इंजीनियरिंग और एमबीए कर खेती को बनाया प्रोफेशन, हासिल किए नए मुकाम (भाग - 3)
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छह लाख रुपए एक सीजन में कमा सकता है किसान
उन्होंने बताया कि खेत में जब तक मल्चिंग की जा रही थी, उसी दौरान शिमला मिर्च की नर्सरी भी डाल दी। जब शिमला मिर्च के पौधे रोपने लायक हो गए तो पॉलीथीन में पौधे के लिए छेद बनाकर उन्हें रोपित कर दिया गया। इस तरह प्रति एकड़ में 15 हजार पौधे लगाए गए। अभिषेक कहते हैं टेक्नोलॉजी के प्रयोग से हम प्रति एकड़ 150 कुंतल शिमला मिर्च प्रयोग कर सकते हैं। जिनका औसत दाम 40 रुपए प्रति किलो के हिसाब से प्रति सीजन छह लाख रुपए कमा सकता है।
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छह लाख रुपए एक सीजन में कमा सकता है किसान
उन्होंने बताया कि खेत में जब तक मल्चिंग की जा रही थी, उसी दौरान शिमला मिर्च की नर्सरी भी डाल दी। जब शिमला मिर्च के पौधे रोपने लायक हो गए तो पॉलीथीन में पौधे के लिए छेद बनाकर उन्हें रोपित कर दिया गया। इस तरह प्रति एकड़ में 15 हजार पौधे लगाए गए। अभिषेक कहते हैं टेक्नोलॉजी के प्रयोग से हम प्रति एकड़ 150 कुंतल शिमला मिर्च प्रयोग कर सकते हैं। जिनका औसत दाम 40 रुपए प्रति किलो के हिसाब से प्रति सीजन छह लाख रुपए कमा सकता है।
क्या है मल्चिंग पद्धति
मल्चिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी को जैविक सामग्री या प्लास्टिक द्वारा ढक दिया जाता है। यह विधि मृदा में उचित तापमान और नमी बनाए रखती है, जो मृदा संरक्षण के साथ ही पौधों की उत्पादकता को बढ़ाने में भी कारगर सिद्ध होती है। ये विधि खर-पतवार की बढ़त को रोकने में भी मदद करती है। यही नहीं, मल्चिंग करने से बीज अंकुरण जल्दी होता है और मृदा से होने वाली बीमरियों का प्रकोप कम होता है। प्लास्टिक द्वारा की गई मल्चिंग को प्लास्टिक मल्चिंग कहते हैं।
मल्चिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी को जैविक सामग्री या प्लास्टिक द्वारा ढक दिया जाता है। यह विधि मृदा में उचित तापमान और नमी बनाए रखती है, जो मृदा संरक्षण के साथ ही पौधों की उत्पादकता को बढ़ाने में भी कारगर सिद्ध होती है। ये विधि खर-पतवार की बढ़त को रोकने में भी मदद करती है। यही नहीं, मल्चिंग करने से बीज अंकुरण जल्दी होता है और मृदा से होने वाली बीमरियों का प्रकोप कम होता है। प्लास्टिक द्वारा की गई मल्चिंग को प्लास्टिक मल्चिंग कहते हैं।
शशांक और अभिषेक ने जो खेत लीज पर लिए थे, उसकी लीज अभी कुछ महीने पहले ही ख़त्म हुई है। ऐसे में उन्होंने अब एक बार फिर से खेत की तलाश शुरू कर दी है। बहरहाल, अभिषेक बताते हैं कि दो साल में हमें 11 लाख का फायदा हुआ, जबकि उन्होंने सिर्फ पांच लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट किया था।
बाहर से आते थे किसान सीखने
अभिषेक कहते हैं कि उन्होंने अपनी खेती के दौरान कृषि विभाग और उद्यान विभाग का भी सहारा लिया। विभाग के अधिकारी उनकी खेती का तरीका देखकर इतना खुश हुए कि उन्होंने कई अलग-अलग प्रदेशों और यूपी के कई किसानों को उनके खेत पर लाए और उनका मॉडल दिखाया और बताया। फिलहाल दोनों भाई अभी खेती नहीं कर रहे हैं, लेकिन जो किसान उनसे संपर्क करता है उसे वह अपना मॉडल बताते हैं।
Nice blog
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