मंगलवार, 24 मार्च 2015

नवरात्रे और वैदिक-ज्योतिष -

नवरात्रे और वैदिक-ज्योतिष -
नवरात्रों में माँ दुर्गा के जो भक्त वर्ष में दो बार माँ की विधि सहित पूजा अर्चना करते हैं वो जाने अनजाने नवदुर्गा की भक्ति से नवग्रहों को स्वत: ही शांत कर लेते हैं ।
बुध - कन्या , 
शुक्र - स्त्री ,
चंद्र - माता
ये तीनो रूप स्त्रीलिंग होने से ‘ माँ जगम्बा ’ के ही माने जाते हैं और पूजन विधि तो साक्षात् नवग्रह शांति है जहाँ कुम्भ स्थापित करके खेत्री बीजी जाती है वहां ये दृश्य साक्षात् है।
ध्यान से देखे तो
घडा - बुध
जौं - राहु
जल - चन्द्रमा
अखंड ज्वाला - मंगल
लाल दुप्पटा - केतु
माँ का वस्त्र और देसी घी - शुक्र
काले चने – शनि
मीठा हलवा - मंगल
पूजन विधि और माँ का शेर - गुरु
दिन/रात की अखंड ज्योति सेवा - सूर्य और शनि
नारियल – राहु का सर
और अंत में कंजक पूजन और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले पंडित जी दोनों को भेंट और दक्षिणा देना ‘बुध’ और ‘गुरु’ को प्रसन्न करना होता है।
ये सारी विधि ऋषि मार्कण्डेय द्वारा माँ की भक्ति करते हुए समस्त संसार को प्रदान की गयी है और
जो भक्त इस विधि से पूजन-अर्चन करता है उसकी जन्म पत्रिका के नवग्रह स्वयं ही माँ दुर्गा के शक्ति आशीर्वाद से शांत हो कर शुभ प्रभाव देने लग जाते हैं।
!! ॐ नमः शिवाय !! 

नवग्रह शांतिदायक उपाय-
सूर्यः-
१॰ सूर्यदेव के दोष के लिए खीर का भोजन बनाओ और रोजाना चींटी के बिलों पर रखकर आवो और केले को छील कर रखो ।
२॰ जब वापस आये तभी गाय को खीर और केला खिलाओ ।
३॰ जल और गाय का दूध मिलाकर सूर्यदेव को चढ़ावो। जब जल चढ़ाओ, तो इस तरह से कि सूर्य की किरणें उस गिरते हुए जल में से निकल कर आपके मस्तिष्क पर प्रवाहित हो ।
४॰ जल से अर्घ्य देने के बाद जहाँ पर जल चढ़ाया है, वहाँ पर सवा मुट्ठी साबुत चावल चढ़ा देवें ।
चन्द्रमाः-
१॰ पूर्णिमा के दिन गोला, बूरा तथा घी मिलाकर गाय को खिलायें । ५ पूर्णमासी तक गाय को खिलाना है ।
२॰ ५ पूर्णमासी तक केवल शुक्ल पक्ष में प्रत्येक १५ दिन गंगाजल तथा गाय का दूध चन्द्रमा उदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय ऊपर दी गई विधि का इस्तेमाल करें ।
३॰ जब चाँदनी रात हो, तब जल के किनारे जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को हाथ जोड़कर दस मिनट तक खड़ा रहे और फिर पानी में मीठा प्रसाद चढ़ा देवें, घी का दीपक प्रज्जवलित करें ।
उक्त प्रयोग घर में भी कर सकते हैं, पीतल के बर्तन में पानी भरकर छत पर रखकर या जहाँ भी चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पानी में दिख सके वहीं पर यह कार्य कर सकते हैं ।
मंगलः-
१॰ चावलों को उबालने के बाद बचे हुए माँड-पानी में उतना ही पानी तथा १०० ग्राम गुड़ मिलाकर गाय को खिलाओ ।
२॰ सवा महीने में जितने दिन होते हैं, उतने साबुत चावल पीले कपड़े में बाँध कर यह पोटली अपने साथ रखो । यह प्रयोग सवा महीने तक करना है ।
३॰ मंगलवार के दिन हनुमान् जी के व्रत रखे । कम-से-कम पाँच मंगलवार तक ।
४॰ किसी जंगल जहाँ बन्दर रहते हो, में सवा मीटर लाल कपड़ा बाँध कर आये, फिर रोजाना अथवा मंगलवार के दिन उस जंगल में बन्दरों को चने और गुड़ खिलाये ।
बुधः-
१॰ सवा मीटर सफेद कपड़े में हल्दी से २१ स्थान पर “ॐ” लिखें तथा उसे पीपल पर लटका दें ।
२॰ बुधवार के दिन थोड़े गेहूँ तथा चने दूध में डालकर पीपल पर चढ़ावें ।
३॰ सोमवार से बुधवार तक हर सप्ताह कनैर के पेड़ पर दूध चढ़ावें । जिस दिन से शुरुआत करें उस दिन कनैर के पौधे की जड़ों में कलावा बाँधें । यह प्रयोग कम-से-कम पाँच सप्ताह करें ।
बृहस्पतिः-
१॰ साँड को रोजाना सवा किलो ७ अनाज, सवा सौ ग्राम गुड़ सवा महीने तक खिलायें ।
२॰ हल्दी पाँच गाँठ पीले कपड़े में बाँधकर पीपल के पेड़ पर बाँध दें तथा ३ गाँठ पीले कपड़े में बाँधकर अपने साथ रखें ।
३॰ बृहस्पतिवार के दिन भुने हुए चने बिना नमक के ग्यारह मन्दिरों के सामने बांटे । सुबह उठने के बाद घर से निकलते ही जो भी जीव सामने आये उसे ही खिलावें चाहे कोई जानवे हो या मनुष्य ।
शुक्रः-
१॰ उड़द का पौधा घर में लगाकर उस पर सुबह के समय दूध चढ़ावें । प्रथम दिन संकल्प कर पौधे की जड़ में कलावा बाँधें । यह प्रयोग सवा दो महीने तक करना है ।
२॰ सवा दो महीने में जितने दिन होते है, उतने उड़द के दाने सफेद कपड़े में बाँधकर अपने पास रखें ।
३॰ शुक्रवार के दिन पाँच गेंदा के फूल तथा सवा सौ उड़द पीपल की खोखर में रखें, कम-से-कम पाँच शुक्रवार तक ।
शनिः-
१॰ सवा महिने तक प्रतिदिन तेली के घर बैल को गुड़ तथा तेल लगी रोटी खिलावें ।
राहूः-
१॰ चन्दन की लकड़ी साथ में रखें । रोजाना सुबह उस चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर पानी में मिलाकर उस पानी को पियें ।
२॰ साबुत मूंग का खाने में अधिक सेवन करें ।
३॰ साबुत गेहूं उबालकर मीठा डालकर कोड़ी मनुष्यों को खिलावें तथा सत्कार करके घर वापस आवें ।
केतुः-
१॰ मिट्टी के घड़े का बराबर आधा-आधा करो । ध्यान रहे नीचे का हिस्सा काम में लेना है, वह समतल हो अर्थात् किनारे उपर-नीचे न हो ।
इसमें अब एक छोटा सा छेद करें तथा इस हिस्से को ऐसे स्थान पर जहाँ मनुष्य-पशु आदि का आवागमन न हो अर्थात् एकान्त में, जमीन में गड्ढा कर के गाड़ दें ।
ऊपर का हिस्सा खुला रखें । अब रोजाना सुबह अपने ऊपर से उबार कर सवा सौ ग्राम दूध उस घड़े के हिस्से में चढ़ावें । दूध चढ़ाने के बाद उससे अलग हो जावें तथा जाते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें

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