज जब पूरा विश्व जल संकट से जूझ रहा है तो जल संचयन की बात की जा रही है, लेकिन हमारे पूर्वजों को जल संचयन का महत्व पता था इसीलिए उन्होंने सैकड़ों वर्ष पहले ही जल संचयन के ऐसे ऐसे विशाल बावड़ी का निर्माण कर चुके थे जो अब तक जल संचयन का अनूठा नमूना है। वर्षा जल संचयन का इतना प्राचीन सुव्यवस्थित और सुगठित आर्किटेक्चर विश्व में कहीं और नहीं मिलता है।
बचपन में हमने खूब पढ़ा है कि प्रेम की निशानी है- ‘ताजमहल’ लेकिन हमें किसी ने बताया नहीं की ताजमहल से भी सैकड़ों साल पहले भी प्रेम स्मृति में सबसे विशाल, अद्भुत और अद्वितीय आर्किटेक्चर बनाया गया था।
जी हां; आज हम बात करने जा रहे हैं “रानी की वाव का”
इसे 11वीं शताब्दी में सोलंकी साम्राज्य के राजा भीमदेव प्रथम की प्रेमिल स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयमति ने बनवाया था। 'रानी की वाव' को देखकर आप दुनिया के सातों अजूबे भूल जाएंगे। इस बावड़ी को इतने सुंदर तरीके से बनाया गया है कि आप इसकी कारीगरी को देखकर एकदम हैरान हो जायेंगे। आपकी आंखें विस्मित होकर एकटक देखने लग जायेगा। वास्तुकला को देखकर आप स्तब्ध रह जायेंगे।
यह बावड़ी(सीढ़ीदार कुआँ) गुजरात की प्राचीन राजधानी पाटन में स्थित है। पाटण को पहले “अन्हिलपुर” के नाम से जाना जाता था, जो गुजरात की पूर्व राजधानी थी।
सरस्वती नदी के किनारे बना यह बावडी एक सात मंजिला इमारत है जो कि भूमि के ऊपर नहीं बल्कि भूमि के नीचे सात मंजिलो को खोदकर बनायी गई है। यह बावड़ी सरस्वती नदी (जो अब लुप्त हो चुकी है) से जुड़ा हुआ था। जब आप इस बावड़ी की वास्तुकला को देखेंगे तो आपको एक उलटे मंदिर की तरह दिखेगी, जो कि सच है बावड़ी को उल्टे मंदिर की तरह डिजाइन किया गया है। यह एक ऐसी संरचना है जो अंदरग्राउंड से ऊपर की और बनाया गया है। यह 7 स्तर यानी 7 मंजिलो में बना हुआ है। यह 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा और 27 मीटर गहरा है। 7 मंजिल की यह इमारत बिना किसी सीमेंट या चूने पत्थर के जोड़ से बनाई गई थी। इसे बनाने में Interlocking System और Dovetail System का प्रयोग किया गया था।

इस बावड़ी में 1000 से अधिक मूर्तियां और 212 स्तंभों को बनाया गया है। वाव की दीवारों और स्तंभों पर दशावतार, महिषासुरमर्दनी, ऋषि, अप्सराएं, गंधर्व इत्यादि की कलात्मक मूर्तियाँ अंकित हैं। जिस प्रकार हम कागजों पर चित्र बनाते हैं ठीक उसी प्रकार यहां के स्तंभों पर चित्र को उकेरा गया है।

(रानी की वाव, पाटन, गुजरात, 11वीं शताब्दी)

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